Faisal Anurag
रांची नगर निगम ने जिस मोरहाबादी मैदान में लगी दो सौ से ज्यादा दुकानों को बेरमहमी से हटा दिया था अब उसी मैदान में रात्रिकालीन बाजार लगने वाला है.नगर निगम और जिला प्रशासन ने सुरक्षा के नाम पर मोरहाबादी से दुकानों को हटाया था तो फिर उसी जगह रात के समय सुरक्षित कैसे हो गयी है. नगर निगम और जिला प्रशासन के फैसलों की कीमत पिछले चार महीनों से मोरहाबादी में दुकान लगाने वालों को चुकानी पड़ रही है.
अजीब फैसलों को थोपने का यह समय आम लोगों खास कर कमजोर समूहों की मुसीबतों को बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है.अकाल काल के गाल में समाने वाले श्यामदेव की याद तो शायद ही नगर निगम या प्रशासन में किसी को हो. श्यामदेव एक छोटा दुकानदार था. दो सालों से उसकी आजीविका मोरहाबादी में लगी उसकी दुकान से चल रही थी. चार महीने पहले जब दुकान हटाए गए तब वह निराश हो गया. श्यामदेव को भविष्य की असुरक्षा की आशंका ने उसे खुदकशी के लिए बाध्य कर दिया. उसकी मौत की जबावदेही लेने न तो नगर निगम आगे आया और न ही प्रशासन.
जो नेता वहां दुकानदारों के साथ खड़े नजर आए थे उनके लिए भी श्यामदेव की मौत एक सामान्य घटना की तरह ही रही. यह एक ऐसा दौर है जहां गरीब और कमजोर की मौत किसी की आत्मा को झिंझोरती नहीं है.रांची में जिन्हें भी छोटी बड़ी सत्ता हासिल होती है वे नायाब प्रयोग करने लगते हैं. रांची में रात्रिकालीन बाजार के दो प्रयोग पहले ही दम तोड़ चुके हैं. मेन रोड से दिन में ट्रैफिक की समस्या हल करने के लिए चार साल पहले रात आठ बजे से एक बाजार का प्रयोग तो दो महीने भी नहीं चला था. लोगों को शायद ही याद हो कि यह प्रयोग भी हुआ था.
एक और प्रयोग बड़ा तालाब के पास हुआ था. यह बाजार तो शुरू होने के साथ ही विफल हो गया. अब मोरहाबादी में रात्रिकालीन बाजार लगेगा. क्या नगर निगम यह बताएगा कि जिस मोरहाबादी को बीआइपी क्षेत्र बता कर दुकानें हटा दी गयी थीं क्या वह अब बीआइपी के लिए पूरी तरह सुरक्षित हो गया है. दो पहिया पर सवार अपराधकर्मियों ने एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी थी.
उसके बाद अफरातफरी में नगर निगम और जिला प्रशासन ने फैसले लिए और दुकानदारों को जबरन हटा दिया. रांची हाईकोर्ट ने नगर निगम को आदेश दिया था कि एक सप्ताह में दुकानदारों को दूसरी जगह शिफ्ट करे. दुकानदारों को शिफ्ट किया गया लेकिन ऐसी जगह जहां ग्राहक ही नहीं आते थे. तो ऐसा है निजाम जिसके पास लोगों की आजीविका छीन लेने का शासकीय तेवर तो है लेकिन उन्हें सम्मान के साथ बिजनेस करने देने की योजना और संकल्प नहीं.
कमजोर तबके के लिए सम्मान के साथ रोजगार करने और जीने के अवसर सीमित होते जा रहे हैं. यह एक ऐसा अनिश्चितता का दौर है जहां आमआदमी के लिए रोशनी की तलाश करना मुश्किल हो गया है. योजनाओं को बनाते समय न तो शहर के मिजाज और न ही मनोविज्ञान का ध्यान रखा जाता है. मान लिया गया है कि रांची भी एक महानगर की तरह बन चुका है. लेकिन यातायात के साधन का सवाल हो या फिर रात में घुमने-फिरने के लिए माहौल. इसके लिये नगर निगम के पास शायद ही कार्ययोजना हो. नयी योजना में हटाए गए दुकानदारों को निगम के स्टाल में एक तरह की नौकरी दी जाएगी. रोजगार के अवसर छीन कर नौकरी देने की यह योजना भी अजीब—सा है. अंधेर नगरी के फैसले ऐसे ही अजीबोगरीब होते हैं.