Latehar : भारत के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों से पारंपरिक हथियारों के बल पर लोहा लेने वाले आदिवासी सगे भाइयों नीलांबर-पीतांबर के वंशज आज दर-दर भटकने को मजबूर हैं. दोनों रणबांकुरों की कर्मभूमि लातेहार का कुरूद घाटी रहा है, जबकि उनकी जन्मभूमि गढ़वा जिले का भंडरिया प्रखंड का चेमोसनिया ग्राम है. बाल्यावस्था में ही दोनों भाई स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे. दोनों भाइयों ने तीर धनुष एवं पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों के विरुद्ध एक बड़ी लड़ाई छेड़ रखा था. गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से दोनों रणबांकुरे ने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. भारत के स्वाधीनता संग्राम में पारंपरिक हथियारों के बल पर वर्षों तक अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले इन दोनों आदिवासी भाइयों की गाथा को भुलाया नहीं जा सकता है. इनके प्रपौत्र रामनंदन सिंह सदर प्रखंड लातेहार के कोने ग्राम में सपरिवार रहते हैं. अधिकारियों के द्वारा प्रत्येक गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन्हें याद तो किया जाता है, लेकिन उनके संरक्षण एवं विकास के लिए कोई आवश्यक कदम नहीं उठाये जाते हैं. आज भी इन दोनों भाइयों के वंशज दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हैं.
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