Deepak Ambastha
पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में फिर “सेल्फ रूल” की बात उठाई है.
महबूबा के पिता और पीडीपी के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की राजनीतिक अवधारणा है सेल्फ रूल .सेल्फ रूल का लब्बोलुआब ही है पाकिस्तान से नजदीकियां बढ़ाना और अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते हुए भारत सरकार को ठेंगे पर रखना.
सेल्फ रूल की मुख्य बातें
- नियंत्रण रेखा के उसपार से प्रगाढ़ संबंध
- सीमा को अप्रासंगिक बनाना
- दोनों देशों के बीच बेरोकटोक और सीधा आवागमन
- पाकिस्तान के साथ साझा आर्थिक बाजार
- पाकिस्तान के साथ मुक्त व्यापार
- जम्मू-कश्मीर की परियोजनाओं का साझा मैक्निज्म
- ट्रेड एंड टैरिफ पर ज्वाइंट रेगुलेटरी कमीशन की स्थापना
- जम्मू कश्मीर को और संवैधानिक अधिकार और स्वतंत्रता
- क्षेत्रीयता को और मजबूत करना.
- यह ऐसे विचार हैं जो सीधे-सीधे भारत की प्रभुता को चुनौती देते हैं.
1999 में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पीडीपी की स्थापना की थी और पार्टी के भीतर तथा अपने रहनुमाओं से लंबी चर्चा के बाद “सेल्फ रूल” का कॉन्सेप्ट दिया था. सेल्फ रूल पर मुफ्ती मोहम्मद सईद के जीवन काल में भी कभी कोई गंभीर राजनीतिक चर्चा नहीं हुई.
सेल्फ रूल में धारा 370 को और व्यापक बनाने की योजना, पाकिस्तान के साथ सीमा की अवधारणा को खत्म करना, जम्मू-कश्मीर में दिल्ली के दखल को न्यूनतम करना जैसी बात शामिल है.एक बात जो दीगर है सेल्फ रूल में वह यह कि जम्मू-कश्मीर के लिए यह व्यवस्था दी गई है कि दोनों क्षेत्रों को सत्ता में बारी-बारी से समान अवसर मिले ताकि कहीं भेदभाव की बात नहीं उठे, मुफ्ती मोहम्मद सईद की यह राजनीतिक चाल थी, क्यों कि जम्मू से कश्मीर पंडितों का पलायन हो चुका था, वहां बचे हिन्दू न बोलने की स्थिति में थे और न कोई उनकी सुनने वाला था. सत्ता में भागीदारी तो बहुत दूर की बात थी.दोनों ही हाल में पीडीपी की बल्ले-बल्ले थी, मुफ्ती मोहम्मद जैसा चाहते धारा उसी तरह मुड़ सकती थी.स्थिति ऐसी बनाने की कोशिश हो रही थी जिसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद के दोनों हाथ में लड्डू रखना चाहते थे, लेकिन उनकी इस योजना से न तो कश्मीर और न ही दिल्ली की सरकार कोई इत्तेफाक रखती थी. यही कारण रहा कि केंद्र में गृहमंत्री और राज्य में दो दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनका सेल्फ रूल की अवधारणा कभी परवान नहीं चढ़ सकी.
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दो ढाई साल बाद मुफ्ती मोहम्मद की राजनीतिक उत्तराधिकारी और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती मोहम्मद सईद ने फिर सेल्फ रूल की बात उठाई है.महबूबा कश्मीर की राजनीति में वापसी के लिए हाथ पैर मार रहीं हैं, इसके लिए वह कोई भी दांव खेलने से चूकना नहीं चाहतीं हैं.महबूबा यह जानते हुए भी कि निजाम बदल चुका है धारा 370 इतिहास हो चुकी है, पत्थरबाजी और पाकिस्तान का समर्थन करने से भी गुरेज नहीं रखने वाली महबूबा की राजनीतिक जमीन सिकुड़ रही है. पस्त और परेशान वह अपना सब कुछ दांव पर लगा रहीं हैं. लेकिन घाटी में बदले हालात पर अब उनका कोई अधिकार नहीं है, लाल चौक जहां भारतीय तिरंगा लहराने का अर्थ एक समय मौत था.
आज पंद्रह अगस्त से बहुत पहले लाल चौक के साथ-साथ हर जगह तिरंगा लहरा रहा है, महबूबा को समझ लेना चाहिए हकीकत स्वीकार कर लेनी चाहिए कि उनका कश्मीर बदल गया है बदल रहा है बड़ा बदलाव नजर आने में समय लगता है लेकिन उसके संकेत मिलने लगते हैं, महबूबा जिद में हारी लड़ाई लड रहीं हैं, उन्हें अपने पिता के अनुभवों से सीख लेनी चाहिए कि कांग्रेस के साथ रह कर भी वह अपनी योजना लागू नहीं करवा सके यह तो भाजपा है नरेन्द्र मोदी हैं यहां उनकी कैसे चलेगी, बेहतर यही है कि वह परिवर्तन को मानें और भारतीय संविधान के तहत अपनी राजनीतिक राह तलाशें दूसरा कोई चारा नहीं है कश्मीरी भी समझ रहे हैं पाकिस्तान की हालत क्या है फिर वह आपकी सुनेंगे क्यों.
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