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Surjit Singh
दंगे होते नहीं. दंगे कराये जाते हैं. ऐसा पढ़ा था. सुना था. अब पश्चिम बंगाल के संदेशखाली का जो नया सच सामने आया है, उससे यही संदेश मिल रहा है. यही पता चल रहा है कि जो दिखाया जा रहा है, जो बताया जा रहा है, वही सच हो, यह जरूरी नहीं. सच कुछ और भी हो सकता है. जिस सच को कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर, तो कभी महिला-पुरुष के नाम पर सलीके से छिपाया गया हो.
संदेशखाली पश्चिम बंगाल का एक जिला. पिछले एक माह से चर्चा में है. तीन महिलाओं ने टीएमसी के बाहुबली नेता शाहजहां शेख पर दुष्कर्म करने और जमीन हड़पने का आरोप लगाया था. भाजपा ने इस मुद्दे को देश भर में प्रचारित किया. धर्म के नाम पर हंगामा खड़ा किया. मीडिया ने भी खूब दिखाया. नतीजा कोर्ट से स्थानीय प्रशासन के खिलाफ आदेश आये. बंगाल की टीएमसी सरकार कहती रही, साजिश है, लेकिन किसी ने नहीं सुना.
अब यह बात सामने आयी है कि तीन में से एक महिला ने प्राथमिकी को वापस ले लिया है. इतना ही नहीं महिलाओं ने यह भी कहा है कि भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी के कहने पर उन लोगों ने दुष्कर्म का केस किया था. स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता मम्पी दास और पियाली दास ने सादे कागज पर हस्ताक्षर करवाया था. बाद में उसी हस्ताक्षर का इस्तेमाल करके दुष्कर्म का केस किया गया. इतना ही नहीं भाजपा नेता महिलाओं को लेकर दिल्ली तक गये. अब टीएमसी के नेता भाजपा पर हमलावर हैं. हालांकि भाजपा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है.
सच क्या है, यह जांच के बाद ही पता चलेगा. संभव है महिलाएं पहले झूठ बोल रही थी. संभव है किसी प्रभाव में आकर बयान बदल रही हो. लेकिन यह सवाल है कि हर घटना में राजनीति करना, धर्म के आधार पर माहौल बनाना, जजमेंटल बन जाना, समाज में जहर घोलना, कितना जायज है. होना तो यह चाहिए कि पहले थोड़ा इंतजार कर लें, चीजें स्पष्ट होने दें. फिर अपनी धारणा बनायें. नेताओं की बात पर तो बिल्कुल ही ध्यान ना दें. उन्हें सिर्फ वोट से मतलब है, चाहे समाज को कोई भी कीमत चुकानी पड़े.
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