Ranchi : इस्लामी कैलेंडर के अनुसार शुक्रवार यानि 10 मोहर्रम को दुनिया भर में करोड़ों लोगों ने पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा के नवासे और इमाम हज़रत अली के बेटे हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाया. इस मौके पर बिहार और झारखंड के विभिन्न इमामबाड़ों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए लोंगों ने मजलिसें और मातम करके इमाम हुसैन को याद किया.
बिहार के पटना, आरा, मुजफ्फरपुर, छपरा, शेखपुरा, सिवान और गोपालगंज में भी इमाम हुसैन की याद में मुसलमानों ने अपने घरों में ही मातम और मजलिसें की. उधर झारखंड के जमशेदपुर, रांची, जपला हुसैनबाद और हैदरनगर में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए घरों में इमाम हुसैन की याद में मजलिसें मातम और नौहेखानी की गयी. हालांकि कोरोना महामारी को देखते हुए इस साल भी ताजिया का जुलूस नहीं निकाला गया और ताजिया पहलाम नहीं हो सका. जिससे मुसलिम समुदाय में मायूसी छाई रही.
दिल्ली से मोहर्रम मनाने आये आरा के रहने वाले जेएनयू के रिसर्च एस्कॉलर सादैन रजा ने लगातार न्यूज से बात करते हुए कहा कि इमाम हुसैन की शहादत मनावता, हक और इंसानियत को बचाने के लिए हुई थी. दुनिया में अमन और चैन कायम हो सके इसलिए कर्बला जंग हुई थी. लिहाजा मानवता का ख्याल रखते हुए और कोरोना गाइडलाईन का पालन करते हुए पिछले दो सालों से ताजिया जुलूस और पहलाम का आयोजन नहीं किया जा रहा है. क्योंकि कोरोना महामारी पूरी दुनिया के लिए खतरा बनी हुई है और इसे हम सभी लोग मिलकर समझदारी के साथ गाइडलाइन का पालन करते हुए ही मात दे सकते हैं और इसे दुनिया से खत्म कर सकते हैं.
इस मौके पर विश्वभारती यूनिवर्सिटी कोलकाता से आये इतिहास विभाग के विभागअध्क्ष डॉ ऐजाज हुसैन ने बताया कि इमाम हुसैन(अ) ने 680 ईसवी में बनीउमय्या के खलीफ़ा के अन्याय और इस्लाम धर्म को मिटाने की साज़िश के ख़िलाफ़ आंदोलन किया और अपने 72 साथियों के साथ यजीद की एक बड़ी सेना से टकरा गये. 10 मोहर्रम को इराक़ स्थित कर्बला में यज़ीदी सेना ने इमाम हुसैन(अ) और उनके साथियों को तीन दिनों तक भूखा और प्यासा रखकर शहीद कर दिया. अपनी और अपने साथियों की जान की क़ुर्बानी देकर इमाम हुसैन ने दुनिया को यह संदेश दिया कि ज़िल्लत की ज़िंदगी से इज्ज़त की मौत बेहतर है. यजीद द्वारा इस तरीके से हुई इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मुसलमान हर साल मोहर्रम में गम मनाते हैं.
वहीं, कानपुर से आये मौलाना नसीम अब्बास ने कहा कि झूठ और अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम हुसैन(अ) के आंदोलन से हमें, एक सीख यह मिलती है कि अत्याचारी कितना भी शक्तिशाली और ताकतवर क्यों न हो उसके मुकाबले में डट जाओ आख़िरकार जीत सत्य की होगी. इसी प्रकार कर्बला के आंदोलन से हम साहस, धैर्य, संकल्प, प्रतिरोध, वफ़ादारी, समानता, बलिदान और दुश्मनों को माफ़ कर देने का सबक़ हासिल करते हैं और उसे अपने जीवन में व्यावहारिक बनाने का प्रयास करते हैं.