Kiriburu : भाकपा माओवादी की दक्षिणी जोनल कमेटी के प्रवक्ता अशोक ने प्रेस बयान जारी कर संगठन के जोनल सदस्य सुरेश मुंडा उर्फ श्रीपति मुंडा और एरिया सदस्य लोदरो लोहरा उर्फ सुभाष को संगठन से निकालने की घोषणा की है. इन दोनों ने एक मार्च को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. अशोक ने बताया कि उक्त दोनों पार्टी और जनता के साथ विश्वासघात और गद्दारी करके पार्टी और क्रांति को छोड़कर युद्ध के मैदान से भाग खड़े हुए हैं. उनके इस घृणित व कायराना कदम की दक्षिणी जोनल कमेटी तीव्र घृणा के साथ निन्दा व भर्त्सना करती है. विदित हो कि सुरेश मुंडा उर्फ श्रीपती मुंडा ग्राम बारूहातू, थाना बुंडू, जिला रांची और लोदरो लोहरा ग्राम कोचांग, थाना अड़की, जिला खूंटी के रहने वाले हैं. ये दोनों 12 फरवरी को अपने दल के कामरेडों को धोखा देकर एक कारबाईन, मैगजीन और गोली लेकर फरार हो गए थे.
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पार्टी से भाग कर दोनों पुलिस की शरण में चले गए
वे पार्टी से भाग कर सीधे पुलिस और खुफिया विभाग के बड़े अफसरों की शरण में चले गये. कुछ दिन पुलिस की शरण में रहने के बाद एक मार्च को रांची पुलिस के पास अत्मसमर्पण कर दिये. अशोक ने बताया कि वर्ष 1996-1997 में जब पार्टी ने बुंडू-तमाड़ क्षेत्र में कामकाज की शुरुआत की और सुरेश के गांव बारूहातु पहुंची तो वहां के लोग भी पार्टी से जुड़े और संगठन का गठन कर पार्टी का कामकाज शुरू किया. वह 1998-99 से पार्टी के साथ जुड़ा था. छोटी उम्र के कारण शुरू में उसके गांव में हमारा दस्ता जाने पर वह खाने-पीने की व्यवस्था करने में मदद करता था और अगल-बगल के गांवों तक दस्ता के साथ प्रचार-प्रसार में जाता था. उसी क्रम में पहली बार 2004 में पुलिस ने पकड़ कर उसे जेल भेज दिया था.
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सुरेश को 2012 में पोड़ाहाट का जिम्मा मिला था
जेल से एक-डेढ़ साल के बाद निकला तो वह अपने घर में ही रहने लगा. गुमला- सिमडेगा इलाके में करीब एक साल रहकर 2011 के अन्त और 2012 की शुरुआत में दक्षिणी जोनल कमेटी अन्तर्गत पश्चिमी सबजोन (पोड़ाहट) क्षेत्र में आया और तब से वहीं काम-काज का जिम्मा दिया गया था. 2012 में सुरेश मुंडा को एरिया कमेटी में लिया गया. वर्ष 2014 में पोड़ाहाट सबजोनल कमेटी का पुनर्गठन के दौरान उसको भी उस सबजोनल कमेटी में लिया गया और वह वहीं कार्यरत था. 2015 में दक्षिणी जोनल कमेटी के तृतीय सम्मेलन में सुरेश मुंडा को दक्षिणी जोनल कमेटी के एक वैकल्पिक सदस्य के रूप में चुना गया था. 2015 से 2019 तक वह पोड़ाहट सबजोन में ही कार्यरत था. 2019 में जोनल कमेटी की चौथी बैठक के दौरान सुरेश मुंडा और जीवन कंडुलना के बीच कामकाज को लेकर कुछ विवाद हुआ. जीवन कंडुलना और सुरेश के बीच दोस्ताना संबंध नहीं था. दोनों में अहम् था, जिसके कारण दोनों साथ – साथ काम करना नहीं चाहते थे. वर्ष 2020 के जुलाई में विवाद के बाद सुरेश ने जीवन कंडुलना के साथ पोड़ाहाट में काम करने से इंकार किया और नहीं गया.
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संगठन के काम में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे दोनों
उसी समय से सांगठनिक कामकाज के प्रति उसका दिलचस्पी नहीं थी. जिसके कारण वह लेवी वसूलने और अन्य छोटे – मोटे कामों में ही दिलचस्पी लेता था. सुरेश व्यक्तिवादी, घमंडी और बड़ी-बड़ी डींगें हांकता था. सुरेश मुंडा के अन्दर व्यक्तिगत स्वार्थ और सुविधावादी गैर – सर्वहारा चिंतन पैदा हो चुका था, जिसके कारण आज के दुश्मन के प्रचण्ड घेराव – दमन अभियान को देखकर घबरा गया और संघर्ष में मरने के डर से पार्टी से भागना उचित समझा और भाग गया. लोदरो लोहरा पार्टी में आने से पहले ड्राइवर का काम करता था. गांव में वह ट्रैक्टर चलाता था और पुलिस के साथ लगाव रखता था. पार्टी द्वारा मना करने और उसके साथ राजनीतिक बातचीत करने पर पार्टी के साथ जुड़ा. लेकिन अपनी पुरानी बुरी आदत से इतना लाचार था कि पार्टी में आने के बाद भी उसे छोड़ नहीं पाया.
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उनकी बुरी आदतों में जनता को डराने-धमकाने, गांव जाने से ही नशा का सेवन करना और महिलाओं के साथ गलत ढंग से पेश आना व बदसलूकी करना आदि था. उसको बहुत बार समझाया गया और उसको सुधरने का मौका भी दिया गया लेकिन वह नहीं सुधरा. नहीं सुधरने के कारण अंततः अनुशासनिक कार्रवाई करते हुए उसको पद से निलंबित भी किया गया था. अनुशासनिक कार्रवाई की सजा की अवधि तक वह अनुशासन का पालन किया. लेकिन वह पूर्णरूप से अपने आपको सुधारा नहीं. इसीलिए जब सुरेश पार्टी छोड़कर भागने की योजना बनाया तो उसने अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए लोदरों को भी साथ में लिया और लोदरों भी उसके साथ शामिल हो गया.