Jamshedpur (Mujtaba Haider Rizvi): मोहर्रम का चांद आज शनिवार को नजर आ जाएगा. आज चांद रात है. चांद रात से ही मजलिस व मातम का सिलसिला शुरू हो जाएगा. अकीदतमंद रसूल-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. को उनके नवासे और अहलेबैत के घराने की शहादत का पुरसा देंगे. मानगो के जाकिर नगर में इमामबाड़ा हजरत अबूतालिब में शुक्रवार की रात से ही मजलिस शुरू हो गई है. साकची में भी हुसैनी मिशन की तरफ से मजलिस का आयोजन होगा. मजलिस का ये सिलसिला 12 मोहर्रम तक चलेगा.
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सात व नौ मोहर्रम की रात को साकची में मातमी जुलूस
सात मोहर्रम और नौ मोहर्रम की रात को साकची में मातमी जुलूस निकलेंगे. शिया समाज के वरिष्ठ बुद्धिजीवी इफ्तेखार अली रिजवी के घर भी मजलिस का फर्श बिछाया गया है. उन्होंने बताया कि पांच मोहर्रम तक वह जमशेदपुर में मजलिस करेंगे इसके बाद अपने वतन चले जाएंगे. समाज के वरिष्ठ पदाधिकारी और करीम सिटी कालेज के प्रोफेसर आले अली ने बताया कि रसूल-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. के नवासे और उनकी आल को 10 मोहर्रम को कर्बला में शहीद कर दिया गया था. इस वजह से ही मोहर्रम मनाया जाता है. यह गम के दिन होते हैं.
67 दिनों तक चलेगा मोहर्रम का शोक, शिया समाज के लोग खुशी का कोई काम नहीं करते
मोहर्रम का शोक 67 दिनों तक चलेगा. शिया बुद्धिजीवी इफ्तेखार अली रिजवी बताते हैं कि इन दिनों में शिया समाज के लोग खुशी का कोई काम नहीं करते. लाल और पीले रंग की पोशाक नहीं पहनते. इस दौरान उनके कपड़े काले रंग के ही होते हैं जो शोक का प्रतीक है. घरों में अच्छे पकवान नहीं बनाए जाते. कढाही नहीं चढ़ती और सादा भोजन किया जाता है. साथ ही किसी भी तरह के शादी-ब्याह या खुशी के समारोह में शिरकत नहीं करते. यही नहीं, किसी को इन दिनों में मुबारकबाद देना भी मना है. उन्होंने बताया कि यजीद ने इमाम हुसैन और उनके घर वालों को शहीद करने के बाद महिलाओं और बच्चों को कैद कर सीरिया की राजधानी दमिश्क में जेल में डाल दिया था. बाद में उन्हें रिहा किया गया था और ये काफिला नौ रबीउल अव्वल को अपने वतन मदीना पहुंचा. इसीलिए मोहर्रम का शोक 67 दिनों तक चलता है.
मुबारकबाद देने का नहीं है ये नया साल
शिया बुद्धिजीवी इफ्तेखार अली रिजवी बताते हैं कि यह नया साल कोई खुशी नहीं लाता है. इसलिए इसमें खुशी का कोई निशान नहीं है. वह बताते हैं कि अगर इंसान जरा इतिहास पर जोर दे तो उसे सब कुछ समझ में आ जाएगा. इस्लामिक नया साल हिजरत से शुरू होता है. यानि एक मोहर्रम को ही पैगंबर-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. ने हिजरत की थी. यानि, उन्हें मक्का छोड़ना पड़ा था. रात के अंधेरे में अपना घर बार छोड़ कर मक्का छोड़ कर वह मदीने के लिए निकले थे. उनके घर को मक्के के 40 राक्षस तलवार लेकर घेरे हुए थे. यह लोग उस नए साल की रात को पैगंबर -ए-अकरम को कत्ल करने पर आमादा थे. मगर, अल्लाह पाक ने अपने रसूल को हिजरत का हुक्म दिया. वह कहते हैं कि कोई वफादार मुसलमान इस दिन को कैसे सेलीब्रेट कर सकता है.
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