Jamshedpur : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने आदिवासी विरोधी फैसला करने वाले रांची सदर के एसडीओ के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है. कहा गया है कि आदिवासियों के प्रति संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद संविधान का शपथ लेकर कार्यरत अधिकांश कार्यपालिका का रवैया लगभग आदिवासी विरोधी तो है ही, संविधान विरोधी भी है. झारखंड के राज्यपाल जो आदिवासियों के संरक्षक भी हैं. उनको दो बार जांच उपरांत उचित कार्रवाई के लिए आग्रह किया गया है. मगर अबतक कोई कार्रवाई होता प्रतीत नहीं हो रहा है. अनुमंडल पदाधिकारी सदर, रांची, झारखंड का तुगलकी फरमान किसी भी संविधान-कानून से संचालित जनतंत्र में अपराध जैसा है. हम न्याय और सम्मान के लिए मान्य उच्च/ उच्चतम न्यायालय जाने को मजबूर हो सकते हैं. साथ ही एसडीओ के खिलाफ sc / st atrocities Act 1989 के तहत अपनी शिकायत भी किसी सक्षम प्राधिकारी के समक्ष दर्ज कर सकते हैं.
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संतली राजभाषा जनसभा की नहीं दी गयी थी अनुमति
आदिवासी सेंगेल अभियान, एक आदिवासी जन संगठन ने 30 अप्रैल, 2022 को रांची के मोरहाबादी मैदान में संतली राजभाषा जनसभा के आयोजन की घोषणा की गयी थी. जिसमे देश के लगभग सभी संताल आदिवासी सांसद/विधायक/मंत्री/मुख्यमंत्री आदि को लिखित आमंत्रित किया गया था. इस निमित 18 अप्रैल 2022 को आपके रायरंगपुर निवास में मिलकर आपको भी संताली राजभाषा रैली, रांची में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था. मैदान में जनसभा की अनुमति संबंधी पत्र 21.2.2022, 6.4.2022 और 20.4.2022 को प्रदान किया गया था. उपायुक्त, रांची ने 20.4.2022 को सेंगेल के प्रतिनिधियों को अपने कार्यालय में अनुमति प्रदान करने का आश्वासन भी दिया था परन्तु किसी भयंकर षड्यंत्र के तहत हमें आखिरी समय निर्धारित तिथि 30 अप्रैल 2022 के पूर्व 29 अप्रैल 2022 को अनुमति नहीं देने की सूचना दी गई. देश और विदेश से आनेवाले संताल प्रतिनिधियों को मानसिक, आर्थिक, शारीरिक कष्ट के साथ घोर अपमानित होना पड़ा है. तत्पश्चात 5 मई, 2022 को एक बड़ी पार्टी को बड़ी रैली की अनुमति वहीं दी गयी. क्या यह आदिवासियों के साथ पक्षपातपूर्ण नहीं है ? कोरोना संबंधी कारण की पुष्टि के लिये 8.6.2022 के RTI का उत्तर संबंधित विभाग से अबतक नहीं मिला है. यहां भी सच्चाई छिपाने का षड्यंत्र है.
सालखन ने ये किये सवाल
1) क्या भारत देश में कोई भी पदाधिकारी पक्षपातपूर्ण, अविवेकपूर्ण, अन्यायपूर्ण फैसले लेने को आज़ाद है?
2) क्या उस प्रकार के पदाधिकारी को उचित जांचोपरांत दोषी पाए जाने पर दंडात्मक कार्यवाही नहीं करना चाहिए ?
3) क्या देश के नागरिकों और खासकर आदिवासी नागरिकों को ऐसे आदिवासी विरोधी, संविधान कानून विरोधी अफसरों के हवाले अपमानित होने के लिए छोड़ देना चाहिए ?
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