पैसा देकर चुनाव जीतना राज्यों के आर्थिक सेहत पर बहुत भारी पड़ रहा है. हालात यह है कि राज्य कुल बजट का छह प्रतिशत तक वोट से पहले या वोट के बाद लोगों को दिया जा रहा है. 11 राज्यों में यह योजना चल रही है. बजट का सबसे अधिक हिस्सा देने वाले टॉप छह राज्यों में या तो भाजपा की सरकार है या भाजपा के समर्थन से बनी सरकारें. दो अन्य भाजपा शासित राज्य में भी यही हाल है. अन्य तीन राज्यों में कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकार है.
बिहार में तो वर्ल्ड बैंक से मिली राशि में से भी 14000 करोड़ रुपया जीविका दीदियों को दे दिया गया. वोट खरीद करके सत्ता हासिल करना यह तात्कालिक खर्च नहीं है. यह लंबे समय तक चलने वाला खर्च है. अगर पिछले 10 सालों के आंकड़े को देखें तो इस तरह की योजनाओं पर खर्च तीन गुणा बढ़ गया है. कुछ 59.6 लाख रुपये खर्च हो गये हैं. यानी केंद्र सरकार के एक साल के बजट से भी अधिक.
| राज्य का नाम | बजट का हिस्सा |
| बिहार | 6.00 % |
| छत्तीसगढ़ | 4.90 % |
| मध्य प्रदेश | 4.70 % |
| आंध्र प्रदेश | 4.40 % |
| राजस्थान | 4.40 % |
| ओडिशा | 3.20 % |
| कर्नाटक | 3.10 % |
| तेलंगाना | 3.00 % |
| महाराष्ट्र | 2.80 % |
| हरियाणा | 2.70 % |
| झारखंड | 2.00 % |
ऊपर के आंकड़े से स्पष्ट है कि राज्यों की सरकारें अपनी बजट का एक बड़ा हिस्सा वोटरों को खुश करने यानी वोट खरीदने पर खर्च करने लगी है. इन पैसों का इस्तेमाल लोगों के लिए सुविधाएं बढ़ाने और राज्य की उत्पादकता को बढ़ाने में की जा सकती थी. लेकिन ऐसा ना करके एक बड़ी राशि का इस्तेमाल वोटरों को एक तरह के रिश्वत देने पर खर्च किया जा रहा है. इस कारण सड़क, स्कूल, शिक्षा, स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल आदि के लिए राज्यों को पैसे की किल्लत होनी शुरु हो गई है. विशेष इसे एक खतरनाक ट्रेंड मान रहे हैं.
पिछले दिनों कैग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि फ्रीबीच कल्चर की वजह से राज्य या केंद्र सरकार का घाटा बढ़ता जा रहा है. इसलिए ऐसे सरकारी खर्च पर रोक लगाना बेहद जरुरी है. पैसा देकर वोट खरीद करके भले ही राज्यों या केंद्र में सरकारें बनायी जा सकती है, लेकिन यह सरकारों के खजाने को खोखला करता जा रहा है. बिहार में नीतीश के नेतृत्व में मिली जीत ने देशभर में इस संदेश को स्थापित कर दिया है कि पैसा देकर सत्ता को ना सिर्फ बचायी जा सकती है, बल्कि जनता की स्वीकारोक्ति को सामने रख करके विपक्ष को कुचला भी जा सकता है. देखना यह है कि यह कल्चर और बढ़ता है या कम होता है.
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