Faisal Anurag
कोकाकोला को लगभग तीन अरब से भी ज्यादा के नुकसान की खबर दुनिया भर में दो दिनों से सुर्खियों में है. यूरोप के सबसे दमदार फुटबॉलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो के कारण चंद घंटों में लगभग 75 अरब के नुकसान ने कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नींद से झकझोर दिया है. यह पहली बार हुआ है कि जब एक शक्तिशाली कंपनी, जो यूरो कप को प्रायोजित भी कर रहा है, उसे ही एक प्रेस में एक अन्य शक्तिशाली और लोकप्रिय खिलाड़ी से चुनौती मिली है. खिलाड़ी में रीढ़ की हड्डी साबुत बची हो, तो वह अकेला भी दुनिया के सबसे मजबूत दुर्गों में सेंध लगा सकता है. भारत के शटलर पुलेला गोपीचंद ने भी कोकाकोला के प्रस्ताव को ठुकराया था.
दुनिया में खेल के जितने भी आयोजन होते हैं, उन्हें प्रायोजित करने की प्रतिस्पर्धा लगी रहती है. कोकाकोला को तो ”कैप्टिलिज्म इन बॉटल” के रूप में जाना जाता है. यह कंपनी अफ्रीका और यूरोप के अनेक शासकों और सरकारों का भविष्य तय करती रही है. कोक और शेल उन कंपनियों में शुमार किये जाते हैं, जो कमजोर मुल्कों की राजनैतिक संस्कृति, आर्थिक नीतियां और लोकतंत्र के नाम पर पूंजीवाद समर्थक सरकारों की दिशा तय करती रही हैं.
नवंबर 1989 में बर्लिन की दीवार का पतन हो गया और सोवियत संघ के पराभव की शुरुआत हो गयी. बर्लिन की दीवार गिरते ही कोकाकोला पूंजीवादी संस्कृति के रूप में यूरोप के उस हिस्से पर छा गया, जो अब तक समाजवाद का झंडा बुलंद किये हुए थे. बर्लिन की समाजवादी संस्कृति में कोकाकोला के प्रभाव को लेकर अनेक अध्ययन और शोध हुए हैं. प्रसिद्ध पत्रकार-लेखक केली ओवरमियर ने 2019 में लिखे अपने एक लंबे लेख में कोकाकोला के राजनैतिक-पूंजीवादी-सांस्कृतिक प्रभाव को दर्जनों उदाहरणों से साबित करने का प्रयास किया है. बर्लिन की घटना तो केवल एक उदाहरण है कि किस तरह जर्मनी के कभी समाजवादी रहे समाज, संस्कृति और भू-सांस्कृतिक क्षेत्र ने बदलाव की यात्रा चंद दिनों में ही पूरी कर ली. यह कोई मामूली बात नहीं है.
1977 में कोकाकोला को भारत छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया गया. 1949 से भारत में सक्रिय कोकाकोला के लिए पर यह एक बड़ा राजनैतिक हमला था. इमरजेंसी के बाद भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इस सरकार का नेतृत्व मोरारजी देसाई कर रहे थे और उनकी सरकार में उद्योग मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस थे. जॉर्ज समाजवादी माने जाते रहे हैं. जनता पार्टी के एक प्रभावी महासचिव समाजवादी मधु लिमये थे. जॉर्ज फर्नांडीस ने मधु लिमये की सलाह पर पहले तो कोकाकोला से कहा कि वह अपना फर्मूला भारत को सार्वजनिक करे. कोकाकोला ने इससे इंकार कर दिया और उसे भारत से जाना पड़ा. दुनिया की राजनीति में यह एक बड़ी घटना थी, जब भारत ने कोकाकोला को भारत से जाने के लिए मजबूर कर दिया. वह दौर था, जब जेपी आंदोलन के गर्भ से संपूर्ण क्रांति का नारा निकला था और समाजवादी खेमे के अधिकांश नेताओं ने अपने समाजवादी उसूलों को छोड़ा नहीं था. हालांकि कोकाकोला पर बैन ज्यादा दिन नहीं चल पाया और उसे एक अदालती आदेश के बाद बैन से मुक्त कर दिया गया. इस बैन की पृष्ठभूमि तो इमरजेंसी के दौर में इंदिरा गांधी ने ही तैयार कर दिया था. इंदिरा गांधी ने कोकाकोला को नियंत्रित करने के प्रयास शुरू किये थे और एफसीआर के नये कानून से शिकंजा कसा था. कोकाकोला के साथ पेप्सी को भी भारत ने बैन किया था. जिस कोकाकोला ने दुनिया के अनेक शासकों का भविष्य तय किया और सोवियत खेमे के देशों में पूंजीवादी संस्कृति के लिए महौल बनाया, उसे भारत ने चुनौती दी थी.
रोनाल्डो ने तो कोकाकोला की जगह पानी पीने की वकालत कर उन अनेक स्मृतियों को ताजा कर दिया है, जहां कोक को एक व्यक्ति ने शिकस्त दी है. लेकिन रोनाल्डो से भी पहले भारत के एक बैडमिंटन स्टार ने कोकाकोला को बड़ी खामोशी से चुनौती दी. इस स्टार का नाम पुलेला गोपीचंद है. प्रकाश पादुकोण के बाद गोपीचंद दुनिया भर में शटलर की बड़ी ताकत बन कर उभरे. यह वही गोपीचंद हैं, जिन्होंने साइना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसे खिलाड़ियों को दुनिया के मानचित्र पर स्थापित किया.
गोपीचंद और कोकाकोला के संबंध को याद करते हुए कवि अशोक कुमार पांडेय ने लिखा है : जैसा कि बाज़ार के इस युग में होना था, तमाम मल्टीनेशनल कंपनियों ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतने के बाद गोपीचंद को नोटिस किया. कोकाकोला ने विज्ञापन के लिए उनसे संपर्क किया और बहुत बड़ी रकम देने का प्रस्ताव किया. लेकिन उस समय तक अपने माता-पिता के साथ किराये के घर में रह रहे पुलेला गोपीचंद ने साफ-साफ मना कर दिया. आमतौर पर बहुत शांत रहनेवाले इस खिलाड़ी ने इस बात को कोई तूल नहीं दिया, न ही किसी तरह की पब्लिसिटी की. मीडिया तक को इस बात का पता दूसरे स्रोतों से लगा.
एक इंटरव्यू में उनसे इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा, “चूंकि मैं खुद सॉफ्ट ड्रिंक नहीं पीता, मैं नहीं चाहूंगा कि कोई दूसरा बच्चा मेरी वजह से ऐसा करे. मैं कोई चिकित्सक नहीं हूं, लेकिन मुझे पता है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और मैंने अपने मैनेजर को इस बारे में साफ-साफ कह रखा है कि मैं किसी भी ऐसे प्रॉडक्ट के साथ नहीं जुड़ूंगा, चाहे वह सॉफ्ट ड्रिंक हो या सिगरेट या शराब.” पैसे को लेकर भी उनका दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था: “मेरे लिए ज़्यादा महत्व उसूलों का है और मैं किसी भी कीमत पर अपने उसूलों को पैसे के तराज़ू पर नहीं तोल सकता.”
रोनाल्डो की तरह की दिलेरी और साफगोई फ्रांस के मिडफील्डर पॉल पोग्बा ने दिखाई. बीते मंगलवार को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होने से पहले पोग्बा ने टेबल पर रखी हैनीकेन बीयर की बोतल को हटा दिया. उल्लेखनीय है कि कोकाकोला की तरह हैनिकेन भी यूएफा और यूरो ऑफिशियल स्पांसर है. यह जानते हुए भी कि टूर्नामेंट के आधिकारिक प्रायोजक के ब्रांड को हटाने से उनपर कार्रवाई हो सकती है, दोनों फुटबॉलरों रोनाल्डो और पोग्बा और अतीत में पुलेला गोपीचंद ने जो नैतिक बल और साहस दिखाया, क्या वह नैतिकता पेप्सी और कोक का लोगो लगाकर खेलनेवाले हमारे क्रिकेट सितारे कभी दिखा सकेंगे?