Kiriburu (Shailesh Singh) : सारंडा वन प्रमंडल अन्तर्गत ससंग्दा रेंज (किरीबुरू) कार्यालय के ठीक लगभग 200 मीटर नीचे स्थित सारंडा की ऐतिहासिक व प्राकृतिक प्रोस्पेक्टिंग झरना आज अपना अस्तित्व खोती जा रही है. झरने के जल स्तर में गिरावट आयी है. जबकि पूर्व में इस झरने के स्वच्छ पानी से मेघाहातुबुरू की जनता न सिर्फ अपनी प्यास बुझाती थी, बल्कि झरने के पानी से टोंटोगड़ा, झाड़बेड़ा, होंजोरदिरी, कुमडीह आदि जंगल गांवों के ग्रामीण खेती कर आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर थे. आज जल स्तर में गिरावट से झरने के अस्तित्व के साथ सारंडा के ग्रामीणों के सामने भी जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
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यहां के लोग पहले से हीं पेयजल संकट का सामना कर रहे है
उल्लेखनीय है कि वन व सरकारी विभाग तथा आम जनता के सामूहिक प्रयास से अस्तित्व खोते इस झरने को बचाया जा सकता है. इस झरने का अस्तित्व बच जायेगा तो वह किरीबुरू, मेघाहातुबुरु शहरी क्षेत्रों के अलावे सारंडा के अन्य निचले ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों लोगों का प्यास बुझा सकती है. किरीबुरू एंव मेघाहातुबुरु के लोग पहले से हीं पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं. जानकार बताते हैं की प्रोस्पेक्टिंग झरना को अगर बचाना है तो सबसे पहले झरना के आसपास के क्षेत्रों में भारी पैमाने पर पेड़-पौधे लगाने होंगे. आसपास के जंगलों की कटाई एवं आग को पूरी तरह रोकना होगा. जंगल कटने व आग लगने की वजह से झरना क्षेत्र की पूरी पहाड़ी पेड़ व घांस विहीन हो गई है. पेड़-पौधे, घांस, झाड़ी अगर होते तो उसके पत्ते भी गिरकर सड़तें एवं वर्षा का पानी को रोककर जमीन के अंदर प्रवेश कराते. इससे झरने के आसपास की पहाड़ियों पर स्थित जलश्रोत का भंडार निरंतर रिचार्ज होते रहते और झरने का फ्लो बरकरार रहता.
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