Amit singh
Ranchi : झारखंड पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के इंजीनियरों की वजह से राजकोष पर करोडों का अतिरिक्त बोझ पडा. इस खर्च का फायदा जनता के बजाए इंजीनियरों ने खुद उठाया और उठा रहे हैं. क्योंकि शहरी जलापूर्ति योजना का स्टीमेट जरूर भूकंप जोन-3 का बना था. मगर वास्विक काम जोन-2 के तहत ही हो रहा है. नगर विकास विभाग ने इस तकनीकी गड़बड़ी को 2014 में ही पकड़ लिया था.
नगर विकास विभाग ने पुनरीक्षित एस्टिमेट से वित्त विभाग को भी अवगत कराया था. जिसके बाद वित्त विभाग ने विकास आयुक्त की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर जांच कराने की अनुशंसा की थी. जांच को तीन माह के अंदर पूरा कर रिपोर्ट देने की बात कही थी. वित्त विभाग ने कहा था कि उन अधिकारियों और इंजीनियरों को चिह्नित कर दंडित किया जाए, जिनके कारण लागत मूल्य 288 करोड़ रुपए से बढ़कर 373 करोड़ रुपए हो गई.
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कई शर्त के बाद पुनरीक्षित बजट को मिली थी कैबिनेट से प्रशानिक स्वीकृति
पेयजल विभाग द्वारा शहरी जलापूर्ति योजना का पुनरीक्षित बजट 2014 में तैयार किया गया. पुनरीक्षित बजट को लेकर वित्त विभाग ने कई जानकारी मांगी थी. वहीं कहा था कि पेयजल जलापूर्ति योजना के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी बननी चाहिए. जो खर्च का हिसाब-किताब रखेगी.
कमेटी योजना के कार्यों की मॉनिटरिंग करेगी. तभी पुनरीक्षित 373 करोड़ रुपए की राशि पर कैबिनेट से प्रशासनिक स्वीकृति की पहल होगी. वित्त विभाग की शर्तों को पूरा करने के बाद ही नगर विकास विभाग पुनरीक्षित प्राक्लन पर कैबिनेट की प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त कर सकता है.
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नगर विकास के प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने उठाया था सवाल
नगर विकास विभाग ने प्रशासनिक स्वीकृति के लिए कैबिनेट में फाइल भेजने से पूर्व वित्त विभाग में फाइल भेजी. 2014 में नए सिरे से शहरी जलापूर्ति योजना का डीपीआर बना, तो लागत मूल्य 288 करोड़ रुपए से बढ़कर 373 करोड़ रुपए हो गया. यानी 84.5 करोड़ की अतिरिक्त राशि राज्य सरकार को वहन करनी है. इस बढोत्तरी पर वित्त विभाग ने सवाल खड़ा किया था. और नगर विकास से पूछा था कि स्टीमेटेड कॉस्ट में इतनी वृद्धि कैसे हो गई? वित्त सचिव के प्रस्ताव पर तत्कालीन वित्त मंत्री ने इस शर्त पर इसे स्वीकृति दी कि जांच के लिए कमेटी बनेगी और दोषी दंडित होंगे.
अब तक क्या हुआ
- 2006-07 में रांची शहरी जलापूर्ति योजना पर का काम शुरू हुआ.
- 2008-09 में केंद्र सरकार ने इस योजना को स्वीकृति दी.
- 2009 में नगर विकास विभाग ने काम करने से मना कर दिया.
- 2010 में योजना पीएचईडी को हस्तांतरित की गई.
- 2010 में पीएचईडी ने हैदराबाद की कंपनी आईवीआरसीएल को काम सौंपा.
- मार्च 2010 में आईवीआरसीएल ने काम शुरू किया. दो बार समय-सीमा बढ़ाई गई.
- जून 2013 में कंपनी को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया.
- 2014 में नए सिरे से डीपीआर बनाने का काम शुरू हुआ.
- 2014 में दो बार टेंडर भी निकला, लेकिन काम आवंटित नहीं हुआ.
- 2016 में पीएचईडी ने 472 करोड़ का पुनरीक्षित प्राक्कलन पर प्रशासनिक स्वीकृति और राशि उपलब्ध कराने की शर्त के साथ प्रस्ताव नगर विकास विभाग को भेजा था. इसमें स्वीकृति मिलने के 21 महीने में काम पूरा करने की बात कही गई है.
- 2016 में काम एलएनटी को सौंपा गया.
- 2021 फरवरी समाप्त हो गया, मगर काम अभी भी बाकी है.
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