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नैतिकता को जब कानून बना देते हैं तो वह दुरुपयोग का हथियार बन जाता है

गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद में एक संविधान का 130वां संशोधन विधेयक पेश किया. इस विधेयक में कहा गया है कि अगर पीएम, सीएम और मंत्रियों को गिरफ्तार किया जाता है और अगर वह 30 दिनों तक जेल में रहते हैं, इस्तीफा नहीं देते हैं, तो 31वें दिन वह खुद पद से हट जाएंगे. यानी ना जांच, ना सुनवाई, ना दोष सिद्धि, सीधे सजा. विपक्ष इस विधेयक को लेकर विरोध व हंगामा कर रहा है.


गृह मंत्री ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि वह जब जेल गए थे, तब गुजरात सरकार में मंत्री थे, उन्होंने नैतिकता के आधार पर जेल जाने से पहले इस्तीफा दिया. ठीक बात है. यही नैतिकता है. संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को नैतिकता का पालन करना चाहिए. अगर वह गिरफ्तार होते हैं, तो तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. अमित शाह से पहले और बाद में भी कई राजनेताओं ने इस नैतिकता का पालन किया. एक अरविंद केजरीवाल को ही अपवाद माना जा सकता है.


पर, इस विधेयक का एक बड़ा खतरा है. बड़ा खतरा केंद्र की सरकार द्वारा राज्य की सरकार को अस्थिर करने या सत्ता हड़पने का हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है. पिछले तीन-चार साल के भीतर केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई से इसके संदेश मिलते हैं. 


झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने गिरफ्तार किया. महीनों बाद हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दी. जमानत में जो तथ्य सामने आये, उसमें यह लिखा है कि हेमंत सोरेन के खिलाफ कोई मामला बनता ही नहीं था. ईडी सुप्रीम कोर्ट गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया. 
दूसरा उदाहरण दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन हैं. सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया. उन पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया. सरकार की किरकिरी हुई. सत्येंद्र जैन चार सालों तक जेल में रहे. पिछले हफ्ते सीबीआई ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दिया.


यह बात कौन नहीं जानता कि ईडी के मामलों में जमानत नहीं मिलती. अदालती कार्रवाईयों का सिस्टम ऐसा है कि बिना पेशी के ही 30 दिन खत्म हो जाते हैं. ऐसे में क्या इस तरह के कानून सरकारों को गिराने का नया रास्ता नहीं खोल देगा. इस तरह के आरोप केंद्र में सत्तीसीन रहने वाली पार्टियों पर लगते रहे हैं. वर्तमान भाजपा सरकार पर कुछ ज्यादा आरोप लग रहे हैं.


पता नहीं क्यों केंद्र की मौजूदा सरकार बार-बार ऐसे प्रावधान बना रही है, जहां अपराध साबित होने से पहले सजा सुनिश्चित कर दी जाये. आइपीसी को हटाकर बीएनएस लाया गया. इस बीएनएस में ऐसे कई नुक्ते हैं, प्रावधान हैं, जिसमें बिना जांच, बिना चार्जशीट के 90 से 180 दिनों तक किसी को जेल में रखा जा सकता है. उसकी संपत्ति को सील किया जा सकता है. संपत्ति को सील करने के मामले अलग से चलेंगे.


बहरहाल, अमित शाह का यह कहना सही है कि संवैधानिक पद पर रहने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी की स्थिति में इस्तीफा दे देना चाहिए. यही नैतिकता है. लेकिन नैतिकता को जब कानून का रुप दे दिया जाता है, तो इसके दुरुपयोग के रास्ते खुल जाते हैं. दुरुपयोग के हथियार बन जाते हैं. संसद को इस खतरे को भी देखना चाहिए. हर कोई केजरीवाल नहीं होता.

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