Faisal Anurag
बीस सालों तक जिस नैतिक दायित्वबोध का परिचय विश्व समुदाय ने अफगानिस्तान के संदर्भ में दिया, उससे अचानक पलायन करने के पीछे बेबसी है या फिर कोई डील. इन्हीं सवालों के बीच संयुक्त राष्ट्र संघ और न ही अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों की भूमिका का आकलन किया जा सकता है. विश्व मीडिया की आलोचनाओं से परेशान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक तरह से जबावदेही से पल्ला झाड़ लिया है. अमेरिकी जनमत की प्रतिक्रिया सात महीने पहले व्हाइट हाउस पहुंचे बाइडेन के पूरे राजनैतिक कैरियर का यह सबसे स्याह पक्ष है. हालांकि बाइडेन ने अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में लिए गए फैसलों को जिम्मेदार बता कर फौज वापसी के फैसले को सही ठहरा दिया है. व्हाइट हाउस पर हुए विरोध प्रदर्शन बता रहे हैं कि अमेरिका की भूमिका को लेकर सवाल उनके देश में रह रहे लोग भी उठा रहे हैं.
दुनिया की बड़ी ताकतों के नए रूख को लेकर दुनिया हैरान है. बाइडेन ने तो दावा कर दिया है कि अमेरिका का अफगान मिशन कामयाब है. हालांकि कामयाबी का हश्र काबुल पतन के रूप में कैसे हुआ इसका जबाव नहीं दिया. वे अलकायदा के आतंकवदियों पर कार्रवाई के लिए अफगानिस्तान गए और इसमें सफल रहे. लेकिन 21 साल पहले के वे दृश्य याद कीजिए, जब आज के अफगानिस्तान की तरह ही तब के अफगानिस्तान ने अमेरिकी और उसके मित्र देशों की सेना का सड़कों पर निकल कर स्वागत किया था. 21 सालों में ऐसा क्या हुआ कि जिस तालिबान ने समर्पण कर दिया था, उसे बिना किसी बड़े जंग के ही काबुल मिल गया.
तालिबान के कुछ ही हिस्से बचे हैं, जहां के युद्ध सरदारों ने तालिबान के नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया है. अशरफ गनी के साथ उपराष्ट्रपति रहे अमरानुल्लाह सालेह के साथ इन युद्ध सरदारों की बैठक की खबर है. खबरों के अनुसार, सालेह और तालिबान विरोधी युद्ध सरदारों का समूह विरोध की रणनीति बना रहा है. पश्चिमी मीडिया के कुछ हिस्सों की इस खबर का सिर्फ इतना ही मायने है, तालिबान विरोधी प्रतिरोध के स्वर मौजूद हैं. लेकिन किसी बड़ी भूमिका की अपेक्षा नहीं की जा सकती है.
युसुफ मलालाजई जिन्हें पाकिस्तानी तालिबान ने गोली चला कर बुरी तरह जख्मी कर दिया था, उन्होंने विश्व समुदाय से मार्मिक अपील की है. मलाला ने विश्वसमुदाय से अपील किया है कि वह अफगान नागरिकों के लिए हस्तक्षेप करे और तत्काल संघर्ष विराम की गारंटी करे. मलाला ने ट्वीट किया है ‘तालिबान जिस तरह से अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया है, उसे देखकर हम स्तब्ध हैं. मैं महिलाओं, अल्पसंख्यकों और मानवाधिकारों के लिए चिंतित हूं.’मलाला ने कहा, ‘वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय ताकतों को तत्काल संघर्ष विराम की मांग करनी चाहिए.
तत्काल मानवीय सहायता मुहैया कराएं और शरणार्थियों और नागरिकों की रक्षा करें.’ मलाला ने शरणार्थियों के भविष्य को लेकर सवाल उठाया है. इस पर चारो तरफ खामोशी है. तालिबान के पड़ोसियों के रूख निराश करने वाले हैं. एक बड़ी मानवीय त्रासदी के रूप में भी अफगान नागरिकों के पलायन को देखना जाना चाहिए लेकिन विश्व समुदाय के ज्यादातर देशों ने अपने राष्ट्रहित को सर्वोपरि करार दिया है.
इस सवाल का जबाव कौन देगा कि 20 साल पहले जब तालिबान सरेंडर कर चुका था, उसके बाद भी उसे खाद पानी किन ताकतों ने दिया. दोहा में जो शांति वार्ता हुई, वह अफगान शांति के लिए थी या नाटों देशों की वापसी के लिए डील भर था. ये सवाल न तो नाटो देशों का पीछा छोड़ने जा रहे हैं और न ही अमेरिका का. हालांकि बाइडेन ने आतंकवाद के खिलाफ मदद जारी रखने का भरोसा जरूर दिया है.
काबुल में रूस,चीन और पाकिस्तान के दूतावासों को छोड़ कर शेष सभी खाली हो चुके हैं या तेजी से हो रहे हैं. यह संकेत है कि अफगानिस्तान में चीन, रूस और पाकिस्तान की त्रिकोण बन गयी है, जो तालिबानी सरकार को मान्यता भी देने जा रही है. कुछ दिन बाद ईरान, सऊदी अरब और यूएई भी इसमें शामिल हो जाएंगे. तालिबान के शीर्ष नेताओं में एक मौलाना अबुल बरादर की चीन यात्रा के बाद से ही यह स्पष्ट हो गया था कि अमेरिका के बाद के अफगानिस्तान में चीन अपनी भूमिका को लेकर सक्रिय है. तालिबान प्रतिनिधियों की यात्रा के एक सप्ताह पहले एक दूसरा प्रतिनधिमंडल रूस भी गया था. तालिबान के प्रतिनिधियों ने काबुल पर कब्जे के बाद इस्लामाबाद की भी यात्रा किया.
ईरान के अमेरिका विरोधी नेता इस अवसर का लाभ अमेरिका के खिलाफ एशिया में उठाने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं. तालिबान से उनके संपर्क हैं और वे भी तालिबान को मान्यता देने में हिचकने नहीं जा रहे. यानी अफगानिस्तान विश्व ताकतों का प्रयोग स्थल बनने के लिए बाध्य होगा. तालिबान को भी विदेशी निवेश की जरूरत है. सोवियत रूस के अफगानिस्तान प्रवेश बाद से अफगानिस्तान विश्व ताकतों के प्रयोग का केंद बना रहा है. अफगानी लाइव्स मैटर जैसे दबाव की सख्त जरूरत है ताकि विश्व की ताकतें अफगान नागरिकों के अधिकारों, प्रगति और अभिव्यक्ति के अवसरों के लिए माहौल बनाने का दबाव बनाने के लिए विवश हों.