Search

पैसा फेंक-तमाशा देख, इस हाथ दे-उस हाथ ले

बिहार विधानसभा चुनाव-2025 का परिणाम आने के बाद एक बार फिर से इस बात की चर्चा शुरु हो गई है, क्या हमारा लोकतंत्र कुछ हजार रूपयों पर ही आकर टिक गया है. पैसा दो-वोट लो. बंपर वोटिंग. यानी पैसा फेंको-तमाशा देखो. इस हाथ में पैसा दे-उस हाथ वोट ले.  जो दल सरकार में है, उसके लिए तो यह बेहद आसान है, लेकिन क्या यही सुविधा विपक्ष के लिए उपलब्ध है? 

 

सत्ता पक्ष के पास सरकार है. सरकारी खजाना है. सरकारी सिस्टम है. और सबसे बड़ी बात वोटरों को कुछ भी दे देने के लिए एक योजना का नाम. लेकिन क्या जो सत्ता में नहीं है, उसके पास क्या है? ना ही खजाना, ना सरकारी सिस्टम और न ही पैसे देने की कोई योजना. विपक्ष की पार्टी के पास अगर कुछ है, तो सिर्फ वायदा. यानी एक तरफ वायदा है, तो दूसरी तरफ नकद राशि. वोटर एकाउंट में पड़ी राशि पर भरोसा करे या वायदे पर? इसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है.

 

राज्य/क्षेत्र योजना का नाम    मासिक राशि (₹) पात्रता मानदंड  
असम ओरुनोदोई योजना 1,250 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं
छत्तीसगढ़ महतारी वंदन योजना 1,000  21 वर्ष से अधिक उम्र की विवाहित महिलाएं
दिल्ली महिला समृद्धि योजना 2,500  (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाएं)
हिमाचल प्रदेश इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना 1,500 18-59 वर्ष की महिलाएं (चरणबद्ध रोलआउट)
हरियाणा लाडो लक्ष्मी योजना 2,100  18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं
झारखंड मुख्यमंत्री मईयां सम्मान योजना 2,500 18-50 वर्ष की महिलाएं
कर्नाटक गृह लक्ष्मी योजना 2,000 बीपीएल परिवारों की महिला मुखिया
महाराष्ट्र मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहन योजना 1,500 21-65 वर्ष की महिलाएं
मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना  1,250 21-60 वर्ष की महिलाएं
ओडिशा सुभद्रा योजना 833 (वार्षिक ₹10,000 का औसत) 21-60 वर्ष की महिलाएं
तमिलनाडु मगलिर उरिमाई थोगाई 1,000 21 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं (आय, भूमि, बिजली खपत मानदंड)
पश्चिम बंगाल लक्ष्मीर भंडार योजना 1,000 - 1,200 25-60 वर्ष की महिलाएं (एससी/एसटी के लिए अधिक)
बिहार महिला रोजगार योजना 10000 रुपया जीविका दीदी महिलाएं.

 

यह कहानी सिर्फ बिहार की नहीं है. इससे पहले देश के 12 राज्यों में यही सब कुछ हो चुका है. इनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और असम. इनमें से सिर्फ तमिलनाडु, झारखंड, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं, जबकि बाकी 8 राज्यों में भाजपा की सरकार है.

  

बिहार 13वां राज्य है. यहां भी भाजपा-जदयू की सरकार बनेगा. इसके अलावा केंद्र सरकार भी अलग-अलग योजना के तहत महिलाओं व वृद्धों के एकाउंट में डीबीटी के तहत पैसा ट्रांसफर करती है. जहां सत्ता पक्ष के सामने तमाम तरह की सहूलियतें होंगी और विपक्ष के सामने चुनौतियां.
कुछ साल पहले तक इस तरह की योजनाएं, जिनसे सत्ता में बहुत हासिल करने लायक वोट का जुगाड़ पक्का हो सके, सिर्फ दो राज्यों में हुआ करती थीं. आज की तारीख में देश के 13 राज्य ऐसे हैं, जिनमें इसी तरह की योजनाएं शुरु की गई हैं. 

 

इन योजनाओं पर इस साल लगभग 1.68 लाख करोड़ रुपया खर्च होने का अनुमान है. यह राशि हमारी कुल जीडीपी का .50 प्रतिशत है. राज्यों का खजाना खाली करने के लिए काफी है. जिस तरह से राज्यों में इस तरह की योजनाओं की स्वीकारोक्ति बढ़ी है, वह दो बातें बताती हैं. पहली यह है कि सत्ता अपनी विफलता को छिपाने के लिए ऐसी योजनाओं के जरिये चुनाव जीतने लगी है. और दूसरी यह कि आने वाले दिनों में देश डीबीटी भारत बन जायेगा.

Lagatar Media की यह खबर आपको कैसी लगी. नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें.

       
         
        
         
        
         
          
               
            
            
            

 

Comments

Leave a Comment

Follow us on WhatsApp