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हेमंत की आदिवासियत और पितृभक्ति

Anand Singh

 

हेमंत सोरेन. कल्पना सोरेन. एक मुख्यमंत्री. दूसरी विधायक. इन दोनों की तस्वीरें, वीडियोज, मीम्स, रील्स आप सोशल मीडिया पर लगातार देख रहे होंगे. हेमंत, दिशोम गुरु स्वर्गीय शिबू सोरेन के द्वितीय पुत्र हैं और कल्पना दिशोम गुरु की द्वितीय बहू. दोनों सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं. इन दिनों दोनों नेमरा में हैं. नेमरा रामगढ़ जिले में है. हेमंत संभवतः 15 अगस्त तक वहीं रहेंगे. कारण हैः दिशोम गुरु शिबू सोरेन का क्रिया-कर्म, जो अभी चल रहा है.

 

आपने हेमंत सोरेन की चिट्ठियां पढ़ी होंगी. चिट्ठियां या पोस्ट, कल्पना भी लिख रही हैं. दोनों के पत्र सोशल मीडिया पर खासे पसंद किये जा रहे हैं. दोनों के शब्दों में दर्द है. एक तड़प है. कल्पना अपने ससुर की लाडली बहू रहीं, जो दिशोम गुरु को सिर्फ अपना ससुर ही नहीं बल्कि गुरु और समग्र झारखंड का नीव का पत्थर मानती रही हैं. हेमंत भी अपने बाबा में कमोबेश ऐसा ही खोजते हैं. 

 

 


बेटा मुख्यमंत्री हो और अपने पिता के मरने के बाद पैतृक गांव से सरकार चलाएं, ऐसा झारखंड में बीते 25 साल में पहली बार हो रहा है. यह संयोग है कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री रहे और हेमंत दूसरी बार मुख्यमंत्री हैं. तो  नेमरा गांव से सरकार चल रही है. हेमंत सरकार भी चला रहे हैं और पुत्र धर्म का पालन करते हुए अपने बाबा के कर्मकांड में भी पूरी आस्था और निष्ठा के साथ लगे हुए हैं.

 

हेमंत खेतों में जा रहे हैं. हाथ में एक छड़ी लेकर वह फिसलन भरी मेड़ों पर चल रहे हैं. धान की फसल को निहार रहे हैं. कमर के नीचे अंगोछा है. सीने पर गंजी और एक गमछा. कभी चश्मा लगाते हैं, कभी नहीं. अंगोछा वहीपहनते हैं, जो आम आदिवासी पहनता है. कल्पना भी इससे अलग नहीं. वह पार वाली सफेद या क्रीम अथवा हरे रंग की साड़ी पहनती हैं, जो अधिकांश आदिवासी महिलाएं रोजमर्रा के जीवन में धारण करती हैं. 

 

 


लकड़ी के चूल्हे पर वह अपने सुसर के लिए कई किस्म के भोजन बनाती हैं. उसे किसी पत्ते वाले दोने में डाल कर हेमंत सोरेन को देती हैं. हेमंत उसे लेकर गांव की तरफ बढ़ते हैं, जहां रोज वह बाबा को भोजन और पानी देते रहे हैं. सुबह-शाम. अनवरत.हेमंत और कल्पना जिंदा आदिवासियत की जीती-जागती मिसाल हैं. हेमंत को न तो सीएम होने का गुरुर है और न ही कल्पना को सीएम की बीवी होने का.

 

उन पर आदिवासियत का रंग बड़ा गाढ़ा चढ़ा है. नेमरा में हेमंत सिर्फ पुत्र की भूमिका में हैं और कल्पना बहू की भूमिका में. बेशक हेमंत वहां से बैठ कर सरकार भी चला रहे हैं, जरूरी फाइलों को समझ रहे हैं, पढ़ रहे हैं, दस्तखत कर रहे हैं लेकिन उस चीफ मिनिस्टर के भीतर

 

 

अभी एक पिता का पुत्र ज्यादा संजीदा है. हेमंत का कल जन्मदिन था. नहीं मनाया उन्होंने. लेकिन एक पोस्ट लिखा और बाबा की याद को रेखांकित किया. उस पोस्ट में उनकी बाबा को लेकर तड़प दिखी.इस दौर में जब आदिवासी युवक लाखों-लाख की गाड़ी लेकर झारखंड भर में स्टंट करते हैं, कहने को खुद को आदिवासी कहते हैं.

 

उन नौजवानों को हेमंत और कल्पना सोरेन से यह सीखना चाहिए कि दरअसल आदिवासियत क्या होती है. हेमंत सोरेन ने जिस आदिवासियत को अपनाया है, जिस तरीके से वह अपने नियमों-कर्मों का पालन कर रहे हैं, वह उन्हें एक मुख्यमंत्री से ज्यादा एक आज्ञाकारी बेटे और शानदार आदिवासी के रुप में चित्रित करता है. तमाम जिम्मेदारियों के बावजूद हेमंत की आदिवासियत और पितृ भक्ति शानदार है.

 

डिस्क्लेमर :  ये लेखक के निजी विचार हैं.

 

 

 

 

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