Jitendra Naruka
पूरे कृषि बिल को समझने की बजाय सिर्फ एक हिस्से से सरकार की नीयत समझना आसान होगा. 65 साल पहले सरकार ने महसूस किया कि जमाखोर ऐसी वस्तुओं का भंडारण कर न सिर्फ किसानों को लूटते हैं. बल्कि आम जनता को चूस डालते हैं, तो आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 लाया गया जिसके तहत सरकार ने उन चीजों का उत्पादन, बिक्री, दाम, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित कर दिया, जिसे गरीब-अमीर कोई खाये बिना जीवित नहीं रह सकते जैसे अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू आदि.
इस कानून में मनमाने दाम पर बेचने, जमाखोरी या कालाबाजारी की स्थिति में 7 साल जेल की सजा तक का प्रावधान था. उसके बावजूद भी किसान ठगा जाता रहा, आम आदमी महंगाई झेलता रहा और जमाखोर मुनाफा कमाते रहते थे. लेकिन काफी हद तक नियंत्रण था जैसे किसान जिस गेहूं को 1800 रूपये प्रति क्विंटल बेच पाता था, वो अधिकतम 2800 रूपये प्रति क्विंटल यानी सीमित मुनाफे पर उपभोक्ता को उपलब्ध होता है, उपभोक्ता खुद किसान भी है, अगर कोई गेहूं पैदा करता है तो आलू प्याज के लिए बाज़ार पर निर्भर रहते है.
संसद ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 मे अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज, आलू सबको आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया है. यानी अब कोई भी इन वस्तुओं का कितना भी भंडारण कर सकता है.
अब कोई मूर्ख ही ये स्वीकार करेगा कि कोई किसान अपनी फसल पैदा कर तब तक भंडार रखेगा, जब तक उसे सही दाम न मिले. जो थोड़ा भी किसानों की स्थिति से वाकिफ़ हैं, वो जानते हैं. हर किसान फ़सल आते ही उसके दाम पर निर्भर होता उससे ही उसका फ़सल का खर्च, कर्ज आएगा और आगामी फसल तक जीने लायक पैसे.
तो बड़े किसान तो कर पाएंगे भंडार फिर वो क्यों विरोध मे शामिल! ये सोचना भी मूर्खता है कि कोई बड़ा से बड़ा किसान क्या वर्तमान मझले बड़े व्यापारी भी ऐसा करने मे सक्षम होंगे. क्यों? वो इसलिए कि भंडारण की अनुमति असीमित है. वो भी उन वस्तुओं की जिनके बाजार की कमी का सवाल ही नहीं बारहों महीनें.
तो अब भंडार कौन करेगा? वो जिसकी क्रय क्षमता, बाजार के खेल खेलने की क्षमता भी असीमित है. यानी जो नाम आ रहे हैं अडानी अंबानी वो ही. क्रय क्षमता से बाज़ार पर कब्जे के लिए ये उदाहरण समझिये.
भारत मे दोबारा पेप्सी और कोला का प्रवेश हुआ तो इन कंपनियों ने भारत के सभी ब्रांड खरीद लिए जैसे कैम्पा कोला जैसे ब्रांड खरीदे. सिर्फ समाप्त करने और थम्सअप, लिम्का जैसे ब्रांड जिंदा रखे भारतीय बाज़ार तक लेकिन पेप्सी कोला के अलावा एक भी सॉफ्ट ड्रिंक का स्थापित ब्रांड भारत मे नहीं बचा.
भारत में अंकल चिप्स बच्चे-बच्चे की जुबान पर आजतक है. आजतक कुछ लोग अंकल चिप्स बोलते जैसे वनस्पति घी को डालडा लेकिन लेज आया और इतने बड़े ब्रांड को सिर्फ समाप्त करने खरीद कर बाज़ार से आउट कर दिया.
लाइफ बॉय और हमाम, रिन और सन लाइट की प्रतिस्पर्धा किसे मालूम नहीं. हमाम, सन लाइट तो छोटे पूंजीपति के भी ब्रांड नही थे, टाटा के थे! हिंदुस्तान लिवर ने सारे ब्रांड खरीदे सिर्फ उन्हें समाप्त करने, अब 30 साल की उम्र वालों को तो याद भी नहीं वो भारत के चोटी के ब्रांड थे. यहां तो अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज, आलू जैसी वस्तु में खुले खेल की छूट दी जा रही. सिर्फ किसान नहीं आम उपभोक्ता को आने वाले वर्षो मे कैसे लूटा जायेगा जरा सोचिए.
और ये मोनोपोली यहीं तक सीमित नही रहेगी. जमीन, गोदाम सब सिर्फ चन्द खिलाड़ियों के होंगे. और सुनिए खेती पर सब्सिडी, पैकेज भी मिलेंगे इन चन्द पूंजीपतियों को यानी दोनो हाथों से लूटेंगे. अमेरिका मे 40% से सिर्फ 2% किसान और दूध उत्पादक रह गये. उनमें भी चंद घरानों का 35% फसलों और दूध उत्पादन पर कब्जा और सरकारी सहायता भी वो ही लूटते.
सरकार समर्थकों का तो समझ आता है लेकिन खुद को कम्युनिस्ट कहने वाले कुछ टोले, जो अमेरिकी एंजेंसियों के पैसे पर पलते हैं, उनके किसान आंदोलन के विरोध को समझिये ये समर्थकों से भी बड़े धूर्त हैं. कथित शुद्ध क्रांतिकारी.
डिस्क्लेमरः ये लेखक के अपने विचार हैं और यह लेख मूल रुप से उनके फेसबुक वॉल पर प्रकाशित हो चुका है.