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कुत्तों से ऐसी क्या नाराजगी है मी लार्ड!

Uploaded Image                                                                                          Srinivas

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन को आदेश दिया है कि आठ दिन के अंदर दिल्ली के सभी ‘आवारा’ कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से हटा दिया जाये. शेल्टर होम बना कर कुत्तों को उनमें रखा जाये! उल्लेखनीय है कि अनुमानतः दिल्ली में तीन लाख ‘आवारा’ कुत्ते हैं. उनको रखने के लिए तीन हजार शेल्टर होम्स की जरूरत होगी. 


आठ दिन में इतने शेल्टर बना कर सबों को उसमें रख देना संभव है? इसमें कितना खर्च आयेगा, शेल्टर होम में काम करने के लिए कितने कर्मचारियों की जरूरत होगी, कोई अनुमान लगाया गया! शायद नहीं. 

 

इस फैसले पर बहस छिड़ गयी है. कुछ सहमत हैं, कुछ असहमत भी 

बेशक ‘आवारा’ कुत्ते मानव आबादी के लिए खतरा न बन जायें, इसका उपाय किया जाना चाहिए. मगर एकमात्र वही उपाय नहीं है, जो सुप्रीम कोर्ट ने सुझाया है, सुझाया नहीं, सीधे फरमान सुना दिया. यह व्यवहारिक भी नहीं है. 


याद करें- प्रधानमंत्री ने कहा था कि वर्ष 2022 के अंत तक हर बेघर और कच्चे मकानों में रह रहे लोगों को पक्का मकान मिल जायेगा. मिला? इतना आसान भी नहीं था. लोग भूल भी गये! उनसे कौन पूछे! आदमी को छत नहीं है और हम कुत्तों के घर की चिंता कर रहे हैं! बिहार में लाखों बाढ़ पीड़ित खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं, देश के लिए वह प्राथमिकता का विषय क्यों नहीं होना चाहिए?   

 

सुप्रीम कोर्ट के इस किंचित कठोर व असंवेदनशील फैसले पर अभिनेता जॉन अब्राहम ने एक जज्बाती बयान (जो एक तरह से तथ्य भी है) दिया है- ये आवारा नहीं, सामुदायिक कुत्ते हैं!


इस मामले में जॉन अब्राहम अकेले नहीं हैं. अभिनेत्री जाह्नवी बोली- यह आदेश कैद जैसा. मेनका गांधी की ख्याति तो खैर पशु प्रेमी की है, उन्होंने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने और उनके पुत्र वरुण गांधी ने भी इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील की है. यह भी कि यह आदेश उन पर लागू है, जो अपनी सुरक्षा नहीं कर सकते. 


राहुल गांधी ने कहा कि बिना क्रूरता के भी हम सड़कों को सुरक्षित रख सकते हैं. प्रियंका गांधी ने कहा- इस समस्या से बेहतर और उदारता से निपटना चाहिए. दिल्ली के कुत्ता प्रेमियों ने कल सड़क पर उतर कर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया.

 

उल्लेखनीय है कि कुत्ता मानव समाज के सबसे प्राचीन पालतू सहयोगी पशुओं में से एक है. उपयोगी भी है. भारत में कुत्ता पालने का रिवाज कम है, लेकिन हर गांव में कुत्ते होते हैं, जो परिचित होते हैं. वह हमारे दरवाजे के आसपास होते हैं. उनको लोग खाना खिलाते हैं. 


पालतू न होने पर भी उनसे एक रिश्ता बन जाता है. कोई कुत्ता एक ही घर और उसके स्वामी को अपना मान लेता है. कुछ सामूहिक होते हैं. उनका एरिया भी तय होता है. उनके नाम भी रख दिये जाते हैं. 


रात में किसी अनजान के आने पर शोर करेगा, यह भरोसा होता है. जिसे अपना मान लेता है, उसके साथ-साथ दूर तक जाता है. अगर कुत्ता ना हो तो अजीब सा सूनापन लगेगा गांव में. कुत्ते मानव आबादी के साथ ही रहते हैं. मानव समाज का हिस्सा हैं. पालतू कुत्ते तो खैर परिवार के सदस्य ही होते हैं.

 

यह सच है कि कुत्ते से हो सकने वाले रोगों को लेकर समाज में पूरी जानकारी नहीं है- कुत्ता के काटने पर चौदह सुई लेनी पड़ेगी, इस दहशत से हम सब गुजरे हैं. ‘काटे-चाटे स्वान के, दोऊ भांति विपरीत...’ रहीम कवि के इस दोहे ने भी लोगों को अब तक डरा कर रखा है. 


सच यह है कि यदि कुत्तों को समय पर वैक्सीन लगा दिया जाये, तो वह खतरा लगभग निर्मूल हो जाता है. जो कुत्ता पालते हैं, वे यह सावधानी बरतते भी हैं. सरकार और निगम लावारिस कुत्तों के साथ ऐसा करें, तो वह खतरा नहीं रहेगा. जो हिंसक या पागल हो गये, उनकी बात अलग है. उनको आबादी से अलग रखा ही जाना चाहिए. लेकिन एक घटना हो गयी और हम सारे कुत्तों के पीछे पड़ जाएं, यह कुछ अजीब लगता है!

 

फिर देश की शीर्ष अदालत को सिर्फ दिल्ली की चिंता करनी चाहिए? देशभर में, तमाम शहरों में भी तो ‘आवारा’ कुत्ते हैं. देश में 1.53 करोड़ ऐसे कुत्ते हैं. उनकी कोई चिंता नहीं! कुत्तों के अलावा भी अनेक लावारिस पशु सड़कों पर विचरते हैं! 


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