मीडियाः हिंसा दिखाते हैं, प्रेम नहीं- डर बेचते हैं, दिशा नहीं
यह दरअसल न्यूज ही नहीं है- यह एक सोची-समझी बाजार-नीति है. आज का कॉरपोरेट मीडिया निजी हाथों में है. बाजार के हाथों में खेल रहा है. सभी को पता है. ये सब मिलकर भारतीय समाज की वैवाहिक संस्था, पारिवारिक विश्वास और नैतिक जड़ों को तोड़ना चाहता है. क्योंकि टूटे हुए लोग, बंटे हुए रिश्ते- “माइक्रो consumer ” बनते हैं. हर अकेला इंसान एक नया ग्राहक है- जो अकेलापन मिटाने के लिए ज्यादा खरीदेगा, ज्यादा देखेगा, ज्यादा झुकेगा.
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