- पटना का है रहने वाला, याददाश्त है कमजोर
- पिता बिजली विभाग से रिटायर हैं
- सीएस ने कहा- परिस्थतियां विक्षिप्त बनाती है
Ashish Tagore
Latehar: सुबह के तकरीबन नौ बज रहे थे. दुकानदार ने अपनी दुकान खोली ही थी कि एक विक्षिप्त उसके दुकान पर पहुंचा. सिर के बाल बिखरे थे और जटाओं का रूप ले लिया था. तन पर मैला-कुचैला कपड़ा था, चेहरे व दांतों पर गंदगी की परत जम गयी थी. वह दुकान में आया और कुछ खाना देने का इशारा करने लगा. दुकानदार जब तक कुछ समझ पाता, विक्षिप्त ने दुकान में रखे एक तख्ती को उठायी और उसमें लिखने-पढ़ने लगा. तख्ती में अंग्रेजी के प्रश्न पत्र थे. वह विक्षिप्त धारा प्रवाह उन अंग्रेजी के प्रश्नों को पढ़ने लगा. यह देख कर दुकान में खड़े अन्य लोग हतप्रभ रह गये कि आखिर एक विक्षिप्त सा दिखने वाला आदमी इस प्रकार अंग्रेजी कैसे पढ़ सकता है.
बता दें कि इन दिनों लातेहार में विक्षिप्तों की संख्या काफी बढ़ गयी है. शुभम संदेश ने इसे अपने 11 दिसंबर के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया था.
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पटना का रहने वाला है
यह देख कर दुकानदार व अन्य लोगों ने उससे उसका परिचय पूछा तो उसने बताया कि वह पटना का रहने वाला है और उसका नाम प्रमोद है. वह भटक कर यहां आ गया है. पूछने पर उसने बताया कि उसके घर में सिर्फ पिता हैं. मां और एक बहन गुजर चुकी है. उसके पिता का नाम कामेश्वर सिंह है. बिजली विभाग में काम करते थे और अब रिटायर हो चुके हैं. प्रमोद ने बताया कि उसकी याददाश्त कमजोर है. बातों को भूल जाता है. कई बार घर गया, लेकिन वहां से उसे हमेशा भगा दिया जाता है.
मानवीय व्यवहार की जरूरत : सीएस
सिविल सर्जन डॉ. आशुतोष सिंह ने शुभम संदेश से बातचीत करते हुए कहा कि कोई हमेशा से ही विक्षिप्त नहीं होता है. कभी-कभी परिस्थितियां भी उसे इस हालात में पहुंचा देती है. मानसिक तनाव इसका एक प्रमुख कारण होता है. इसके अलावा अकेलापन या कोई सहारा देने वाला नहीं रहने के कारण भी लोग विक्षिप्त हो जाते हैं. कई बार बच्चों के द्वारा तिरस्कार करने या फिर घर से निकाल देने की स्थिति में भी लोग विक्षिप्त हो जाते हैं. ऐसे लोगों के लिए मानवीय व्यवहार बहुत जरूरी है. उन्हें भी समाज में जीने का अधिकार है. ऐसे लोगों को अस्पतालों में भी भर्ती करा कर इलाज कराया जा सकता है.