Faisal Anurag
जितिन प्रसाद हंगामे के बीच किसान नेताओं और ममता बनर्जी की मुलाकात उत्तर प्रदेश के चुनावों के नजरिए से बेहद मानीखेज है. वैसे तो ममता बनर्जी बंगाल के बाहर भले ही शेरनी मुख्यमंत्री और नरेंद्र मोदी से सीधे टकराने के लिए विख्यात हैं, लेकिन हिंदी पट्टी के राज्यों में उनकी चुनावी राजनैतिक अपील को लेकर कई सवाल हैं. लेकिन किसान नेताओं से हुई मुलाकात ने यह संदेश जरूर दिया है कि किसान नेता 2022 में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में गंभीर चुनौती देने जा रहे हैं. ममता बनर्जी और किसान नेताओं की मुलाकात भविष्य की राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है. विपक्ष के तमाम दलों के लिए इस मुलाकात के कई संदेश हैं.
बंगाल में जब ममता बनर्जी भाजपा की ब्यूहरचना में घिरी हुई अकेले अभिमन्यु की तरह चुनावी जंग कर रही थी. दर्जनों किसान नेताओं ने बंगाल में भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार किया. ममता बनर्जी की जीत की आंधी में किसान आंदोलन और उसके नेताओं के असर पर चर्चा नहीं के बराबर हुई. चुनावों के दौरान माहौल बनाने में उन ताकतों की बड़ी भूमिका होती है जो फैंस के आसपास होते हैं लेकिन उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होती है. किसान नेताओं का यह एलान है कि 2022 में यूपी और पंजाब में तथा 2024 में लोकसभा में वे भाजपा को हराने की भूमिका के अगुवा बनेंगे. वैसे तो इस दावे को लेकर कई सवाल हैं. लेकिन यूपी में भाजपा की परेशानियों में किसान आंदोलन अहम है. किसान आंदोलन यूपी और पंजाब की राजनीतिक दिशा तय करने की क्षमता रखता है. जिस तरह केंद्र और किसानों के बीच टकराव सघन हुआ है, उससे भाजपा के लिए सांप्रदायिक और जाति ध्रुवीकरण की राह आसान नहीं है.
भाजपा कांग्रेस,समाजवादी पार्टी और बसपा के कुछ ”चुके” हुए नेताओं का दलबदल करा कर संदेश देने का प्रयास करने की कोशिश करने जा रही है. जितिन प्रसाद इसी प्रक्रिया के ही हिस्से हैं. ये वही जितिन प्रसाद हैं, जो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में अपनी जमानत तक नहीं बचा सके . 2019 बंगाल चुनाव में वे बंगाल में कांग्रेस के प्रभारियों में थे, जहां कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पायी. यही नहीं पंचायत चुनाव में वे अपनी भाभी को भी जीत नहीं दिला सके. उनकी सबसे बड़ी पहचान जितेंद्र प्रसाद के पुत्र की है. पिछले साल भर से उन्होंने ब्राह्मणों के कुछ सम्मेलन किए हैं और योगी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. लेकिन किसानों की सक्रियता के बीच इस तरह के नेता भाजपा के लिए कितने उपयोगी साबित होंगे यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा.
भाजपा उस रणनीति की तलाश जोर-शोर से कर रही है, जिससे वे किसानों के आंदोलन के असर को बेमानी साबित कर सकें. इस क्रम में ही कृषि मंत्री तोमर ने एक बार फिर किसानों से वार्ता को लेकर बयान दिया है. लेकिन किसान नेताओं ने साफ कह दिया है कि वे तीनों कृषि कानूनों के रद्द किए जाने के सवाल पर कोई समझौता नहीं करने जा रहे हैं. 5 जून को किसानों ने संपूर्ण क्रांति दिवस मनाया. यूपी और पंजाब में इस कार्यक्रम का असर देखा गया. पंजाब में तो अकाली भाजपा गठबंधन के टूटने के बाद से ही भाजपा के लिए कोई संभावना शेष नहीं है. यूपी 2024 के लिए भी बड़ा दाव है.
लेकिन ममता बनर्जी और टिकैत के नेतृत्व में मिले किसान नेताओं ने साझा एलान कर दिया है कि आने वाले हर चुनाव में भाजपा को हराने के लिए वे हर मुमकिन प्रसास करेंगे. ममता बनर्जी की सक्रियता का संदेश यह है कि गैर भाजपा दलों के बीच चुनाव के पहले एक बड़ा गठबंधन भी बन सकता है और किसान इसके लिए दबाव बनाने का मन भी बना चुके हैं. जब कभी राजनीतिक विश्लेषण किए जाते हैं किसान आंदोलन जैसे प्रभावी कारक की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया जाता है. यूपी की राजनीतिक बहसों को देख लीजिए उसमें इस बड़े कारक का उल्लेख तक नहीं किया जा रहा है. जिस तरह जितिन प्रसाद को मीडिया हाइप दिया गया ठीक उसकी तुलना में किसानों के आंदोलन को नकारने का सिलसिला भी जारी है. ममता बनर्जी और किसान नेताओं की मुलाकत ने पहली बार यूपी के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकेत दिया है. किसान फेंस को तोड़ मैदान में दो-दो हाथ करने को तैयार हैं.