Satya Sharan Mishra
Ranchi : झारखंड में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड यानी DMF की राशि इतनी पर्याप्त है कि खनन प्रभावित जिलों का विकास बड़ी आसानी से हो सकता है. फिर भी राज्य के खनन प्रभावित क्षेत्र बदहाल हैं. उनकी सूरत नहीं बदली. देश भर में जिला खनिज फंड में करीब 45,000 करोड़ रुपये जमा हैं. झारखंड में 6533 करोड़ रुपये जमा हैं. झारखंड में 24 नवंबर 2015 को डीएमएफटी की स्थापना हुई थी. 5 साल में इस फंड में राज्य के 6533 करोड़ रुपये जमा हो गये. 2020 में कोरोना के कारण डीएमएफ की राशि खर्च नहीं हो सकी, लेकिन इससे पहले भी हर वित्तीय वर्ष में फंड की 70 फीसदी राशि रखी रह गयी.
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1 करोड़ से ज्यादा की योजना स्वीकृत नहीं कर सकते डीसी
सरकार के पास पैसे तो हैं. योजनाएं भी हैं, लेकिन खर्च करने की राह में कई रोड़े हैं. डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फंड (ट्रस्ट) की न्यास परिषद का अध्यक्ष जिले के डीसी होते हैं. लेकिन उन्हें सिर्फ 1 करोड़ रुपये तक की योजना स्वीकृत करने का अधिकार दिया गया है. वहीं 1 से 5 करोड़ रुपये तक की राशि स्वीकृत करने के लिए प्रबंधकीय समिति की सहमति जरूरी है. 5 करोड़ से ऊपर की योजना के लिए मंत्रिमंडल की सहमति जरूरी है.
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DMFT में विधायकों का अधिकार क्षेत्र सीमित
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घोषणा की है कि अब विकास कार्यों में विधायक डिस्ट्रिक मिनरल फंड का उपयोग कर सकेंगे. विधायक डिस्ट्रिक मिनरल फंड की कितनी राशि के उपयोग की अनुशंसा कर सकते हैं. किस-किस योजना का चयन कर सकते हैं. इसकी कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं हैं. वैसे भी विधायक पहले से डीएमएफ की न्यास परिषद के सदस्य हैं, लेकिन उनका अधिकार सीमित है. देखना ये है कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद विधायकों का अधिकार क्षेत्र कितना बढ़ता है.
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प्रबंधकीय समिति के पास न्यास परिषद से ज्यादा पावर
डीएमएफ की 1 से 5 करोड़ रुपये की योजना की स्वीकृति के लिए प्रबंधकीय समिति की सहमति चाहिए. प्रबंधकीय समिति में डीसी के अलावा दूसरे सदस्य भी अधिकारी भी होते हैं. इसके लिए न्यास परिषद के सदस्यों की मंजूरी जरूरी नहीं है. यानी न्यास परिषद के सद्स्य सिर्फ योजनाओं को लेकर सुझाव दे सकते हैं. योजनाओं के क्रियान्वयन और दूसरे महत्वपूर्ण कार्य प्रबंधकीय समिति के जिम्मे हैं.
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साल में 9 बैठकें जरूरी, लेकिन होती हैं एक या दो
नियम के मुताबिक डीएमएफटी की न्यास परिषद की बैठक प्रत्येक तिमाही में एक बार होनी चाहिए. अध्यक्ष यानी डीसी को यह बैठक बुलाने का अधिकार है. वहीं प्रबंधकीय समिति की बैठक को साल में कम से कम 6 बार बुलाने का प्रावधान है. कोरोना काल में पिछले वित्तीय वर्ष में बैठकें लंबित रही. उससे पहले भी साल में 1-2 बैठकें ही आयोजित हुई.
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योजनाओं की कमी नहीं, लेकिन रखा रह जाता है फंड
डीएमएफटी से प्राप्त होने वाली 60 फीसदी राशि को खनन प्रभावित क्षेत्र में पेयजल, पर्यावरण सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला कल्याण, कौशल विकास और स्वच्छता पर खर्च किया जाता है. 40 फीसदी राशि भौतिक संरचना, सिंचाई, ऊर्जा, जल संचयन जैसे कार्यों में खर्च होती है. झारखंड में पिछले 5 सालों में डीएमएफटी की राशि धरी रह गयी. इन क्षेत्रों में कार्य नहीं हो सका. अब राज्य के विधायकों पर निर्भर करेगा कि वे कैसे डीएमएफटी की राशि का सुदप्रयोग करके खनन प्रभावित क्षेत्रों की दशा सुधारेंगे.
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6355 करोड़ में खर्च हुए सिर्फ 519.85 करोड़ रुपये
झारखंड की कोयला राजधानी धनबाद के पास डीएमएफ की सबसे ज्यादा राशि है. धनबाद के डीएमएफटी फंड में 1633 करोड़ रुपये जमा हैं. रांची के पास डीएमएफटी फंड के 93.31 करोड़ रुपये हैं. सबसे कम राशि गढ़वा के पास 1.85 करोड़ रुपये है. झारखंड के पास रखी डीएमएटी की 6355 करोड़ की राशि में 15 मार्च 2021 तक महज 519.85 करोड़ रुपये ही खर्च हो पायी है.
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