Dhanbad : छह करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गई बसों को कबाड़ में तब्दील करने के बाद नगर निगम अब शहर में इलेक्ट्रिक बस दौड़ाने की तैयारी कर रहा है. इस बार कुल 100 बसें सड़कों पर उतारने की तैयारी चल रही है. निगम के अधिकारियों का कहना है कि पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने अर्बन ट्रांसपोर्ट मिशन के तहत इस योजना की शुरुआत की है. योजना का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसे राज्य सरकार को अनुमोदन के लिये भेजा जाएगा। जहां तक पुरानी बसों की बात है, तो जितनी चलने लायक हैं, उन्हें चलाया जा रहा है. जो बसें स्कैप हो चुकी हैं, उन्हें सरकार का आदेश आने के बाद नीलाम कर दिया जाएगा. उन बसों पर निगम की नजर है. देख रेख भी की जाती है.
जेएनयूआरएम के तहत शुरू हुई थी नगर बस सेवा
धनबाद में नगर बस सेवा की शुरुआत 9 अगस्त 2011 को गोल्फ ग्राउंड से हुई थी. जेएनयूआरएम योजना के तहत पहले चरण में 20 बसें भेजी गई. दूसरे चरण में 50 बसें निगम को मिली थी. उद्घाटन तत्कालीन मेयर इंदु सिंह ने किया था. राज्य सरकार ने इन बसों के परिचालन की जिम्मेदारी झारखंड पर्यटन विकास निगम (जेटीडीसी) और भूतपूर्व सैनिक कल्याण संघ को दी. जेटीडीसी को परिचालन और सैनिक संघ को मैन पावर का प्रबंध करने की जिम्मेदारी थी. लेकिन 10 दिन बाद ही सैनिकों ने हाथ खड़े कर दिए और बस सेवा बंद हो गई.
बार बार विफल हुआ नगर निगम
फिर सिक्योरिटी एजेंसी को मैन पावर बढ़ाने की जिम्मेवारी दी गई. सड़क पर बस सप्ताह में 2 से 3 दिन ही चली थी कि ड्राइवर हड़ताल पर चले गए. उसके बाद यह सेवा भी बंद हो गई. वर्ष 2015 में मेयर बनने के बाद चंद्रशेखर अग्रवाल ने 22 बसों को संवेदकों के माध्यम से चलाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे. पांच बसों की चोरी भी हो गई. इसके बाद निगम ने खुद चलाने का प्रयास किया. परंतु यह प्रयास भी असफल रहा.
सड़कों पर चल रही हैं मात्र 7 बसें
दो वर्ष पूर्व निगम के अधिकारियों ने एक नया प्रयोग किया. साढ़े सात लाख रुपये खर्च कर पांच बसों को नया लुक दिया गया. उन्हें स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को चलाने की जिम्मेदारी दी गई. इसके अलावा दो अन्य बसें संवेदकों को दी गई. बसों के मेंटनेंस और रख रखाव की जिम्मेवारी भी इन्हीं लोगों की है. बदले में निगम को इन बसों से प्रतिदिन 700 रुपये प्राप्त होते हैं.
बसों की आड़ में लोग करने लगे हैं शौच
निगम की जिन 70 बसों को चलाने की कवायद शुरू हुई थी, उनमें से बरटांड़ स्थित बस स्टैंड में निगम की 57 बसें कबाड़ में तब्दील हो चुकी हैं. अब इन बसों का इस्तेमाल शौचालय के लिये किया जाता है. इसकी आड़ में राहगीर शौच करते नजर आते हैं.
महंगे पार्ट-पुर्जे भी हुए गायब
महंगे पार्ट पुर्जे गायब हो चुके हैं, अधिकतर बसों का पहिया भी गायब है, कई टायर मिट्टी में धंस गए हैं. बसों के इर्द-गिर्द झाड़ जंगल उग आए हैं. बैटरी, खिड़की- दरवाजे, स्टेयरिंग, सीट भी अब नजर नहीं आती है. अन्य पांच बसें अलग अलग थानों में सड़ रही हैं. इन सब के बावजूद अधिकारी कहते हैं कि बसों की देख रेख की जा रही है.
हर समस्या पर है नजर : नगर आयुक्त
नगर आयुक्त सत्येंद्र कुमार कहते हैं कि हमलोगों के पास तो हर दिन समस्या है, उसे निपटाने का काम भी हर दिन करते हैं. सिर्फ पुरानी चीजों को थोड़े ही पकड़ कर रखना है. जितनी बसें चलने लायक थी, उन्हें चला रहे हैं. नयी बस लाने की तैयारी भी चल रही है. उसमें अभी वक्त लगेगा. सरकार का आदेश आएगा तो पुरानी बसों को देखा जाएगा.
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