Jamshedpur : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू का कहना है कि आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है. आज दुनिया की 7000 भाषाओं में से 40 फीसदी भाषायें विलुप्त होने की कगार पर है. इसमें सबसे खतरनाक स्थिति आदिवासी भाषाओं की है. यह डेंजर जोन पर पहुंच गया है. इनको भारत देश और राज्यों में कोई विशेष तवज्जो नहीं दी जाती है. सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आदिवासी प्रदेश झारखंड की है.
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संताली भाषा बने राज्य की प्रथम राजभाषा
सालखन मुर्मू का कहना है कि अविलंब सर्वाधिक बड़ी और राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त आदिवासी भाषा-संताली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जाये. बाकी झारखंडी आदिवासी भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल करते हुए समृद्ध किया जाये. दूसरी तरफ आदिवासी समाज को भी खुद अपनी भाषाओं को बचाने, बढ़ाने और समृद्ध करने के सभी उपायों को सार्थक बनाना होगा.
आदिवासियों के लिये हासा-भाषा ही है लाइफ लाइन
आदिवासियों के लिए उनकी हासा और भाषा ही लाइफ लाइन (जीवन रेखा) है. आदिवासी समाज को विदेशी भाषा, संस्कृति और धर्मों से सावधान होने की भी जरूरत है. संताली भाषा को 22 दिसंबर 2003 को 8वीं अनुसूची में शामिल करने के महान उपलब्धि में संताली भाषा मोर्चा का योगदान ऐतिहासिक रहा है. उसमें शामिल सहयोगी सभी आंदोलनकारियों को आज विशेष जोहार.
आंदोलनरत विद्यार्थियों को मारी गयी थी गोली
जिसे 21 फरवरी 1952 को बंगला भाषा के लिए आंदोलनरत विद्यार्थियों को ढाका विश्वविद्यालय, तब पूर्वी पाकिस्तान में पुलिस प्रशासन की ओर से गोलियों से भून दिया गया था और अनेक भाषा प्रेमी आंदोलनकारी विद्यार्थी शहीद हो गए थे. जो उर्दू की जगह बंगला भाषा की मान्यता के लिए संघर्षरत थे।.उन्हीं की स्मृति में यूनेस्को ने 1999 में यह प्रस्ताव पारित किया था कि 21 फरवरी की तारीख को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रुप में मनाया जाये. तत्पश्चात संयुक्त राष्ट्र ने इसको मान्यता प्रदान कर दी. दिवस के पालन की परंपरा अब सर्वत्र हो रहा है.
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