Anand Kumar
Ranchi: बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने सरकारी विभागों में 50 साल से ज्यादा उम्र वाले अक्षम कर्मचारियों को निकालने के अपने फैसले पर अमल शुरू कर दिया है. नीतीश सरकार ने पिछले साल जुलाई में यह फैसला लिया था, लेकिन इस पर कार्रवाई अब शुरू की गयी है. सरकार के मुताबिक 50 साल के ऊपर के अक्षम कर्मचारियों को हटाने में कर्मचारियों की कार्य में दक्षता के अलावा उनकी सत्यनिष्ठा और आचार-व्यवहार को भी देखा जायेगा.
नीतीश सरकार का यह एक अच्छा फैसला है. दरअसल लोग सरकारी नौकरी के पीछे इसीलिए भागते हैं, क्योंकि यहां नौकरी की गारंटी है. ऊपरी आमदनी का अच्छा स्कोप है. तनख्वाह हर महीने समय पर मिल जाती है, चाहे बंदा काम करे या न करे. इस सरकारी अमले को पालने में जनता की मेहनत की कमाई का गाढ़ा पैसा खर्च होता है. इसलिए जरूरी है कि इस अमले को जवाबदेह बनाया जाये.
सरकारी तंत्र के मामले में बिहार और झारखंड का हाल एक जैसा है. बिहार से अलग होने के बाद झारखंड के ज्यादातर विभागों ने बिहार की नियमावली को ही अंगीकार किया है. हालांकि झारखंड में सरकारी अमले की उदासीनता बिहार के मुकाबले काफी अधिक है. बिहारी जनता राजनीतिक दृष्टि से कहीं अधिक जागरूक है, जबकि झारखंड के जंगली-पहाड़ी इलाकों में निवास करनेवाले आदिवासी और आदिम जनजातियों के लोग सरकारी योजनाओं से ज्यादा अवगत नहीं हैं. इसलिए वे योजनाओं में होनेवाले भ्रष्टाचार को न तो जान पाते हैं और ही जानकर उनका विरोध कर पाते हैं.
इसे भी देखें-
झारखंड में सरकारी अमले में भ्रष्टाचार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ 2020 में झारखंड के एंटी करफ्शन ब्यूरो ने 60 सरकारी कर्मचारियों को घूस लेते पकड़ा है. पिछले 10 साल की बात करें, तो 613 रिश्वतखोर सरकारी सेवक रंगे हाथ धरे गये. इनमें से किसी को अभी तक सजा नहीं मिली है. 44 अंचल अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोपों में जांच चल रही है.
इसे भी पढ़ें- पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए झामुमो ने कसी कमर, पिछले चार चुनाव में नहीं मिली सफलता, वृहद झारखंड का मुद्दा भी गौण
पहली और दूसरी जेपीएससी की नियुक्तियों में धांधली की सीबीआई जांच हो रही है और आरोपी अधिकारी प्रमोशन पा रहे हैं. सरकारी अमले की रग-रग में निकम्मापन घुस गया है. प्रखंडों कार्यालयों में अधिकारी नहीं जाते, स्कूलों से मास्टर गायब रहते हैं और अस्पतालों से डॉक्टर. जिलों का हाल भी कुछ ऐसा ही है. 11 बजे के बाद दफ्तरों में आमद शुरू होती है और 4 बजे के बाद शायद ही कोई अफसर या कर्मचारी ऑफिस में पाया जाता है.
ऐसे में सरकारी कर्मचारियों की क्षमता और दक्षता का भी पैमाना तय किया जाना चाहिए. अनफिट, भ्रष्ट और अकुशल कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए, ताकि नये, उत्साही और युवा कर्मचारियों के लिए रास्ता बने और कार्यरत कर्मचारियों में यह खौफ रहे कि काम नहीं करने पर उनकी नौकरी सुरक्षित नहीं रहेगी. तभी शासन, प्रशासन के कामकाज को ज्यादा कुशल, जवाबदेह और प्रभावी बनाया जा सकेगा.
इसे भी पढ़ें-सेवानिवृत्त हुए रिम्स के पूर्व निदेशक डॉ तुलसी महतो, विदाई समारोह में हुए भावुक