तिरा निज़ाम है सिल दे ज़बान-ए-शायर को
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए
(दुष्यंत कुमार)
Faisal Anurag
अभिव्यक्ति की आजादी पर सत्ता प्रहार का इतिहास नया नहीं है. दिशा रवि हो या नवदीप कौर. दोनों गिरफ्तारियों के संदर्भ अलग-अलग हैं. लेकिन तरीका एक ही है. दिशा रवि पर्यावरण कार्यकर्ता हैं और वे जलवायु परिवर्तन के सवाल पर कॉलेज के दिनों से ही सक्रिय हैं. ग्रेटा थनबर्ग के अभियान को भारत में लाने का श्रेय उन्हें ही है. एक टूलकिट को संपादित करने और पोस्ट करने के आरोप में उन्हें देशद्रोह जैसे आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. जबकि नवदीप की गिरफ्तारी श्रमिकों और किसानों के हक के लिए आवाज उठाने के लिए हुई है. नवदीप गिरफ्तारी मामले में शारीरिक उत्पीड़न करने का गंभीर आरोप भी पुलिस पर है. दोनों गिरफ्तारियां बताती हैं कि नागरिकता कानून के खिलाफ जारी आंदोलन के दौरान सरकार और पुलिस का रवैया जो था, अब किसान आंदोलन को लेकर भी है.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा सहित विपक्ष के नेताओं और पर्यावरण एक्टिविस्टों की खामोशी को झिंझोड़ दिया है. रामचंद्र गुहा तो बेंगलुरू के उस प्रदर्शन में भी शामिल हुए, जो दिशा रवि की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए हुई. देश के जानेमाने 21 पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी दहशत पैदा करने के सरकार के प्रयास के खिलाफ आवाज बुलंद किया है. युवा एक्टिविस्टों के खिलाफ केंद्र सरकार के रिकॉर्ड बेहद चिंताजनक हैं. 2016 में जेएनयू के छात्रों के खिलाफ जिस तरह के दमनात्मक कदम उठाए गए थे, वह सिलसिला थमा नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में एफडीआई की एक नयी परिभाषा दी, फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडोलॉजी. दिशा रवि के मामले में जो तत्परता दिखायी गयी है, उसमें इस परिभाषा का अनुपालन है. बेंगलुरू से गिरफ्तारी के बाद दिशा को दिल्ली लाया गया. इस तथ्य को विस्मृत कर दिया गया कि इसके लिए बेंगलुरू के किसी अदालत से ट्रांजिट डिमांड जरूरी है और दिल्ली में भी दिशा रवि को वकील मुहैया कराये बगैर रिमांड पर ले लिया गया. टूलकिट का मतलब है किसी भी मुद्दे को समझाने के लिए बनाया गया एक गूगल डॉक्यूमेंट.
इसमें उस जानकारी का उल्लेख होता है कि किसी भी सवाल या मुद्दे के प्रचार-प्रसार के लिए क्या रणनीति होनी चाहिए. इसमें एक्शन प्वाइंट्स दर्ज होते हैं. इसका इस्तेमाल सोशल मीडिया के संदर्भ में होता है, जिसमें सोशल मीडिया पर कैम्पेन स्ट्रैटेजी के अलावा वास्तविक रूप में सामूहिक प्रदर्शन या आंदोलन करने से जुड़ी जानकारी दी जाती है. इसमें किसी भी मुद्दे पर दर्ज याचिकाओं, विरोध-प्रदर्शन और जनांदोलनों के बारे में जानकारी शामिल हो सकती है. पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष कोठारी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है- टूलकिट सामूहिक विनाश के हथियार नहीं है, बल्कि इसका उपयोग मीडिया के प्रचार को गति देने के लिए किया जाता है.
दिशा के टूलकिट से अभी तक पुलिस यह प्रमाणित नहीं कर सकी है कि इसमें हिंसा के लिए उकसाने के लिए क्या लिखा गया है. दिल्ली पुलिस ने यह जरूर कहा है कि डिजिटल स्ट्राइक से देश को बदनाम करने के प्रयास का यह हिस्सा है. न्यूजलॉन्ड्री ने भाजपा नेता कपिल मिश्रा के एक टूलकिट को प्रकाशित किया है. जिसमें हिंदु इकोसिस्टम के लिए सोशल मीडिया पर धुआंधार अभियान की रणनीति पेश की गयी है.
भाजपा के चुनाव अभियानों में भी डिजिटल स्ट्राइक होता है. इसी सप्ताह अमित शाह ने कोलकाता में सोशल मीडिया के भाजपा कार्यकर्ताओं से बात करते हुए हंसाने और कभी-कभी डराने के लिए धुआंधार प्रचार पर जोर दिया. अमित शाह कई बार गर्व से कहते रहते हैं कि उन्होंने ऐसा तंत्र बना लिया है, जिसमें सोशल मीडिया से बम्बार्ड कर लाखों लोगों तक मिनट भर में पहुंच बनायी जा सकती है.
दुनिया भर के आंदोलन सोशल मीडिया के माध्यम से समर्थन जुटाने का अभियान चलाते रहते हैं. जॉर्ज फ्लायड की हत्या के बाद ब्लैक लाइव मैटर्स आंदोलन ने भी टूलकिट का सहारा लिया. इस आंदोलन का असर पूरी दुनिया में हुआ. आंदोलनों से सरकारों के डरने और दमन की राह लेने का इतिहास नया नहीं है. खास कर उन देशों में जहां लोकतंत्र तो है, लेकिन सत्ताएं निरंकुश हो जाती हैं. ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमस के एक भाषण में कहा गया था कि लोकतंत्र का इस्तेमाल करते हुए तानाशाही करना मुश्किल नहीं है.
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आजाद हुए अनेक देशों ने जल्द ही खुली तानाशाही अपना लिया. जिन देशों में लोकतंत्र बचा रहा, वहां संविधान और लोकतंत्र को हर दिन परीक्षा देनी पड़ती है. किसान संघर्ष मोर्चा ने किसान आंदोलन को कमजोर करने के सरकार की कोशिशों में पुलिस की शक्ति के दुरूपयोग के बारे में गहरी चिंता जताई है. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि हम युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी की निंदा करते हैं और बिना शर्त तत्काल दिशा रवि की रिहाई की मांग करते हैं.
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी का ट्वीट खूब वायरल हुआ है. प्रियंका गांधी ने लिखा है : डरते हैं बंदूकों वाले एक निहत्थी लड़की से,फैले हैं हिम्मत के उजाले एक निहत्थी लड़की से. किसान आंदोलन और सरकार के बीच का तनाव अब किसानों की किसान पंचायत के विस्तार में दिख रही है.