NewDelhi/Bihar : राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि क्या राज्यसभा के उपसभापति और जदयू सांसद हरिवंश अपने पद पर बने रहेंगे या इस्तीफा देंगे? बिहार में नीतीश कुमार द्वारा पाला बदल कर महागठबंधन का दामन थाम लिये जाने से जदयू-भाजपा के बीच रिश्ते असहज हो गये हैं. भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के जनता दल (यूनाइटेड) के फैसले ने न केवल बिहार में राजनीतिक समीकरण को बदल दिया, बल्कि पटना से लेकर दिल्ली तक के सियासी गलियारों में तापमान बढ़ा दिया है न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार उपसभापति हरिवंश के एक करीबी ने कहा कि जदयू नेता(हरिवंश) एक संवैधानिक पद पर हैं और जो लोग इस तरह के पद पर बैठे हैं वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किसी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं होते हैं. पूछा कि उन्हें इस्तीफा क्यों देना चाहिए?
पटना में नीतीश कुमार द्वारा 9 अगस्त को बुलाई गयी जदयू की बैठक में हरिवंश के शामिल नहीं होने के बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के उपसभापति के सहयोगी का कहना था कि उन्हें बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था. इसलिए वह वहां नहीं गये थे, लेकिन नीतीश कुमार के लिए उनके मन में बहुत सम्मान है. जान लें कि हरिवंश 8 अगस्त, 2018 को राज्यसभा के उपसभापति चुने गये थे. 14 सितंबर, 2020 को संसद के ऊपरी सदन में दूसरे कार्यकाल में उन्हें राज्यसभा के उपसभापति के रूप में फिर से चुना गया था. जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हरिवंश का पार्टी से गहरा नाता है. उनके संवैधानिक पद पर बने रहने की संभावना है.
इसे भी पढ़े : महाराष्ट्र : उद्धव ठाकरे के आरोप को एकनाथ शिंदे ने नकारा, कहा, भाजपा ने नहीं किया था शिवसेना को CM पद देने का वादा
हरिवंश के नाम का प्रस्ताव भाजपा ने किया था
जदयू नेता ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा, हरिवंश जी हमारे सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पूरा सम्मान और सम्मान रखते हैं, लेकिन यह भी समझना चाहिए कि राज्यसभा का सभापति एक संवैधानिक पद है. कहा कि निर्वाचित व्यक्ति छह साल तक इस पद पर रहता है. इसलिए इसका कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए. बिहार में राजनीतिक स्थिति बदलने के बावजूद उनके पद पर बने रहने की संभावना है. एक अन्य जदयू नेता ने कहा कि हरिवंश के नाम का प्रस्ताव भाजपा ने किया था और उन्हें कई दलों के समर्थन से चुना गया था. उन्होंने एएनआई को बताया, मौजूदा राजनीतिक स्थिति में राज्यसभा के उपसभापति को उनके पद से तभी हटाया जा सकता है जब भाजपा उनके खिलाफ अविश्वास व्यक्त करे.
इसे भी पढ़े : रेवड़ी कल्चर को लेकर TMC सांसद महुआ का वित्त मंत्री पर तंज, अरे…मैडम मैं आपसे 15 लाख की शर्त लगाऊंगी, अगर…
उपसभापति का पद संवैधानिक होता है
राज्यसभा के एक पूर्व महासचिव ने कहा कि उपसभापति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद संवैधानिक होता है. देश या राज्य या किसी भी राजनीतिक दल की राजनीतिक स्थिति में बदलाव के बावजूद उनके प्रभाव में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी पार्टी सत्ता में है या विपक्ष में. संवैधानिक पद पर ऐसे लोग सदन के नियम का पालन करने के लिए बाध्य हैं और संविधान उनके लिए सर्वोच्च होना चाहिए. मेरा मानना है कि राज्यसभा के उपसभापति का पद गैर-राजनीतिक है.
एक उदाहरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रोफेसर पीजे कुरियन (कांग्रेस) 21 अगस्त 2012 को राज्यसभा के उपसभापति चुने गये थे. वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में सरकार बदलने के बावजूद 1 जुलाई 2018 तक अपने पद पर बने रहे. इसके अलावा उन्होंने कहा, नजमा हेपतुल्ला (कांग्रेस) 18 नवंबर, 1988 से 4 जुलाई, 1992, फिर 10 जुलाई 1992 से 4 जुलाई 1998 और 9 जुलाई 1998 से 10 जून 2004 तक राज्यसभा की उपसभापति रहीं. इस बीच 4 मौकों पर सरकार बदली, लेकिन वह उपसभापति के रूप में अपने कार्यालय में बनी रहीं.
इस क्रम में उन्होंने कहा कि माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी 4 जून 2004 को 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष चुने गये थे. माकपा केंद्र में तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की सहयोगी थी. भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर माकपा ने जुलाई 2008 में सरकार से समर्थन वापस ले लिया. हालांकि, चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष के पद पर बने रहे.
नीतीश कुमार ने बिहार में NDA का साथ छोड़ा
नीतीश कुमार ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को छोड़ने के बाद बुधवार को रिकॉर्ड आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राजद नेता तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने. बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार राज्य विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए 24 अगस्त को एक फ्लोर टेस्ट में जायेगी.
बता दें कि महागठबंधन को विधानसभा में 164 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है. नीतीश कुमार ने कांग्रेस और वाम दलों सहित महागठबंधन में राजद और अन्य दलों के साथ हाथ मिलाने से पूर्व मंगलवार को आठ साल में दूसरी बार भाजपा का साथ छोड़ दिया.