Shashi Kant Prasad
Ranchi: BSNL फाइबर की मेंटेनेंस व इंस्टॉलेशन की खराब व्यवस्था के कारण आम उपभोक्ताओं को काफी दिक्कत हो रही है. इससे ग्राहक बीएसएनएल से दूर भागने को मजबूर हो रहे हैं. जब कोई उपभोक्ता फाइबर इंटरनेट कनेक्शन के लिये आवेदन देता है, तो यह निर्णय लेने में दो से तीन सप्ताह लग जाता है कि कनेक्शन कौन लगायेगा. विभाग या विभाग की ओर से नियुक्त निजी एजेंसी.
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बाहरी एजेंसी से ही फाइबर लगवाने के लिए विभाग करता है मजबूर
अब लगभग सभी मामलों में विभाग भी बाहरी एजेंसी से ही फाइबर लगवाने के लिये उपभोक्ताओं को मजबूर करता है. विशेष परिस्थिति में ही विभाग अपने नेटवर्क से फाइबर इंटरनेट कनेक्शन उपभोक्ताओं को दे पाता है. फाइबर इंटरनेट कनेक्शन विभाग लगवाये या उसकी ओर से नियुक्त निजी एजेंसी, लेकिन प्रक्रिया लंबे वक्त तक विचाराधीन ही रहती है. इस दौरान उपभोक्ताओं को यह संदेश दे दिया जाता है कि आपके क्षेत्र में फाइबर इंटरनेट कनेक्शन संभव नहीं है. आप ब्रॉडबैंड कनेक्शन ले लें. एक आम उपभोक्ता भी दोनों की स्पीड के बारे में जानकारी रखता है. जब उसे हाई स्पीड इंटरनेट की जरुरत है, तो वह ब्रॉडबैंड क्यों लेगा.
इन सभी प्रकरणों में विभाग के अंदर आपस में ताल-मेल नहीं है. जिसके कारण फाइबर इंटरनेट कनेक्शन लग जाने के बाद भी बीएसएनएल की तरफ से मोबाइल पर मैसेज आता रहता है कि आप ब्रॉडबैंड कनेक्शन ले लें. क्योंकि आपके इलाके में फाइबर इंटरनेट कनेक्शन की व्यवस्था नहीं है.
ज्यादा स्पीड में विभाग का दिया मॉडम नहीं करता काम
100 MBPS तक की स्पीड के लिये विभाग की ओर से दिया गया मॉडम (MTU) ठीक काम करता है. लेकिन इससे अधिक स्पीड 200 या 300 MBPS के लिये विभाग की ओर से दिया गया मॉडम सक्षम नहीं होता. तब उपभोक्ताओं को बताया जाता है कि आप बाजार से दूसरा मॉडम खरीद लें.
जो 100 MBPS से ज्यादा के स्पीड को सपोर्ट करता हो. इस तरह मॉडम उपभोक्ता का होता है, लेकिन मॉडम का रेंट विभाग वसूलता है. जो तकनीकि पदाधिकारी मॉडम चेंज करवाते हैं. उन्हें कॉर्शियल सेक्शन में इसकी जानकारी देनी चाहिये. ताकि मॉडम का रेंट उपभोक्ताओं को ना देना पड़े. क्योंकि इस्तेमाल में लाया गया मॉडम उपभोक्ता का खरीदा हुआ है. ना की विभाग का.
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