Brijendra Dubey
भाजपा ने 2024 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी एक देश-एक चुनाव का वादा किया था. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अगले कुछ महीनों में देश भर के विभिन्न मंचों पर इस पर विस्तृत चर्चा की जाएगी. सरकार अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी. सरकार का कहना है कि उसका आम सहमति बनाने में विश्वास है. बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 18 हजार पन्नों की अपनी सिफारिशों में कुल 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं के समर्थन की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाने होंगे, जिन्हें पारित करने की जरूरत होगी. एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा समर्थन की जरूरत होगी.
एक देश, एक चुनाव पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में ही रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने एक देश, एक चुनाव को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की है. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं. समिति ने भारत के चुनाव आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार-विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की है. अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है, जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं. इसके अलावा विधि आयोग भी एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रबल समर्थक रहे हैं. विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं तथा पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है.
देश में यह व्यवस्था कोई नहीं होगी, इससे पहले 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव कराए गए थे, लेकिन उसके बाद मध्यावधि चुनाव समेत तमाम कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे. सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे, जिसमें कुछ चुनावों को पहले कराना तथा कुछ को देर से करना शामिल है. इस साल मई-जून में लोकसभा चुनाव हुए थे. उसके साथ ही ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए. जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया अभी चल रही है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में भी इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. जबकि दिल्ली और बिहार उन राज्यों में शामिल हैं जहां 2025 में चुनाव होने हैं. इसके अलावा असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल 2026 में समाप्त होगा, जबकि गोवा, गुजरात, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं का कार्यकाल 2027 में समाप्त होगा. हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और तेलंगाना में राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2028 में समाप्त होगा.
वर्तमान लोकसभा और इस वर्ष एक साथ चुनाव में शामिल राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा. 1999 में तत्कालीन विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में प्रत्येक पांच वर्ष में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक ही चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था. एक संसदीय समिति ने 2015 में अपनी 79वीं रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया था.
भाजपा का एक देश-एक चुनाव का प्लान तभी सफल हो सकता है, जब संसद द्वारा दो संविधान संशोधन विधेयक पास हों. इसके लिए भाजपा को कई राजनीतिक दलों के समर्थन की जरूरत होगी. अभी भाजपा के पास अपने दम पर लोकसभा में बहुमत नहीं है. ऐसे में उसे न सिर्फ एनडीए सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों के समर्थन की भी जरूरत होगी. चूंकि ये बिल संविधान संशोधन से जुड़े हैं, ऐसे में ये तभी पास होंगे, जब इन्हें संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा. यानी लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 और राज्यसभा के लिए 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगा. संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से पास करवाना जरूरी है. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे. एनडीए में भाजपा की प्रमुख सहयोगी जदयू ने केंद्रीय कैबिनेट के इस फैसले का स्वागत किया है.
एनडीए में भाजपा के अलावा जदयू, टीडीपी और लोजपा बड़ी पार्टियां हैं. जदयू और लोजपा ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है. हालांकि, टीडीपी ने अभी तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. हालांकि, भाजपा को उम्मीद है कि उसे और भी विपक्षी पार्टियों का साथ इस मुद्दे पर मिल सकता है. दरअसल, रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 62 राजनीतिक दलों से भी राय ली थी. हालांकि, 47 ने इसपर जवाब दिया. इनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया. राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बसपा और माकपा ने प्रस्ताव का विरोध किया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि एक साथ चुनाव व्यावहारिक नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा चुनाव आते ही वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसी बातें करती है. माना जा रहा है कि आवश्यक सर्वसम्मति बनाने का एक तरीका संशोधन विधेयकों को स्थाई समिति या संयुक्त संसदीय समिति जैसी किसी संसदीय समिति को भेजना है. इन पैनलों में विपक्षी सांसद भी शामिल होते हैं, ऐसे में यहां चर्चा से आम सहमति बन सकती है.
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