Nishikant Thakur
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर देश में जो माहौल बनाया गया था, वह आखिरकार धरातल पर उतरने के बाद साफ हो गया. एनडीए भारी बहुमत से जीतकर सरकार बनाने जा रही है. अपने अब तक के पत्रकारीय जीवन में मेरा यही अनुभव रहा है कि जब तक परिणाम न आ जाए, आप अंतिम नतीजों के प्रति पूर्ण आशावान नहीं हो सकते. समाज और विशेष रूप से मतदाताओं ने अपना क्या मन बना लिया है, इसे कोई नहीं जान सकता.
दूसरी बात जब आंधी आती है, तो कच्चे पके फल ही टूटकर नहीं गिरते, बड़े—बड़े पेड़ भी धराशायी हो जाते हैं. बड़े बड़े विश्लेषकों के विश्लेषण धुएं से उत्पन्न प्रदूषण की तरह विलीन हो जाते हैं. दूसरी बात बिहार जातिवादी व्यवस्था में आकंठ डूबा हुआ है. उसे भी एक सबक मिला होगा कि आज जातिवादी होने के ढोंग रचने से कोई लाभ नहीं है. उसे अब समाज को जातिविहीन करने वाला प्रतिनिधि ही खोजना होगा.
निर्णय तो जनता को ही करना है, तो उसके अनुरूप योग्य और जमीनी स्तर पर समाज लिए काम करने वाले उसके विकास के लिए जीने वाला ही उम्मीदवार दीजिए, पर ऐसा नहीं होता, बस जाति के आधार पर उम्मीदवार को खड़ा करके समाज को उसके घोर अंधकार में डुबो देने की साजिश रचकर चुनाव में अवसर देकर कटुता उत्पन्न कर दी जाती है.
बिहार चुनाव परिणाम के बारे में अब तक सब जान ही चुके हैं कि वहां क्या अच्छा और क्या बुरा रहा. बस इसकी समीक्षा नहीं की गई होगी कि बिहार की जनता ने विपक्ष को इतना शून्य क्यों कर दिया? उभरे तो बड़े बड़े नेता थे, लेकिन ऐसा लगता है कि वे जनता की मंशा को समझ नहीं सके.
अब आप सरकार पर या चुनाव आयोग पर लाख आरोप मढ़ दें, लेकिन जनता ने जो निर्णय कर दिया, उसे शायद ही बदला जा सकेगा. कहा तो यही गया है कि जो हारता है, वही चिल्लाता है. वह अपनी ओर से कई कारण गिना देंगे, लेकिन प्रतिनिधियों का चुनाव तो जनता ने ही किया. आपकी यह बात भी ठीक है कि जीतने वाला ही राज करता है. उसके गुण अवगुणों की चर्चा तो इतिहास में होता रहता है. जब आप जनता के बीच जाते हैं, उन्हें समझा नहीं पाते, उन्हें अपनी तरफ मोड़ नहीं सकते, फिर अपनी हार पर क्यों चीखते हैं! आपका यह आरोप भी सही है कि जो सत्ता में होता है, वह मजबूत होता है.
उनकी यह बात बिल्कुल सही है कि वे सत्ता में हैं, इसलिए मजबूत भी हैं; क्योंकि प्रशासन आपके साथ हो नहीं सकता, क्योंकि उसकी प्रतिबद्धता सरकार के प्रति है, जनता के प्रति नहीं. वे बहुत ही दूरदर्शी होते हैं और मौसम वैज्ञानिक की तरह माहौल को जानते हैं, इसलिए वे आपके साथ नहीं हो सकते. भले ही आप संविधान की बात करें या नैतिकता की दुहाई दें, वे मौसम के हिसाब से आपके साथ होते हैं, हमेशा के लिए नहीं होते हैं. मन से या बेमन से वे सत्तारूढ़ के साथ अपने को ढाल लेते हैं.
यह कहना सही नहीं होगा कि बिहार का विकास नहीं हुआ है, विकास हुआ है. आज आप किसी भी गांव में जाएंगे, आपको सड़क की सुविधा मिलेगी, बिजली की निरंतरता मिलती रहेगी, लेकिन रोजगार का कोई साधन नहीं है. बिहार के युवाओं को दूसरे राज्यों में जीविकोपार्जन के लिए जाना ही होता है, अपमानित होना ही पड़ता है.
हां, अपराध में कोई कमी हुई हो, ऐसा आप नहीं देखेंगे. क्योंकि इसी बिहार में हम विकास की बयार बहने की बात करेंगे, तो यह भी देखना होगा किस प्रकार बड़े उद्योगपतियों को मार दिया जाता है, किस प्रकार अस्पताल में घुसकर सरेआम विरोधियों को गोलियों से छलनी कर दिया जाता है. फिर किस आधार पर यह कहेंगे कि बिहार का विकास हुआ.
दूसरी तरफ हम यह नारा देकर पूरे देश को आगाह करते हैं कि क्या आप जंगल राज की वापसी चाहते हैं. फिर उस जंगल राज्य में कोई अपनी पूंजी लगाने क्यों और कैसे आएगा? यदि रोजगार वहां की समस्या नहीं है, तो फिर देश के कहीं भी आप जाएंगे, मजदूर उसी राज्य के मिलेंगे. हां, यह भी ठीक है विश्व में कहीं अपनी योग्यतानुसार रोजगार पाने के हकदार हैं, अपनी जीविकोपार्जन के लिए अधिकार रखते है.
ऐसा भी नहीं कि वहां सारे मजदूर ही बिहार के हैं, बल्कि आप देश के उसी शहर में देखेंगे, तो उस शहर के उच्च अधिकारी भी उसी राज्य के होते हैं. लेकिन, उसका क्या लाभ क्योंकि वहां से निकलकर ही कोई भी उच्च अधिकारी बनता है, ऐसा इसलिए भी कि वहां की शिक्षा व्यवस्था के स्तर को हमारी सरकार आजादी के इतने वर्षों बाद भी सुधार नहीं पाई है.
रही रोजगार की बात, तो जब हम इस बात पर ही चुनाव जीतकर आते हैं और इतिहास को दोहराने लगते हैं कि आज से बीस वर्ष पहले राज्य में जंगल राज था, जो फिर लौट आएगा, तो फिर वहां कौन अपना धन जाया करने आएगा. यह भी ठीक है कि इसी जंगल राज के नारे पर आपने चुनाव जीत लिया है और आपकी सरकार बन गई है, जो काफी मजबूत है, तो फिर आप बिहार की सबसे बड़ी समस्या का समाधान ढूंढिए.
यदि सच में बिहार में अच्छे स्कूल हों, स्वास्थ्य के लिए अच्छे अस्पताल हों, रोजगार के सारे साधन अपने ही राज्य में मौजूद हों, तो फिर अपने घरबार को छोड़कर दूसरे राज्यों में जलील होने के लिए कौन जाना पसंद करेगा. अब इस बार जिस आत्मविश्वास के साथ जनता ने एनडीए की सरकार बनाने के लिए मतदान किया है, उसका लाभ आगामी कुछ वर्षों में उसे निश्चित रूप से मिलेगा.
वैसे, बौद्धिक रूप से आदिकाल से ही यह राज्य अखंड भारत का नेतृत्व करता रहा है, वैसा तो अब कभी भविष्य में ऐसा हो नहीं सकता, लेकिन इतना तो हो ही सकता है आज जो राज्य आजादी के बाद से ही विकास के मामले में अब तक देश में चौबीसवें स्थान पर आता रहा है, उससे कुछ सीढ़ी ऊपर की ओर चढ़ जाए.
दरअसल, बिहार ने कुशासन का बदलाव देखा, यह भी देखा कि नीतीश कुमार जनता के साथ खड़े रहे और वह देश के एक कद्दावर पढ़ें लिखे. तपे तपाए जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले नेता रहे हैं. हां, वह आलोचना के शिकार सदैव होते रहे हैं, क्योंकि जब कोई ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है, तो उसके पैर खींचने वाले कुछ अपने ही हो जाते हैं.
लेकिन, नीतीश की छवि आज तक बेदाग रही है. हां, उनकी ढुलमुल नीतियों के कारण उनका कार्यकाल चुनौती भरा ही रहा है, लेकिन याद कीजिए उनका पहला कार्यकाल, जब बिहारी समाज बिजली का सपना देखता था, गांव देहात तक पहुंचने के लिए सड़कें नहीं थीं, लेकिन जैसे-जैसे उनका कार्यकाल आगे बढ़ता गया, यह सब सुविधाएं बिहार में संभव हुईं और आज शहर-शहर गांव-गांव तक आप आसानी से जा सकते है, तथा बिजली का सुख शहर और गांव में एक जैसा पा सकते है. यह एक सच्चाई है.
अब जो लोग इस बात की आलोचना करते नहीं अघाते कि इस विधानसभा से पहले महिलाओं के खाते में दस हजार रुपये देना, 125 यूनिट तक के बिजली बिल को माफ करना, वृद्धावस्था पेंशन को बढ़ा देना तथा छात्रों को सुविधाएं देने की बात करते हैं, वे निश्चित रूप से सत्य की खोज नहीं कर पाते और आलोचना में ही अपनी जय-जयकार करते हैं. यह ठीक है कि हमारा संविधान हमें आलोचना करने का अधिकार देता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आलोचना में आप इतने खो जाएं कि सत्य से आपका संबंध ही समाप्त हो जाए.
वैसे, अब फिर से हमें नई सरकार की आलोचना नहीं, बल्कि उससे अपने विकास की बात करनी चाहिए, अपने सुनहरे भविष्य को देखना चाहिए. यह कहना कि हम चांद को तोड़कर आपके लिए ले आएंगे, निहायत असंगत है. अतः नई सरकार से अपने लिए उज्ज्वल भविष्य की आशा करनी चाहिए.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

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