Faisal Anurag
सिसोली सर्वखाप पंचायत के एक निर्णय ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. 2013 में इसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने देश और राज्य में भारतीय जनता पार्टी के लिए लहर पैदा किया था. सिसोली खाप पंचायत में 1857 के बाद पहली बार नून-लोटा कसम खायी गयी है. इसी नून लोटा कसम खाकर इस इलाके के किसानों ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग किया था. इस बार फिर राकेश टिकैत के आसुओं ने वह सैलाब पैदा किया है कि कृषि कानूनों के खात्मे तक संघर्ष जारी रखने के लिए खाप पंचायतों में नून लोटा शपथ लिया जा रहा है.
नून लोटा कसम का मतलब है एक लोटे में नमक डालकर उसमें गंगाजल डाला जाता है. फिर गंगाजल और नमक के लोटे को उठाकर, किसी भी कार्य को पूरा करने के लिये कसम खायी जाती है. 1857 में इसी कसम के बाद हजारों किसानों ने लड़ते हुए शहादत दी थी.
164 सालों बाद एक बार फिर खाप पंचायत न केवल इस शपथ को ले रहा है. बल्कि 2013 में पैदा हुए सांप्रदायिक विभाजन को खत्म करने का संकल्प ले रहा है. राकेश टिकैत के आंसुओं के बाद मुजफ्फर नगर के सर्वखाप पंचायत में नरेश टिकैत और गुलाम मोहम्मद जौला गले मिलकर 2013 को विस्मृत कर पुरानी विरासत को कायम करने का संकल्प लिया. 2013 ही वह साल है जब पहली बार चौधरी चरण सिंह और चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के धार्मिक एकता की दीवार को ध्वस्त कर दिया गया था.
इसी के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपना असर गहरा किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बड़ी कामयाबी का सफर शुरू किया. 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी यह सिलसिला जारी रहा.
जाटों और मुसलमानों की जो एकता नया रूप ले रही है क्या 2013 के सिलसिले को तोड़ सकेगी. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे और उसके दो साल बाद लोकसभा के. हालांकि इसका आकलन करना जल्दबाजी होगी. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदल रहे माहौल ने न केवल किसान आंदोलन को गति दिया है, बल्कि उसकी एक अखिल भारतीय छवि बनाने की प्रक्रिया का भी आगाज किया है.
जिस बड़े पैमाने पर किसान पंचायतों में जुट रहे हैं उससे दिल्ली के सत्ताधीशों की नींद खराब हो रही है. बंगाल चुनाव के ठीक पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इस तरह उठ खड़ा होना महत्वपूर्ण है.बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का दांव बगाली समाज के धार्मिक बंटवारे पर ही है. बंगाल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच राजनैतिक और भौगोलिक दूरी के बावजूद इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता कि बंगाल के किसान भी इस एकता को ध्यान से देख रहे हैं.
किसान आंदोलन का यह सबसे बड़ा मोड है. इस आंदोलन ने सामाजिक तौर पर धार्मिक विघटन की राह में बाधा खड़ी कर दी है. खाप पंचायतों में केवल जातियों का ही पंचायत नहीं होता बल्कि वह पूरे इलाके के सभी जातियों ओर धर्मो के लोगों का मंच है. इसके विशेषज्ञ अमरेश मिश्र के अनुसार, इलाके में रहने वाले मुस्लिम जाट, गूजर, मेवाती और रांगर भी उन 36 बिरादरियों मे आते हैं जो खाप के हिस्सेदार हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ हरियाणा के भी खाप पंचायतों की राजनैतिक भूमिका रही है और किसान आंदोलन के संदर्भ में इन खापों की बैठकें राजनैतिक संदेश भी दे रही हैं.
नून लोटा शपथ बता रहा है कि इस बार फिर से खान हर कुर्बानी देकर एकता को नहीं टूटने देगा. चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के समय गुलाम जौला की बड़ी भूमिका होती थी जो 2013 में उनके अलग हाने से टूट गयी थी.
प्रधानमंत्री के बातचीत को केवल एक कॉल दूर बताने के बावजूद किसान नेताओं को भरोसा नहीं है कि मांग को लेकर केंद्र सदाशय है. राकेश टिकैत ने भी स्प्ष्ट कर दिया है कि सरकार को बिना किसी शर्त के ही बातचीत करनी चाहिए. प्रधानमंत्री के बयान के बाद नरेश टिकैत ने जरूरी संकेत दिया था कि न तो किसानों और न ही प्रधानमंत्री के सम्मान को नजरअंदाज किया जाएगा.
लेकिन किसान संघर्ष मोर्चा ने स्पष्ट कर दिया है, वह तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की मांग पर अडिग है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खाप पंचायत भी यही संदेश दे रहे हैं कि किसानों के मान सम्मान का तो एक ही मतलब है कि तीनों कानूनों को सरकार निरस्त करे, एमएसपी की गारंटी के लिए कानून बने और केंद्र सरकार एक समिति का गठन करे. जिसमें किसानों के अन्य सवालों पर बात जारी रहे. केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकारों की परेशानी इससे बढ़ी है और इसका असर महाराष्ट्र,कर्नाटक के किसानों पर भी पड़ रहा है, जो बड़ी संख्या में अपने राज्यों में विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं. 6 फरवरी को किसान संगठनों ने रास्ता रोको कार्यक्रम का एलान किया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लहर के असर को कम कर नहीं आंका जा सकता.