NewDelhi : सीबीआई को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की तरह स्वायत्तता होनी चाहिए, जो कि केवल संसद के प्रति जवाबदेह है. मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को लेकर अहम टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की मोदी सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि पिंजरे में बंद सीबीआई को और स्वायत्तता देने की जरूरत है. जान लें कि 1941 में गठित, एजेंसी प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) को रिपोर्ट करती है. इसके निदेशक को तीन सदस्यीय पैनल द्वारा चुना जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं.
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सीबीआई को भाजपा सरकार द्वारा राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है
बता दें कि विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि राष्ट्रीय जांच ब्यूरो (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर (आईटी) विभाग के साथ सीबीआई को भाजपा सरकार द्वारा एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसे आजाद करने की जरूरत है. खबरों के अनुसार हाईकोर्ट ने सीबीआई की मौजूदा व्यवस्था में बदलाव करने की बात कहते हुए अपने 12 सूत्री निर्देशों में कहा कि यह आदेश पिंजरे में बंद तोते सीबीआई को रिहा करने का प्रयास है.
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सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सीबीआई को पिंजरे का तोता करार दिया था.
जान लें कि 2013 में कोलफील्ड आवंटन मामलों की सुनवाई के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता करार दिया था. उस समय विपक्ष में रही भाजपा ने एजेंसी पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नियंत्रित होने का आरोप लगाया था. इतना ही नहीं, बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने भी सीबीआई पर हल्ला बोला था. उन्होंने इसे प्रधानमंत्री द्वारा नियंत्रित साजिश ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन कहा था.
मद्रास हाईकोर्ट का मानना है कि सीबीआई की स्वायत्तता तभी सुनिश्चित होगी जब उसे वैधानिक दर्जा दिया जायेगा. हाईकोर्ट ने कहा कि भारत सरकार को अधिक शक्तियों एवं अधिकार क्षेत्र के साथ वैधानिक दर्जा देने वाले एक अलग अधिनियम के अधिनियमन पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है. केंद्र सरकार प्रशासनिक नियंत्रण के बिना कार्यात्मक स्वायत्तता के साथ सीबीआई को स्वतंत्र करे.