Saraikela/Kharsawan : हो भाषा वारंग क्षिति लिपि के खोजकर्ता ओत गुरु लाको बोदरा की 102वीं जयंती 19 सितंबर को मनाई जाएगी. 40 के दशक में गुरु लाको बोदरा ने वारंग क्षिति लिपि की खोज की. अविभाजित सिंहभूम जिला के खूंटपानी प्रखंड के पासेया गांव में 19 सितंबर 1919 को लाको बोदरा का जन्म हुआ था. उन्होंने अपना पूरा जीवन भाषा, संस्कृति, लिपि, धर्म-दोस्तुर, साहित्य व परंपरा को बचाने व जन-जन तक पहुंचाने में लगा दिया. वर्तमान में कोल्हान विश्वविद्यालय के साथ-साथ कोल्हान के विभिन्न विद्यालयों में भी हो भाषा वारंग क्षिति लिपि की पढ़ाई हो रही है. वारंग क्षिति एक आबूगीदा लिपि है, जिसका प्रयोग भारत के झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और असम में बोलने और हो भाषा को लिखने के लिए किया जाता है. लाको बोदरा ने एला ओल इतू उटा, षड़ाषूड़ा सांगेन, ब्ह बूरू-बोडंगा बूरू, षार होरा, पोम्पो, रघुवंश और एनी पुस्तकें लिखी हैं. ये पुस्तकें वर्तमान में विभिन्न विद्यालय और विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रमों में शामिल किया गए हैं.
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गुरु लाको बोदरा ने प्रारंभिक शिक्षा खूंटपानी के प्राथमिक विद्यालय बचमहातु व पुरुनिया मध्य विद्यालय से प्राप्त की. बाद में चक्रधरपुर में माध्यमिक शिक्षा के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए गुरु लाको बोदरा पंजाब गए थे. परंतु उनका मन व ध्यान हो भाषा की लिपि के अनुसंधान पर था. इस दौरान उन्होंने कई पुस्तकालयों में जा कर किताबों की खाक छानी. अपनी लिपि की खोज में कई जंगल-गुफाओं में गए. उन्होंने देश भ्रमण में कई प्राचीन ग्रंथों की पढ़ाई की. मोहनजोदड़ो व हड़प्पा की खोदाई स्थल का भी दौरा किया, जहां उन्हें आदिवासी संस्कृति की जीवंत रुप में झलक दिखाई दी. लाको बोदरा की मेहनत रंग लायी और उन्होंने 40 के दशक में हो भाषा की लिपि वारंग क्षिति लिपि की खोज की. इस लिपि में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं. देश की आजादी के बाद 1954 में उन्होंने एटे तुरतुंग आकड़ा का गठन कर वारंग क्षिति लिपि का विस्तार रुप से प्रचार-प्रसार किया. गुरु लाको बोदरा की वारंग क्षिति लिपि में लिखित कई पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं. इस लिपि की खोज के बाद काफी संघर्ष के बाद तत्कालीन बिहार व ओड़िशा में सरकारी स्तर पर इस भाषा को मान्यता मिली. 1984 से रांची विश्वविद्यालय में हो भाषा विभाग के साथ वारंग क्षिति लिपि की पढ़ाई शुरू हुई और रांची विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम हो भाषा वारंग क्षिति लिपि की पुस्तकें लिखी गईं.