Ranchi: दो दिवसीय राष्ट्रीय जतरा महोत्सव में आदिवासियों की एकजुटता का अभाव दिखाई दिया. रांची शहर में सैकड़ों आदिवासी संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और खोड़हा मंडलियां होने के बावजूद महोत्सव में शामिल होने के लिए केवल एक-दो खोड़हा मंडलियां ही पहुंच पाईं.
इसे भी पढ़ें –केंद्रीय बजट समावेशी विकास व सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदमः सुदेश महतो
पहली बार नहीं पहुंचे पड़हा राजा
राष्ट्रीय जतरा महोत्सव की शुरुआत 2024 में हुई थी, जिसका उद्देश्य गांव से लेकर शहर तक होने वाले खोड़हा को एक मंच पर लाना था. पिछले वर्ष 200 से अधिक खोड़हा मंडलियों ने इस महोत्सव में भाग लिया था. जिससे आदिवासी संगठनों के बीच जतरा के प्रति गहरी रुचि दिखाई दी थी. लेकिन इस वर्ष, पहली बार पड़हा राजा और खोड़हा मंडलियों के बीच दूरियां दिखाई दीं.
आदिवासी एकजुटता की कमी
महोत्सव में हजारों लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए थे, लेकिन आदिवासी संगठनों और कार्यकर्ताओं के बीच आपसी बिखराव स्पष्ट रूप से देखा गया.
इसे भी पढ़ें –केंद्रीय बजट में झारखंड के लिए कुछ भी प्रस्तावित नहीं किया गयाः झामुमो
[wpse_comments_template]