Jamshedpur (Vishwajeet Bhatt) : एफपीएआई की सिंहभूम शाखा के अंतर्गत गम्हरिया के झुरकुली में संचालित एफपीएआई हॉस्पिटल के सारे कागजात फेल हैं. जिसे एफपीएआई हॉस्पिटल कहा जाता है वह क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट की नियमावली मसलन निबंधन, स्थायी तौर पर डॉक्टर की नियुक्ति, पर्यावरण क्लियरेंस व अन्य जरूरी अहर्ताओं की पूर्ति नहीं करता है. बल्कि इस अस्पताल का संचालन विशुद्ध रूप से एक झोलाछाप डॉक्टर के बलबूते कई वर्षों से किया जा रहा है. साथ ही यहां काम करने वाले कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है.
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परिवार नियोजन व नसबंदी सेवाओं को मुहैया कराने के लिए हुई थी हॉस्पिटल की स्थापना
सबसे मजेदार बात तो यह है कि 2010 में टाटा टिमकेन के अनुदान से एफपीएआई हॉस्पिटल की स्थापना परिवार नियोजन व नसबंदी सेवाओं को मुहैया कराने के लिये हुई थी. लेकिन, वास्तव में यह अस्पताल अपने मूल कार्य को छोड़कर टाटा स्टील ग्रोथ शॉप और उषा मार्टिन कंपनी के ठेका कर्मियों को मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट मुहैया कराता है. यही इसकी आमदनी का मूल स्रोत भी है. वहीं, हॉस्पिटल की इस आमदनी को एफपीएआई मुख्यालय ने साइट सेवर्स को हर्जाना भरने में लुटा दिया. एफपीएआई अगर एक करोड़ रुपयों के गबन में शामिल नहीं होती तो दोषी नीरज कुमार सिंह से गबन के रुपयों की वसूली करके साइट सेवर्स के रुपये लौटा सकती थी. लेकिन एफपीएआई प्रबंधन ने गम्हरिया स्थित अपने हॉस्पिटल की गाढ़ी कमाई लगभग 35 लाख रुपयों को मुख्यालय मंगवा कर साइट सेवर्स को हर्जाना के तौर पर भुगतान किया.
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लगभग दो सालों तक टीएमएच के डॉक्टरों ने किया यहां काम
उल्लेखनीय है कि अस्पताल की स्थापना के कुछ साल बाद तक टीएमएच के कुछ डॉक्टर यहां सेवा भाव से काम करने के लिए आते थे. लगभग दो साल तक टीएमएच के डॉक्टरों ने यहां सेवा दी. लेकिन बाद में टीएमएच ने नियम बना दिया कि टीएमएच का कोई डॉक्टर बाहर काम नहीं करेगा. इसके बाद टीएमएच के डॉक्टरों ने एफपीएआई हॉस्पिटल में सेवा देना बंद कर दिया. वहीं, 2016 में यहां एमबीबीएस डॉ. पीएन मिश्रा को बतौर मेडिकल ऑफिसर नियुक्त किया गया. लेकिन, इस लुटेरे अस्पताल ने डॉ. पीएन मिश्रा से लगभग साल भर 45 हजार रुपये वेतन पर सेवा लेने के बाद बिना एक पैसा दिए उन्हें भगा दिया. लेकिन, उन्हीं के सर्टिफिकेट पर सरायकेला सिविल सर्जन ऑफिस से एफपीएआई अस्पताल का अगले दो साल तक पंजीकरण कराता रहा.
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अस्पताल में मात्र एएनएम के पास ही है डिग्री
हालांकि, दो साल के बाद से पंजीकरण नियम का पालन करना भी बंद कर दिया गया. यहां इस समय डॉ. डीसी सरकार बतौर मेडिकल ऑफिसर काम कर रहे हैं, जिनके पास एमबीबीएस अल्टरनेट मेडिसिन की डिग्री है. इसका मतलब ही होता है झोलाछाप डॉक्टर. इस समय इस अस्पताल में कुल 11 लोग काम कर रहे हैं. इनमें से मात्र एक एएनएम के पास ही डिग्री है, बाकी सब बिना किसी डिग्री के ही काम कर रहे हैं.
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पिछले कई सालों से अस्पताल का पंजीकरण भी फेल
जिस संकल्पना के साथ इस अस्पताल की स्थापना की गई थी, उसमें प्रावधान था कि एक एमबीबीएस डिग्रीधारी फुल टाइमर मेडिकल ऑफिसर, एक लेप्रोस्कोपिक सर्जन, एक एनिस्थिशिया स्पेशलिस्ट, एक डिग्रीधारी तकनीशियन और क्वालिफाइड नर्स के साथ अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी. लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. यहां तक कि इस अस्पताल का पिछले कई सालों से पंजीकरण भी फेल है. इसके बावजूद यह अस्पताल टाटा स्टील ग्रोथ शॉप व उषा मार्टिन कंपनी के ठेका कर्मियों का प्रति मजदूर तीन सौ रुपये लेकर छह महीने के लिए मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट बना रहा है, जिसकी वैधता भी पूरी तरह से संदिग्ध है.
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बिना मेरी अनुमति के मेरे सर्टिफिकेट से पंजीकरण कराना गलत : डॉ. पीएन मिश्रा
वहीं, इस संबंध में पूर्व मेडिकल ऑफिसर डॉ. पीएन मिश्रा ने कहा कि मैं पहले ही एफपीआई हॉस्पीटल छोड़ चुका हूं. यदि मेरे सर्टिफिकेट पर वहां का एक बार भी बिना मेरी अनुमति के पंजीकरण कराया गया है, तो यह गलत है. उचित मंच पर इसकी शिकायत होगी. उस अस्पताल का मुख्य काम परिवार नियोजन के लिए काम करना है. यदि ये काम नहीं हो रहा है और बिना पंजीकरण के अस्पताल चल रहा है तो ये जांच का विषय है.
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