Kiriburu : पश्चिम सिंहभूम स्थित नोवामुंडी प्रखंड के टाटीबा गांव में रहने वाले बिरहोर परिवारों के कुछ पुराने सदस्य आज भी अपनी पुरानी संस्कृति व जंगल से आधारित रोजगार से जुड़ी व्यवस्था को बचाए रखने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं. पर्याप्त बाजार उपलब्ध नहीं होने की वजह से इनके द्वारा बनाए गए वन आधारित उत्पाद, जड़ी-बूटी आदि नहीं बिकने की वजह से ये बिरहोर परिवार आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हैं. टाटीबा निवासी हपा बिरहोर, जीवन सिंह बिरहोर, ठिरकी बिरहोर, झलक मुनी बिरहोर, सुकरो बिरहोर, छापा मुनी बिरहोर आदि ने बताया कि उनकी पौराणिक व वर्तमान इतिहास जंगल से जुड़ी रही है.
जंगल ने ही अब तक रहने, खाने व पहनने के संसाधन उपलब्ध कराए
बिरहोरों ने कहा कि जंगल ने ही उन्हें अब तक रहने, खाने व पहनने के संसाधन उपलब्ध कराए हैं. लेकिन अब मशीनों व नई तकनीक दौर ने उनसे सब कुछ छीन आर्थिक समस्या पैदा कर दी है. उन्होंने कहा कि प्रारम्भ से वे जंगल की सियाली पेड़ की छाल से काफी मजबूत रस्सी बनाते आ रहे हैं. इसके अलावे लकड़ी, पत्ता, घांस आदि से चटाई, झाडू़ अनेक सामान के साथ-साथ कीमती जड़ी-बूटी लाकर उसे क्षेत्र में लगने वाली साप्ताहिक हाट बेचते थे. वहां हमारे सामान जल्द बिक जाते और उचित पैसा भी मिलता था. लेकिन अब उनके द्वारा तैयार सामान नहीं बिक पाता. इसकी मुख्य वजह मशीनीकरण का बढ़ावा है. पहले उनके द्वारा बनाई रस्सी का इस्तेमाल पालतू जानवरों को बांधने, पानी ढोने के लिए बांस की बहंगी में बांधने, भारी सामान को घर की धरनी से बांध कर टांगने समेत तमाम कार्यों में होता था. अब परिवर्तन के इस दौर में हमारी ऐतिहासिक परम्परा विलुप्त होती जा रही है. हमारी नई पीढ़ी के युवा भी पुरानी परम्परा को बरकरार रखने के बजाए आधुनिकता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं जो चिंता का विषय है.
सरकार बाजार उपलब्ध कराए
उन्होंने कहा कि सरकार अगर हमारे द्वारा बनाए गए समान के लिए बाजार उपलब्ध करा दे तो हम स्वरोजगार से जुड़ आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं. सरकार हमें खाने व रहने की सुविधा तो प्रदान की है लेकिन रोजगार की व्यवस्था नहीं की है. दूसरी तरफ सांसद गीता कोड़ा ने भी बीते दिन संसद में आदिवासियों को वन आधारित उद्योग व स्वरोजगार उपलब्ध कराने हेतु सवाल उठाे हैं. इसपर केन्द्र सरकार ने इस दिशा में सकारात्मक पहल करने की बात कही है.