Manish Singh
2022 का वक्त था. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोआ और मणिपुर में चुनाव हुए. जब हम लैपटॉप में बूथवार जातिवार, धर्मवार, वोटरों का एनालिसिस कर रहे थे, तब चीन के शिनजियांग में हाईड्रोलॉजिस्ट का एक दल तमाम इक्विपमेंट्स लेकर मरुस्थल में ड्रिलिंग कर रहा था. वे रेत से पानी निकाल रहे थे.
दरअसल दुनिया में सी फुड का सबसे बड़ा कंज्यूमर चीन है. इसकी आपूर्ति समुद्री तटवर्ती इलाकों से होती है. लेकिन क्लाइमेंट चेंज से एक्वाटिक लाइफ घटी है. फिश कैच भी कम हुआ. रिसर्च स्टडी करने वालों ने 2045 तक का प्रोजेक्शन करके बताया कि चीन की सी फुड खपत दोगुनी होगी, लेकिन आपूर्ति वर्तमान से 30% रह जायेगी. मांसाहारी देश के लिए यह अकाल जैसी स्थिति होगी. इसका समाधान क्या हो?
तकलामेकान डेजर्ट, दुनिया के सबसे सूखे और खतरनाक इलाकों में है. लाखों वर्ग किलोमीटर में रेत के सूखे ढेर. जीवन का एक अंश नहीं. मगर इसमें एक खासियत है. अल्ताई पहाड़ों से पिघली बर्फ का पानी, सदियों से इसमें आकर सूखता रहा. सेटेलाइट इमेजरी में कई भूमिगत जलस्रोत दिखे थे. ये बेहद गहराई में थे और कहीं कम, कहीं ज्यादा मात्रा में थे. भूजलविदों ने इनकी मात्रा, ऑक्सीजन कंटेट, बायोटिक कंटेट चेक किया और जहां-जहां अच्छी मात्रा में पानी पाया, वहां निशानदेही की.
अगले क्रम में वहां विशाल तालाब खोदे गए. नीचे प्लास्टिक शीट्स, ऊपर मिट्टी, बजरी, बालू और जमीनी इक्वीफर्स से पानी भरा गया. इसमें सोडियम, पोटेशियम के साल्ट मिलाए गए. पानी में ऑक्सीजन लेवल मेंटेन रखने को उसके बड़े-बड़े संयंत्र लगे और एक दिन हवाई जहाजों में भरकर समुद्री मछलियां, सीप, घोंघे लाकर डाल दिये गए.
सेंसरों और कैमरे से निगरानी रही. तापमान, पीएच, ऑक्सीजन को समुद्री वातावरण से मैच किया गया. बहुतेरी असफलता रही. हर असफलता से सीख मिली. खास तौर पर समुद्री बैक्टीरिया, सूक्ष्म पौध लाकर डाली गई. इससे जल जीवों को प्राकृतिक रूप से संतुलित वातावरण मिला. तो चीन ने 2022 में रेगिस्तान में समुद्र बनाना शुरू किया था.
अब यही पानी मछली, ऑयस्टर, झींगा और केकड़ों के लिए घर बन गया है. पहले साल में ही 130 टन समुद्री खाद्य ने बाजार को चौंकाया और राजस्व ने 1.7 करोड़ युआन का आंकड़ा छुआ. अगले साल तक शिनजियांग का कुल एक्वा कल्चर उत्पादन 1,96,500 टन तक पहुंच गया. 77 लाख हेक्टेयर सलाइन-एल्कलाइन मरुभूमि, जो संभावनाओं का खजाना बन गई है.
शिनजियांग के 123 मीठे पानी के तालाब सालाना 3,800 टन उत्पादन दे रहे हैं. आर्थिक रूप से यह स्थानीय लोगों के लिए वरदान है. रोजगार बढ़ रहा है, निर्यात रूस और स्पेन तक पहुंच रहा है. चीन के लिए यह खाद्य सम्प्रभुता हासिल करने जैसा है. आने वाले दस साल में वह सी फुड समुद्र से नहीं, रेगिस्तान से निकालेगा. अपना पेट भरने के बाद वह वैश्विक आपूर्ति करेगा. यह नये किस्म की मैन्यूफैक्चरिंग है. 2027 तक वह वर्तमान क्षमता को दोगुना करने पर काम कर रहा है.
2027 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोआ और मणिपुर में चुनाव है. हमारी सरकार, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, 300 सांसद 2000 विधायक वहां सीट दोगुनी करने पर काम करेंगे. एमबीए और फॉरेन रिटर्न कंसल्टेंट, लोकल पन्ना प्रभारी और समर्पित रूप से छिपकर परिणाम बदलने वाला आरएसएस का बौद्धिक, घर-घर मे हिसाब जमा चुके होंगे. SIR चलेगा.
चीन्ह के विपक्षी वोट काटे जाएंगे. अपने घरों में 100 वोट जोड़े जाएंगे. इन एक्स्ट्रा वोट्स को कौन डालेगा, इसके लिए देशभर से वालंटियर, जय श्रीराम का उच्चारण करते हुए, पहले से तैयार हैं. जो न पड़े, वो 5 बजे के बाद पड़ेंगे. अगर कोई पिटीशन हुई, तो जस्टिस सूर्यकुमार तब तक चीफ जस्टिस बन चुके होंगे.
योजना के दूसरे हिस्से में 2021 से रोकी गयी जनगणना होगी. नई जनगणना के आधार पर हजार लोकसभा सीटे बनेंगी. पर इलाका छांट-छांट कर सीटे, इस प्रकार से बांटी जाएंगी कि कम से कम 600 सीट पर अपने वोट 60% से ज्यादा हो. क्योंकि निगाह 2029 पर है. उसे जीतकर यानि सत्ता 2034 तक चलाने की योजना रेडी है. बाकी तो सेंसर लगाकर तापमान, पीएच सब मापा जाता रहेगा और समय-समय पर तकनीक में जरूरी बदलाव करेंगे.
हर देश में सरकार की अपनी-अपनी नीति और अपनी प्राथमिकताएं हैं. जनता के लिए इलेक्शन और आईपीएल में हम सबकी अपनी अपनी टीमें बन चुकी हैं. साल में 20 धार्मिक त्योहार और 150 दिन की छुट्टी है. हर माह नए उत्सव और उल्लास का प्रबंध है. इस बीच कोई उठकर पूछता है कि हम चीन से क्यों पिछड़ गए? तो संसद से सीधा जवाब आता है- नेहरू जिम्मेदार हैं.
डिस्क्लेमर : ये लेख लेखक के फेसबुक वॉल से ली गई है और ये इनके निजी विचार हैं.
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