Jamshedpur (Sunil Pandey) : बिष्टुपुर स्थित मद्रासी सम्मेलनी में आयोजित गीता ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन सोमवार को स्वामी चिद्रुपानंदा जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि सारे दुखों का जड़ मनुष्य का अपना मन है. मन ही हमें मोक्ष में दिलाता है.जिसने त्याग किया उसे जीवन में सुख ही सुख है. उदाहरण देकर श्रद्धालूओं को समझाते हुए उन्होंने कहा कि जब हम किसी खिलौने की दुकान में जाते हैं तो उसे खरीदते नहीं है बल्कि उसे देखकर आनंद उठाते हैं. क्योंकि हमारा मन उसे विरक्त हो गया है.
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ब्रह्म निराकार और अनंत है
स्वामी जी बताया कि गीता के नौवें अध्याय का चौथा एवं दसवें श्लोक मुख्य है जो रहस्यों की उद्घाटित करता है. जिसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं अनंत, अव्यक्त और अज्ञानता से परे हूं. किसी वस्तु का आधार होने से ही भ्रम होता है. हे अर्जुन! तुम जो कुछ मुझमें देखते हो वह सब मिथ्या है. मुझमें कुछ भी नहीं है. मैं सभी चीजों में आधार रूप में विद्धमान हूं. बिना मेरे कोई भ्रम भी पैदा नही होती है.जल, वायु, अग्नि, आकाश सभी भ्रम में है. ब्रह्म का कोई स्वरूप नहीं है वह अनंत और निराकार है. कर्मों के बारे में बताते हुए स्वामी जी ने बताया कि सभी कर्म जिसमे मनुष्य आसक्त हो जाता है, वह ईश्वर की इच्छाओं का ही परिणाम है. जिसकी पूर्ति के लिए ही मनुष्य की रचना हुई है.
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