Girish Malviya
किसानों का आंदोलन दिल्ली में पूरे शबाब पर है और उधर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुंबई में अडानी ग्रुप की खेती किसानी से जुड़ी कंपनी अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड के एमडी से मुलाकात की है. यह बड़ी महत्वपूर्ण मुलाकात है.
वैसे आप देखिये कि कमाल की टाइमिंग है. कुछ दिनों पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कटाई के बाद के प्रबंधन और फार्म एसेट्स की देखभाल के लिए कृषि-उद्यमिता, स्टार्टअप्स, और ऐसी ही एग्री फ्रेश, एग्री लॉजिस्टिक कंपनियों के लिए कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत 1 लाख करोड़ रुपये की फाइनेंसिंग सुविधा देने की बात की है और योगी आदित्यनाथ अडानी एग्री कंपनी के एमडी से मिल रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के इस 1 लाख करोड़ के फंड की सबसे खास बात यह है कि ब्याज पर 3 फीसदी की सब्सिडी मिलेगी. वहीं 2 करोड़ रुपये तक की क्रेडिट गारंटी भी दी जायेगी. 1 लाख करोड़ रु का लोन 4 सालों में दिया जायेगा. इस साल 10,000 करोड़ रुपये और अगले 3 सालों में 30-30 हजार करोड़ रुपये बतौर लोन दिये जायेंगे. इस फाइनेंसिंग फैसिलिटी के तहत लोन चुकाने में मोरेटोरियम की भी सुविधा मिलेगी. अधिकतम मोरेटोरियम अवधि 2 साल और न्यूनतम 6 महीने होगी. यानी कॉरपोरेट को सस्ती दरों पर कृषि क्षेत्र में लोन देने की पूरी तैयारी है.
दरअसल अडानी-अंबानी जैसे बड़े कॉरपोरेट अपने विदेशी सहयोगियों के साथ मिलकर पंजाब की ही नहीं बल्कि पूरे देश की खेती को कंट्रोल करना चाहते हैं. उसके लिए जितने फंड की जरूरत है, वो बैंकों के माध्यम से दबाव डालकर उपलब्ध करवाया जा रहा है.
कॉरपोरेट को कृषि क्षेत्र में लोन देने का यह सिलसिला कोई आज का नहीं है, बल्कि बहुत पुराना है. रिजर्व बैंक के मुताबिक, नरेंद्र मोदी की सरकार में सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने साल 2016 में कुल 615 खातों में कुल 58 हजार 561 करोड़ रुपये का एग्रीकल्चर लोन ट्रांसफर किया!
यानी औसतन हरेक खाताधारक को लगभग 95 करोड़ रुपये का कृषि लोन मिला है. ऐसे में स्पष्ट है कि ये लोन किसी किसान के खाते में तो नहीं जमा किया गया होगा.
आरबीआइ के आंकड़े बताते हैं कि कृषि लोन का एक भारी हिस्सा मोटे लोन के रूप में कुछ चुनिंदा लोगों को दिया जा रहा है. कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि किसानों के नाम पर यह लोन बड़े कॉरपोरेट की एग्री-बिजनेस कंपनियों को दिया जा रहा है.
दरअसल आरबीआइ ने देश में कुछ आर्थिक क्षेत्रों को उच्च प्राथमिकता देने और उनके विकास के लिए बैंकों को ये निर्देश जारी किया था कि वे अपने कुल लोन का एक निश्चित हिस्सा कृषि, MSME आदि क्षेत्रों में दे. इसे प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग कहते हैं. इसके तहत बैंकों को अपने पूरे लोन का 18 प्रतिशत हिस्सा कृषि के लिए देना होता है.
लेकिन यह लोन जो छोटे सीमांत किसानों को दिया जाना चाहिए था. वह दिया जाता कॉरपोरेट घरानों को.
किसान संगठन रायतू स्वराज्य वेदिका के संस्थापक किरन कुमार विसा कहते हैं कि ‘कई एग्री-बिजनेस करने वाली बड़ी कंपनियां कृषि ऋण की श्रेणी के तहत लोन ले रही हैं.
रिलायंस फ्रेश जैसी कंपनियां एग्री-बिजनेस कंपनी के दायरे में आती हैं. ये सभी कृषि उत्पाद खरीदने-बेचने का काम करती हैं. और गोदाम बनाने या इससे जुड़ी अन्य चीजों के निर्माण के लिए कृषि ऋण श्रेणी के तहत लोन लेती हैं.’
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि किसानों के नाम पर लोन देने की घोषणा करके सस्ते दर पर बड़ी-बड़ी कंपनियों को लोन दिया जा रहा है. ये किसानों की समस्या हल करने का दिखावा है.
ये कहां के किसान हैं कि जिन्हें 100 करोड़ के लोन दिये जा रहे हैं. ये सारा दिखावा है. किसान के नाम पर क्यों इंडस्ट्री को लोन दिया जा रहा है?’
जब यही लोन माफ कर दिया जाता है, तो कहा जाता है कि हमने किसानों का लोन माफ कर दिया. बहुत सालों से धीरे-धीरे करके इन एग्री बिजनेस कंपनियों की फंडिंग कर इन्हें मजबूत बनाया जा रहा है. और आने वाले कुछ सालो में कांट्रेक्ट फार्मिंग और अपने लॉजिस्टिक सपोर्ट के कारण ये कंपनियां पूरे देश की कृषि को अपने प्रभाव में ले लेगी. फिर किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जायेगा.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.