त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि से लेकर सांसद चुनने में बढ़चढ़ कर ले रहे हैं हिस्सा
Ranchi/ Hazaribagh : बिरहोर अब अपने परंपरागत प्रधान को चुनने के अलावा मतदान में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगे हैं. त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि से लेकर सांसद तक चुनने लगे हैं. इन्हें पता है कि देश कानून से चलता है. उनके लिए अलग से संवैधानिक संरक्षण की व्यवस्था है. इन्हें डाकिया योजना जैसी विशेष योजनाओं का लाभ मिल रहा है. उनके रहने के लिए घर बनाया जाता है, अलग से आवासीय विद्यालय बनाया गया है. आय वृद्धि के लिए कौशल विकास के तहत उन्हें विभिन्न तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. बिरहोर परंपरागत तरीके से पेड़ की छाल से रस्सी बनाने के बदले तथा जंगल से जड़ी- बूटी संग्रह करने के साथ-साथ अब ट्रैक्टर चलाने लगे हैं. मजदूरी करने लगे हैं. प्लास्टिक की रस्सी बनाने लगे हैं. झारखंड के हजारीबाग जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर की दूरी पर कुल चार बिरहोर कॉलोनियां है. कंडसार, डेमोटांड़, सिझुआ और ढेंगुरा है. इन चारों बिरहोर कॉलोनी में कुल 92 बिरहोर परिवार निवास करते हैं.
कहां किस कॉलोनी में कितने बिरहोर परिवार रह रहे हैं
ईचाक प्रखंड मुख्यालय के पास, एनएच-33 के ठीक बगल में सिझुआ बिरहोर कॉलोनी है. यहां कुल 13 बिरहोर परिवार रहते हैं. इनमें से कुछ रोजगार के लिए जयपुर तक जाते हैं और बहुत से बिरहोर यहां नजदीक के क्रशर में काम करते हैं. इस बिरहोर कॉलोनी में कुल 21 वोटर हैं. कंडसार बिरहोर टोला में कुल परिवारों की संख्या 36 है और कुल वोटर की संख्या 74 है. जबकि डेमोटांड़ और ढेंगुरा बिरहोर कॉलोनी में क्रमश: परिवारों की संख्या 28 और 20 है. यहां वोटर की संख्या क्रमशः 22 और 17 है.
उम्मीदवारों को नहीं देखा है, पर मतदान करेंगे
सभी बिरहोर मतदाता मतदान को लेकर काफी उत्साहित हैं. जागरुकता के कारण अपने अधिकारों को समझ रहे हैं. इन्हें मालूम है- ”चुनाव का पर्व, राष्ट्र का गर्व है ”. हजारीबाग के चारों टांडा के बिरहोर मतदाता 20 मई को अपने मताधिकार का प्रयोग कर सांसद चुनेंगे. इन लोगों का कहना है कि उम्मीदवारों को नहीं देखा है. हम लोगों के यहां कुछ परिवारों के पास राशन कार्ड भी नहीं है, लेकिन फिर भी वोट देंगे. सिझुआ बिरहोर कॉलोनी में सभी परिवार के पास राशन कार्ड है, लेकिन कंडसारा बिरहोर टोला में सात ऐसे परिवार हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है. यही स्थिति डेमोटांड़ की है .यहां तीन परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है. ढेंगुरा में मात्र एक बिरहोर परिवार बिना राशन कार्ड के है.
विनोबा भावे विवि के शोधार्थी 16 वर्षों से कर रहे हैं जागरुक
विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के मानव विज्ञान विभाग के विद्यार्थी व शोधार्थी विगत 16 वर्षों से लगातार शोध करने के साथ-साथ अलग- अलग तरीके से बिरहोर परिवारों को जागरूक कर रहे हैं. उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी देने के साथ ही साथ योजनाओं का लाभ दिलाने, गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के लिए मदिरापान से दूर रहकर साफ-सफाई पर ध्यान देने और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जागरूक करते रहे हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में बिरहोरों की संख्या 10726 है
झारखंड में कुल आठ तरह की विशेष संवेदनशील या अति कमजोर जनजातियां निवास करती है. बिरहोर भी इनमें से एक हैं. 2006 से पहले इन्हें आदिम जनजाति कहा जाता था, बाद में इन्हें विशेष रूप से कमजोर या पार्टिकुलरली वलनरेबल ट्राईबल ग्रुप्स(पीवीटीजी) कहा जाने लगा. समय के साथ स्वाभाविक रूप से बिरहोर के जीवन में भी बदलाव आया है. जंगलों में घूम-घूम कर जीवन बिताने वाले बिरहोरों को उथलू कहा जाता था. कुछ बिरहोर जंगल में ही मोहलांग पेड़ के पत्तों से कुंबा (झोपड़ी) बना कर एक झुंड में रहते थे, जिसे टांडा कहा जाता था. झारखंड में घुमंतू जीवन जीने वाले व झोपड़ी में निवास करने वाले बिरहोर का जीवन बदल गया है. बिरहोरों के जीवन में जो परिवर्तन आया है, इसके फलस्वरुप झारखंड में उथलू और जांघी बिरहोर जैसा कुछ नहीं रह गया है. झारखंड में बिरहोरों की संख्या 10726 (2011)है. टांडा की जगह सरकार द्वारा निर्मित कॉलोनी ले लिया है. कुंबा में रहने वाले बिरहोर अब कॉलोनी के घरों में रहने लगे हैं . कॉलोनी में इनके लिए इंदिरा आवास और बिरसा आवास बनाया गया है. अब अबुआ आवास की बात हो रही है . कहीं-कहीं उनकी कॉलोनी को टोला भी कहा जाता है .जंगल में बनमुर्गी और कुल्हाय (खरहा) पकड़ने और खाद्य संग्रह पर आश्रित बिरहोरों की नई पीढ़ी, नई टेक्नोलॉजी से भी रूबरू हो गयी है. इनके घरों में टीवी और हाथ में मोबाइल फोन आ गया है. इनके बीच विकास की अपनी गति है. इनके कॉलोनियों में बड़े बुजुर्ग ही इनके परंपरागत प्रधान होते हैं.
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