Girish Malviya
युद्ध दिमाग में ही लड़े और जीते जाते हैं. 21वीं सदी में चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं है. चलिए आइए हाल ही में हुए महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार चुनाव में आए अप्रत्याशित परिणामों का एक अलग नजरिए से विश्लेषण करते हैं.
देश के बड़े-बड़े पत्रकार, सैफोलॉजिस्ट, सेलिब्रिटी विश्लेषक बीजेपी कैसे जीती? वो कितनी मेहनत करती है! जैसी तमाम बातें आपको बता रहे हैं, लेकिन वो एक बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर को नजर अंदाज कर रहे हैं और वो है आपका फोन. जिसे आप स्मार्ट फोन भी समझते हो. फोन वाकई स्मार्ट है, जो आपको ऐसी भ्रम की दुनिया में रखता है, जिसमें जो भी आप देख रहे सुन रहे हो समझ रहे हो वो सब प्रायोजित है.
जब हम मीडिया शब्द कहते हैं तो लोग समझते हैं कि दो तरह से मीडिया है. पहला है मुख्य मीडिया जिसमें टीवी, न्यूज चैनल, फिल्में, रेडियो स्टेशन, अखबार आदि आते हैं और दूसरा है सोशल मीडिया.
अगर किसी देश की जनता को कंट्रोल करना हो तो इन दोनों तरह के मीडिया जिसे मास मीडिया भी कहा जाता है उसे कंट्रोल में लेना जरूरी है. आज जब आप यह लेख अपने स्मार्ट फोन में पढ़ रहे हैं तो आसपास नजर उठाकर देखिए लोग अपने स्मार्ट फोन की स्क्रीन में खोए हुए हैं. फोन को स्मार्ट फोन इसलिए कहा जाता है क्योंकि मुख्यत इसमें हम इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं.
2025 में इंटरनेट आपकी पसंद, नापसंद के बारे में बहुत अच्छी तरह से जानता है. इंटरनेट या सोशल मीडिया पर आपकी हर गतिविधि को ट्रैक किया जाता है, आपकी निगरानी की जाती है और शायद वो आपके बारे में इतना ज्यादा जानता है, जितना आप खुद भी अपने बारे में नहीं जानते हैं.
आज सोशल मीडिया इंसानों के लिए दिलासा देने वाला जरिया बन गया है. अकेले हैं तो सोशल मीडिया पर लोगों से बात कर लो, रील देख लो, गूगल न्यूज पर खबरें देख लो और लीजिये आपका घंटा कहां गया पता भी नहीं चला. धीरे-धीरे पता भी नहीं चलता कि किस तरह इसकी लत लग गयी है. सुबह उठते ही फोन हाथ में आता है और सोने के पहले फोन आखिरी बार चेक करना नहीं भूलते.
मानव मनोविज्ञान पर हुए लंबे रिसर्च से नतीजा निकला है कि हर व्यक्ति का दिमाग इंफॉर्मेशन को एसोसिएट और ऑर्गेनाइज करता है कॉन्टेक्स्ट के साथ. और context को बदलने से लोगो का नजरिया भी बदला जा सकता है.
एक ही शब्द या छवि का अर्थ इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है. इंसान का दिमाग सूचनाओं (information) को संदर्भ (context) के साथ जोड़ता और व्यवस्थित करता है और संदर्भ बदलने से लोगों का नजरिया या दृष्टिकोण बदला जा सकता है.
चलिए एक छोटा सा प्रयोग करते हैं मैं एक शब्द लिखता हूं "पप्पू". आपके दिमाग में पहला व्यक्ति कौन है जो इस शब्द के साथ एसोसिएट होता है ? पप्पू को आपने किस छवि के साथ देखा ? किस तरह के विजुअल आपके दिमाग में आए! यही से सारा खेल बदल गया. एक आदमी पप्पू बन गया और दूसरा "महामानव" बन गया.
आधी से ज्यादा जंग तो यही जीत ली गई. हम और आप आरामदायक भ्रम की दुनिया में है, यदि हम सोचते हैं कि हम चुनते हैं. आज जो मास मीडिया को नियंत्रित कर रहा है, वही जनता के विचारों को नियंत्रित कर रहा है, वहीं से जनमत निर्माण हो रहा है.
डिस्क्लेमर : इसे लेखक के फेसबुक वॉल से लिया गया है,ये इनके निजी विचार हैं.
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