Ranchi: विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला के समापन सत्र को पद्मश्री अशोक भगत ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की जीवन शैली ही हमारा सनातन धर्म है. जिन्हें हम पिछड़ा समझते हैं, उनके मूल्य श्रेष्ठ हैं. हमें उनसे सामाजिक सौहार्द, आपसी सहयोग, पारस्परिक विश्वास और स्वावलंबन जैसी मूल्यवान चीजें सीखनी चाहिए.
आदिवासी समाज का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका विषय पर चर्चा करते हुए भगत ने कहा कि आदिवासी समाज ने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं किया और वे हमेशा आंदोलन करते रहे.
1914-16 में आदिवासियों ने शुरू कर दिया था असहयोग आंदोलन
भगत ने कहा कि फूलो-झानो, सिदो-कान्हो और बिरसा मुंडा जैसे लोगों की आजादी की लड़ाई में अतुलनीय भूमिका रही है. गांधीजी के आगमन के पहले ही सन 1914-16 में आदिवासियों ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया था. हजारीबाग से लातेहार तक चले इस आंदोलन में जो भी शामिल हुआ वह टाना भगत कहलाया. आदिवासी समाज के ज्ञान और चिंतन परंपरा को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि कोरोना काल में वही जड़ी-बूटियां काम आ रही हैं, जिन्हें आदिवासी समाज ने बचाकर रखा है.
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