Apoorv Bhardwaj
स्वतंत्र पत्रकार मनदीप 14 दिन के लिए जेल चले गये हैं. वो भी उस जुर्म के लिए जो उन्होंने किया ही नहीं है. दिल्ली पुलिस ने उन्हें रात भर बिना किसी को बताए हवालात में रखा. दिनभर स्वतंत्र पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर उनके लिए अपील जारी किए हैं. ताकि उन्हें न्याय मिल सके. लेकिन न्याय मिला क्या? कोर्ट ने किसी की एक नहीं सुनी और वो कभी सुनेगा भी नहीं. क्योंकि सरकार और सिस्टम को पता है कि सब अपनी लड़ाईयां अकेले लड़ रहे हैं. और जब तक लोग अकेले हैं वे कमजोर और लाचार हैं.
मनदीप के बारे में मैंने शनिवार से कुछ भी नहीं लिखा. क्योंकि मैं जानता था कि वो युवा और स्वतंत्र पत्रकार सिस्टम के क्रूर हाथों में फंस गया है. सोशल मीडिया पर अपील जारी करने से कुछ नहीं होने वाला है. पिछले 2 महीने में बहुत से पत्रकारों पर गंभीर धाराओं के अंतर्गत मुकदमे दर्ज हुए हैं. राजदीप को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया है. आधे से ज्यादा बड़े पत्रकार या तो नौकरी खो चुके हैं या समर्पण कर चुके हैं. बहुत से पत्रकार रोजी-रोटी के लिए युट्यूब पत्रकार हो गए हैं. पत्रकारिता अपनी सांसें गिन रही है. इमरजेंसी से बुरे हालात है. लेकिन इतना होने का बावजूद भी क्या हम कुछ कर रहे हैं?
कई बड़े पत्रकार पत्रकारिता को बचाने के लिए ट्वीटर पर सक्रिय हो गये हैं. तो क्या ऐसे बचेगी पत्रकारिता? तो मेरा जवाब है बिलकुल नहीं. मैं पहले भी कह चुका हूं अगर पत्रकारिता और इस देश को बचाना है, तो सभी पत्रकारों और लेखकों को अपने स्वार्थ और ईगो को छोड़कर एक स्वतंत्र मीडिया प्लेटफार्म के लिए काम करना चाहिए. यहां एक ऐसे मीडिया प्लेटफॉर्म की आवश्यकता है, जो गांव से लेकर महानगर के पत्रकारों को सम्मानजनक आजीविका के साथ-साथ सच के लिए लड़ने की ताकत भी दे. जब तक पत्रकारिता कॉरपोरेट धन्नासेठों के अंडर रहेगी, तब तक किसी भी मनदीप को इंसाफ नहीं मिलेगा. साथ ही ऐसे कितने अनगिनत मनदीप जेल जाते रहेंगे.