Soumitra Roy
अखबार में छपी दो खबरों को देखें. एक अंग्रेजी के अखबार से लिया गया आंकड़ा है और दूसरा हिन्दी अखबार में छपी खबरें. पैसे खर्च करने के आंकड़े और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य अहमदाबाद दौरे की खबर. आंकड़े से स्पष्ट है कि मोदी सरकार विकास योजनाओं पर पैसे खर्च नहीं कर पा रही है. पर सच्चाई सिर्फ इतनी सी नहीं है कि मोदी सरकार देश में विकास परियोजनाओं पर खर्च नहीं कर पा रही है. सच्चाई यह है कि सरकार कंगाल हो चुकी है.
कुछ सच इससे भी आगे की है. वह यह कि सरकार के पास जितना भी पैसा आ रहा है, उसे वह किन क्षेत्रों में लगा रही है? अंग्रेजी के अखबार में छपी आंकड़े को देखें, तो समझ पाएंगे कि माइनिंग और बिजली क्षेत्र में क्यों पैसा लग रहा है? दोनों के केंद्र में अडानी, रिलायंस और टाटा जैसे बड़े कॉर्पोर्टेस हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस स्मार्ट सिटी और ढांचागत सुधारों के जुमले पर चुनकर आये थे, उसमें पिछले साल की तिमाही के मुकाबले करीब आधा ही खर्च हुआ है. ऐसा लगता है कि सिंचाई की योजनाएं सरकार के एजेंडे में शामिल ही नहीं. किसानों की आय दोगुना करने का जुमला तो अब लपेटने में भी नहीं आ रहा.
आखिर में मेक इन इंडिया का जुमला. यह भी फ्लॉप हो चुका है. मशीनी शेर कब का दम तोड़ चुका है और सरकार का खर्च भी 77% कम ही है. सारे सेक्टर्स को मिला लें तो खर्च 42% कम है. सवाल यह कि ऐसे में नौकरियां और आमदनी के मौके बढ़ेंगे कहां से?
हालात यह है कि अवाम परेशान है और सरकार अब डरा-धमकाकर उनके दमन पर उतारू है. अब बात दूसरी खबर की. अमित शाह आज गुजरात पहुंचे. गुजरात उनका गृह राज्य है. अहमदाबाद पुलिस ने लोगों को खिड़की-दरवाजे बंद रखने को कहा. लोग घरों में ही बंद रहने को मजबूर किये गये. तो क्या अमित शाह जैसे लोकप्रिय नेता को अब अपने ही राज्य में खतरा है. या बात कुछ और है. कहीं ऐसा तो नहीं कि डर पैरों तले खिसकती जमीन को लेकर है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.