Pravin Kumar
Ranchi: राज्य में जमीन का ऑनलाइन रिकॉर्ड सुरक्षित नहीं है. नेशनल इन्फॉरमेटिक्स एजेंसी (एनआईसी) द्वारा संचालित झारभूमि सॉफ्टवेयर में भूमि संबंधी रिकॉर्ड से छेड़छाड़ कर जमीन की खरीद बिक्री की जा रही है. ताजा मामला कांके अंचल के संग्रामपुर मौजा स्थित खाता नंबर 1 का है. जहां भू-माफियाओं ने जमीन के ऑनलाइन रिकॉर्ड में छेड़छाड़ कर 1 एकड़ 77 डिसमिल मझीहस जमीन की बिक्री कर दी. राजधानी बनने के बाद रांची जिला का कांके अंचल भू-माफियाओं की पहली पसंद रही है. जहां जमीन की हेरा-फेरी के नये-नये हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं. जमीन के हेराफेरी के लिए सरकारी रिकॉर्ड को बदलने से लेकर रिकॉर्ड रूम में भी फर्जी फॉर्म एम तक डालने का खेला भू माफिया कर चुके हैं. अब अंचल में ऑनलाइन माध्यमों से जमीन की हेरा-फेरी की जा रही है. रांची के मझीहस जमीन भू-माफियाओं के निशाने पर है.
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एक करोड़ 48 लाख में बेचा गया 1 एकड़ 77.5 डिसमिल मझीहस जमीन
कांके अंचल के संग्रामपुर मौजा स्थित खाता नंबर 1 के प्लॉट संख्या 456 का 54.50 डिसमिल, 455 का 26.25 डिसमिल, 454 का 12 डिसमिल, 453 का 13.5 डिसमिल, 451 का 6 डिसमिल, 450 का 1.75 डिसमिल, 447 प्लॉट नंबर का 12 डिसमिल, 445 प्लॉट नंबर का 3.5 डिसीजन, 443 एक नंबर का 23 डिसमिल, 442 प्लॉट नंबर का 25 डिसमिल जिसका कुल रकबा 1 एकड़ 77.5 डिसमिल है.
यह जमीन मझीहस मालिक के रूप में दर्ज है. जिसकी रजिस्ट्री जमीन को ऑनलाइन रिकॉर्ड में छेड़छाड़ कर 8 अप्रैल 2021 को किया गया. इस जमीन के विक्रेता के रूप में रूबी दत्ता, राजा दत्ता,आलो दत्ता है. जो कोलकाता नॉर्थ 24 परगना के रहने वाले हैं. जमीन के खरीदार भी दिल्ली के रोहित जैन हैं. जिन्होंने कांके अंचल के संग्रामपुर मौजा में फर्जीवाड़ा कर जमीन की खरीद बिक्री किया है. जमीन की बिक्री एक करोड़ 48 लाख रुपए में की गयी है.
क्या है मझीहस जमीन के लीगल स्टेटस में
1869 से 1880 के बीच में 2482 मौजा में भूईहरी जमीन की मापी की गई थी. उसी में एक प्रकार की भूमि मझीहस के रूप में चिन्हित किया गया. पूर्व जमींदार इस भूमि को आटबटाई देते थे. सीएनटी कानून 1908 लागू होने के बाद इसे प्रिविलेज लैंड के रूप में दर्ज किया गया.
जमींदारी उन्मूलन के समय से ही यह भूमि आदिवासी रैयतों के पास थी. लेकिन इस जमीन का लगान निर्धारण नहीं हुआ. पूर्व जमींदारों ने 1950 में भूमि सुधार कानून लागू होने के बाद मझीहस जमीन का रिटर्न अपने रिटर्न में दर्ज नहीं कराया. इस कारण इसका लगाम निर्धारण जमींदरों के नाम पर नहीं हुआ. मझीहस जमीन पूर्व जमींदारों के एम फॉर्म में भी दर्ज नहीं है. 1962 में भूमि सुधार भूमि हदबंदी अधिनियम आने के बाद खेती करने वालों को भूमि पर अधिकार दिया गया. लेकिन अब तक इसका लगान निर्धारण नहीं किया गया. इस भूमि पर पूर्व जमींदारों का भी कानूनी अधिकार नहीं है. आज भी ऐसे भूमि का लगान निर्धारण नहीं किया गया. राज्य में अब एनआईसी के माध्यम सरकारी रिकॉर्ड में छेड़छाड़ कर गलत तरीके से जमीन बेची जा रही है.
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