Nishikant Thakur
एक असहज करने वाला फोन कॉल आपके पास आता है, जिसमें आपसे कहा जाता है कि आज अभी से आपके नाम से जितने भी नंबर हैं, वे बंद किए जा रहे हैं. आपके यह पूछने पर कि ऐसा क्यों? तो कहा जाएगा कि पिछले कुछ दिनों से आपके फोन से अवैध गतिविधियों की रिपोर्ट की मिल रही है. आप डर जाएंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि ऐसा क्यों?
बस यही तो उसका उद्देश्य था. आपको और डराया धमकाया जाएगा और फिर आप उसके चंगुल में फंसते चले जाएंगे. फोन करने वाला अपने चंगुल में फंसा देख आपको एक तरह से 'साइबर अरेस्ट' कर लिया है, उसके बाद वह आपके जीवनभर की कमाई लूटने में लग जाएंगे. फोनकर्ता आधुनिक साइबर अपराधी होते हैं, जिसे आप समझ नहीं पाते.
आज इसी को साइबर अरेस्ट या साइबर अपराध या साइबर फ्रॉड कहते हैं. ऐसे अपराधी भारतीय दंड संहिता की भी थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं, इसलिए वह जानते हैं कि हमारे देश में साइबर अरेस्ट के लिए कानून में कोई शब्द नहीं है. ऐसे में यदि वह पकड़ा भी गया तो उसमें उसे ज्यादा से ज्यादा तीन से पांच वर्ष तक की ही सजा मिल सकती है.
आज यह अपराध इतना बढ़ गया है कि राष्ट्रपति सहित सुप्रीम कोर्ट को भी संज्ञान लेना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने तो केंद्र सरकार से यहां तक पूछ लिया है कि इस अपराध की जांच का जिम्मा सीबीआई को दिया जाए. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों को नोटिस भेजकर दर्ज मामलों का ब्योरा देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट इस बात से हैरान है कि डिजिटल अरेस्ट कर तीन हजार करोड़ रुपये की ठगी आखिर कैसे कर ली गई!
यह अविश्वसनीय लगता है कि इतनी बड़ी ठगी ने अब एक व्यवसाय का रूप ले लिया है, जिसके अपराधी यह कहते पाए गए हैं कि तीन वर्ष की सजा काटने के बाद भी वह इस धंधा को नहीं छोड़ेंगे. इस धंधे में पकड़ की गुंजाइश आम धंधों से तो कम है ही, भारतीय कानून में सजा का प्रावधान भी कम है.
विशेषज्ञ कहते हैं कि साइबर अपराधियों का मानना है कि यदि कम से कम एक वर्ष में दो या तीन करोड़ रुपये की ठगी कर लिया, तो तीन वर्ष ही नहीं तीस वर्ष में भी वेतन पाकर इतनी रकम इकठ्ठा नहीं कर सकता, इसलिए तीन वर्ष के लिए सजा काट लेंगे. यह जानकर परेशान होंगे कि यदि राज्यवार डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी की बात करें तो केवल उत्तर प्रदेश में ही 295 केस दर्ज किए गए, जिनमें अब तक 225 गिरफ्तारियां हुई हैं.
साइबर अरेस्ट या ठगी के लिए देश में कोई स्थान विशेष पर ही गिरोह हो ऐसा नहीं है, बल्कि इसका संचालन विदेश से भी होता है और ठगी का पैसा भारतीय बैंकों के ही खाते में जमा किए जाते हैं. मध्यप्रदेश पुलिस के स्पेशल डिजी वरुण कपूर की मानें, तो भारत में बेरोजगार युवकों को आकर्षक नौकरी देने के लाभ में कंबोडिया के साथ ही थाईलैंड, अफगानिस्तान, दुबई जैसे देशों में ले जाया जा रहा है, जहां ठगी के कॉल सेंटर चल रहे हैं.
उन्हें वहां ले जाकर उनका पासपोर्ट ले लिया जाता है और उन्हें ठगी के काम में लगा दिया जाता है. विदेश से कॉल इसलिए आते हैं, क्योंकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए. यही उनकी सोच भी होती है. यही नहीं, बिहार-उत्तराखंड में पिछले दिनों आठ साइबर अधिकारियों को ठगी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जो करोड़ों की ठगी का नेटवर्क चला रहे थे.
विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स के नाम पर इतना डरा दिया गया है कि साइबर अपराधी इन्हीं के अधिकारी होने का नाम लेकर पहले खौफ दिखाते हैं, फिर साइबर अरेस्ट या ठगी को अंजाम देते हैं. देश के सभी राज्यों में साइबर अपराध को रोकने के लिए सरकार ने पहल भी किया है, लेकिन वह नाकाफी है, क्योंकि आज भी ऐसे अपराधियों के चंगुल से लोग बच नहीं पा रहे हैं.
एक कहावत अपने यहां मशहूर है कि सरकार यदि हर कदम पर समाज की रक्षा का प्रयास करती है, तो अपराधी उनसे कहीं चार कदम आगे दिखते हैं. यह ठीक है कि सरकार ने जगह-जगह इस तरह के अपराध को रोकने के लिए विशेषज्ञों से बात करके नियम बनाने और उसे रोकने का प्रयास कर रही है, लेकिन विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि अपराध को रोकने के लिए जगह-जगह पुलिस की व्यवस्था कहीं नहीं है, इसलिए अपराध नहीं रुक रहे हैं.
सच कहा जाए तो विशेषज्ञों का यह तर्क तो उपयुक्त है, लेकिन प्रश्न यह है कि फिर ऐसे अपराध को रोका कैसे जाए? विशेषज्ञ कहते हैं कि आज के समय में अपराधियों के मन से यह डर निकल गया है कि पुलिस उनका कुछ बिगाड़ भी सकती है और न्यायालय से उसे कठोर सजा दिलवा सकती है. यानी, पुलिस का इकबाल अब कायम नहीं रह गया है.
एक सामान्य नागरिक भी पुलिस से खास उम्मीद नहीं रखता है, उल्टे वह पुलिस पर भ्रष्टाचार समेत तरह-तरह के आरोप लगा देते हैं. उदाहरणों के साथ उसकी नाकाममियां गिनाने लगते हैं. उनके बातें भले ही छोटी छोटी हों, लेकिन तब सही लगती है जब वे कहते हैं कि भरे बाजार उनके गले से चेन छीन लिया गया, उन्हें चाकू मार दिया गया और पुलिस अपराध को रोक नहीं सकी.
अपराधी उसके सामने से ही भाग गया या उसे भगा दिया गया. इस सच्चाई को यदि कोई भी सुनेगा तो निश्चित रूप से उसका विश्वास पुलिस के प्रति नकारात्मक ही होगा. तो उस पर साइबर अपराध जो किसी को दिखाई नहीं देता, लेकिन वह ठग लिया जाता है, अपनी अज्ञानता में अपना सब कुछ गंवा देता है.
साइबर अपराधी नए-नए तरीकों से डरा-धमकाकर तथाकथित साइबर अरेस्ट करके वसूली तो करते ही हैं, साथ ही अब नए तरीकों से हनीट्रैप में फंसाकर भी ठगने लगे हैं. यह इस तरह की ठगी होती है, जिसमें आप ठगे जाने के बावजूद इस घटना को सार्वजनिक नहीं कर सकते. सरकार द्वारा इस अपराध के रोकने के लिए अब यह किया जा रहा है कि हर नंबर के साथ जो फोन आपके पास आ रहा है, उस पर फोन करने वाले का नाम आप देख सकते हैं.
आज जो हो रहा है, वह यह कि स्पैम करके आपके पास मोबाइल पर फोन आता है. यदि आप उसे उठा लेंगे, तो फिर आप फंस गए. इस मामले में बैंक की भी जिम्मेदारी होती है कि यदि किसी खाते में धन कहां से आ रहा है, इसके बारे में पूछताछ की जाए, तो संभव है कि ठग पकड़े जाएं. जैसा कि साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि कानून में डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज नहीं है. यह केवल डर की वजह से स्वयं को बांधा गया एक फंदा है.
आपसे यदि कोई कहता है कि अब आप डिजिटल अरेस्ट में हैं, तो तत्काल ही उस फोन को काट देना चाहिए और पुलिस से शिकायत करनी चाहिए कि इस नंबर से अथवा किसी अज्ञात नम्बर से फोन पर डिजिटल अरेस्ट करने की बात कही गई है. सच तो यह है कि धमकी देने वाला या आपको डिजिटल अरेस्ट करने वाला आपके दरवाजे पर कोई खड़ा नहीं होता है.
यदि ऐसा आप नहीं करते हैं, तो आसानी से साइबर अपराधियों के चंगुल में फंस सकते हैं. इसीलिए कहा गया है कि 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी.' अतः इन ठगों से पहले आप सजग रहें, सावधान रहें, अन्यथा किस रूप में आप लूट लिए जाएंगे, इसका पता आपको चलेगा नहीं और आप बाद में हाथ मलने के सिवा आपके पास और कोई विकल्प नहीं रह जाएगा.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.

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