Santosh Yadav
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से कहा कि भारत के रिसर्चरों और साइंटिस्ट को भारत में जेट इंजन विकसित करने पर काम करना चाहिए. नीचे दिए गए आंकड़ों पर गौर करें और विचार करें कि इनकी कथनी और करनी में कितना अंतर है.
भारत ने 2012 में अपने जीडीपी का 0.76% रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च किया था, जो 2020 में घटकर 0.64% रह गया. वहीं वैश्विक औसत 1.79% है. भारत प्रति शोधकर्ता केवल $42 (क्रय शक्ति समानता, PPP, के आधार पर) खर्च करता है, जबकि इजरायल $2,150, दक्षिण कोरिया $2,180 और अमेरिका $2,183 खर्च करते हैं.
भारत में कुल वैज्ञानिक शोधकर्ताओं में महिलाओं की भागीदारी मात्र 18% है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 33% है. देश में लगभग 40,000 उच्च शिक्षा संस्थान हैं, जिनमें केवल 1,200 विश्वविद्यालय हैं. इनमें से केवल 1% संस्थान ही रिसर्च में सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
2021 में भारत में कुल 7,888 रिसर्च और डेवलपमेंट संस्थान थे, जिनमें से 5,200 प्राइवेट सेक्टर के थे और इंडस्ट्री से संबंधित रिसर्च करते थे. 2020-21 में भारत में 25,550 लोगों ने पीएचडी पूरी की, जिनमें से केवल 14,983 ने साइंस और इंजीनियरिंग में पीएचडी की. यह संख्या अमेरिका, चीन और ब्रिटेन की तुलना में बहुत कम है.
भारत में हर दस लाख आबादी पर केवल 263 लोग रिसर्च में लगे हैं, जबकि ब्राज़ील (888), दक्षिण अफ्रीका (484) और मेक्सिको (349) जैसे अन्य विकासशील देशों से यह आंकड़ा काफी कम है.
विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्र में 2020 में प्रकाशित कुल रिसर्च आर्टिकल्स में भारत का योगदान केवल 5% था, जबकि चीन का 23% और अमेरिका का 15.5% था. 2021 में भारत से कुल 61,573 पेटेंट फाइल किए गए, जबकि चीन से लगभग 16 लाख और अमेरिका से 6 लाख पेटेंट दर्ज किए गए.
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