Garhwa: गड़िया गांव में वन अधिकार संघ के बैनर तले सात प्रखंडों से शामिल पारंपरिक अगुओं की बैठक हुई. बैठक में आदिवासी मामलों के जानकार सुनील मिंज ने कहा कि पारंपरिक ग्रामसभा को कानून ने अब गांव सरकार का दर्जा प्रदान किया है. ग्राम सभा को पेसा अधिनियम 1996 के तहत असीमित अधिकार दिए गए हैं. उसके अंतर्गत ग्राम सभाएं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका निभाएंगी. मिंज ने कहा कि विधायी शक्ति के तहत गांव के विकास और भाषा संस्कृति के लिए स्थानीय स्तर पर नियम बना सकेंगे.
जेम्स हेरेंज ने कहाकि सामुदायिक वन संसाधनों पर ग्राम सभाओं का सदियों से मालिकाना हक रहा है. गांव के लोग वन संसाधनों की संरक्षा, पुनर्जीवित, परिरक्षित और प्रबंध करते आ रहे हैं. यही वजह रही है कि भारत सरकार ने अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम की धारा 3 (1) (झ) में पारंपरिक रूप से संरक्षण और परिरक्षण करने का अधिकार दिया है. उसके बाद भी गढ़वा जिला प्रशासन ने 56 ग्राम सभाओं को एक साजिश के तहत निर्गत पट्टे में प्रबंधन के अधिकार से वंचित रखा है. उसे लेकर संघर्ष तेज करने आवश्यकता है.
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