Ranchi: राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान रिम्स को एम्स की तर्ज पर विकसित करने की बातें होती हैं. रिम्स के निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद इसे एम्स की तरह देखना भी चाहते हैं. लेकिन यहां इलाज कराने वाले मरीजों को बेड तक मयस्सर नहीं हो पा रहा है. अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग का हाल सबसे ज्यादा खराब है. यहां दर्जनों मरीजों का इलाज अस्पताल के गलियारे में होता है. कड़ाके की ठंड में दिन तो किसी तरह कट जाती है, लेकिन रात काटना सबसे ज्यादा कठिन हो जाता है. मरीजों का कहना है कि ऐसी स्थिति में मरीज तो क्या उनकी देखभाल में लगे परिजन भी बीमार पड़ सकते हैं.
जमीन पर इलाज होने के कारण लगती है ज्यादा ठंड
गढ़वा से आए मरीज के परिजन सोमनाथ ने कहा कि पिछले 20 दिनों से यहां पर इलाज करवा रहे हैं. हाल के दिनों में ठंड बढ़ी है. रात में सर्द हवा चलती है. जिस कारण मरीजों को ज्यादा परेशानी होती है. गलियारे में इलाज हो रहा है. घर से लाया हुआ कंबल ठंड से बचाने में नाकाम साबित हो रहा है. लेकिन जमीन पर इलाज होने के कारण ठंड ज्यादा लगती है.
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दिन तो किसी तरह कट जाती है, रात काटना मुश्किल
सड़क हादसे में घायल धनंजय के परिजन ने कहा कि अस्पताल में इलाज की उम्मीद लेकर आया हूं, लेकिन व्यवस्था देख कर मन और ठंड से तन कांप उठता है. दिन तो किसी तरह कट जाती है, लेकिन रात काटना मुश्किल हो जाता है. करवट बदल-बदल कर उजाले का इंतजार करते हैं.
मरीजों की संख्या अधिक, इसलिए जमीन पर इलाज करना हमारी मजबूरी
वहीं रिम्स अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि हमारी प्राथमिकता इलाज करना है. अस्पताल में मरीजों की संख्या अधिक हो जाने के कारण हम सभी मरीजों को बेड नहीं उपलब्ध करा पाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य के अंतिम पंक्ति तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने का दम्भ भरने वाली सरकार मरीजों को बेड तक उपलब्ध नहीं कर पा रही है.
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