Faisal Anurag
किसानों ने एक पीपुल्स व्हीप जारी किया है. भारतीय राजनीति में यह अपने आप में अनोखा कदम है. तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए तमाम सासंदों के लिए जारी इस व्हीप में कहा गया है कि मॉनसून सत्र में वे अपने स्तर से तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का दबाव बनाए. साढ़े सात महीने से जारी किसान आंदोलन के महत्व को केंद्र सरकार भी समझ रही है, खासकर उत्तर प्रदेश और पंजाब के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में. केंद्रीय कैबिनेट में फेरबदल के बाद कृषि मंत्री ने एक बार फिर किसानों के साथ ठप पड़ी बातचीत को शुरू करने का न्योता दिया है. केंद्रीय कृषि मंत्री ने इसके साथ शर्त भी रखी है कि सरकार सभी मांगों को सुनने के लिए तैयार है, लेकिन वह कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी. किसान भी कानून निरस्त करने से कम पर तैयार नहीं है. नरेंद्र मोदी के एक कॉल की दूरी ही महीनों से बनी हुई है. प्रधानमंत्री ने किसानों से कहा था कि वे सिर्फ एक कॉल की दूरी पर हैं.
किसानों ने पीपुल्स व्हीप जारी करते हुए कहा है कि किसानों ने कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी के लिए कानून बनाने के पक्ष में सभी सांसद एकजुट हों. किसानों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह केंद्र के कृषि अनुदानों की घोषणा से वे अपनी मांग को छोड़ने नहीं जा रहे हैं. किसानों ने यह भी कहा है कि मॉनूसन सत्र शुरू होते ही किसान संसद भवन के सामने धरना देंगे. धरना के एलान के साथ ही एक फिर किसानों और सरकार के बीच टकराव की संभावना बढ़ गयी है. 26 जनवरी को जब किसानों ने दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च किया था, तब लालकिले के पास हिंसा हुई थी. पिछले हफ्ते ही भाजपा के कार्यकर्ताओं ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों पर हमला किया था, जिसका किसानों ने भी पुरजोर जबाव दिया था. यूपी,पंजाब और हरियाणा के गावों में भाजपा और किसानों के बीच टकराव की खबरें आम हो गयी हैं.
हरियाणा में तो किसानों के आंदोलन को कमजोर करने के लिए भाजपा से जुड़े संगठनों ने लैंड जेहाद और लव जेहाद के नाम पर किसानों की एकता में दरार डालने के लिए पंचायतों का आयोजन किया. इसका नेतृत्व भाजपा हरियाणा के एक प्रवक्ता सूरजपाल अमु कर रहे थे. इसमें सीएए के खिलाफ आंदोलनरत जामिया मीलिया के छात्रों पर गोली चलाने वाले ने भी उग्र और हिंसा के लिए उकसाने वाला भाषण दिया था. भाजपा की बेचैनी यह है कि किसानों की पंचायतों को वह इन सवालों पर कमजोर करे.
किसानों ने भी इस फ्रंट पर मुकाबला करना शुरू कर दिया है और धार्मिक सद्भाव को बनाए रखने के लिए तीन कृषि कानूनों के विरोध को तेज किया है. मॉनसून सत्र के दौरान दिल्ली के बॉर्डर पर बड़ी संख्या में किसान जुटान होने जा रहा है.
केंद्र सरकार ने कैबिनेट बदलाव के बाद किसानों के लिए पैकेज की घोषणा किया. लेकिन किसान संगठनों ने इसे खारिज कर दिया है. किसान संगठन मानते हैं कि कृषि और किसान स्वायत्तता पर हमला करने वाले तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करवाए बगैर, वे चुप नहीं बैठेंगे. किसानों का आंदोलन तेजी से केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारों के खिलाफ गांवों में आकार ग्रहण कर रहा है. भाजपा का थिंकटैंक उन चेतावनियों और आंदोलन के तेवर को लेकर सजग है. भारत में पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी भी आंदोलन के नेता सरकार के दबाव में नहीं हैं. केंद्र सरकार तमाम संभावनाओं को समय-समय पर खंगालती रहती है कि वह किस तरह किसानों की एकता में दरार पैदा कर सके. किसान पैकजों का एलान उसी दिशा में कदम है. 2019 के लोकसभा चुनावों में किसानों को हर तीन महीने पर 2000 रुपये दे कर नरेंद्र मादी ने जो किसान समर्थक छवि बनायी थी, वह तीन कृषि कानूनों के बाद धूमिल हुई है.
किसान के पीपुल्स व्हीप का राजनैतिक महत्व है. 1974 में जयप्रकाश आंदोलन के समय भी इस तरह के व्हीप का प्रयोग किया गया था. जिसका राजनैतिक असर 1977 में देखा गया, जब इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़़ा. जेपी ने जनता सरकारों का प्रयोग किया था और उससे एक कांग्रेस और इंदिरा गांधी विरोधी चेतना बनी थी. किसान संगठन भी इस व्हीप के माध्यम से जनप्रतिनिधियों किसान विरोधी और कॉरपोरेट परस्त भूमिका को देश के लोगों तक एक्सपोज करना चहते हैं. यदि इतिहास के अनुभवों से देखा जाए तो हर आंदोलन कुछ ऐसा प्रयोग करता नजर आ रहा है, जो राजनैतिक बदलावों में बड़ी भूमिका निभा सकेगा. पीपुल्स व्हीप उस दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है.